
पन्ना। दक्षिण पन्ना वनमंडल के सलेहा परिक्षेत्र अंतर्गत बौलिया सर्किल स्थित खिलसारी की पन्नी के समीप विशाल चट्टानों पर प्राचीन शैल चित्रों की खोज हुई है। इन अद्वितीय चित्रों को प्रकृति संरक्षण कार्यकर्ता अजय चौरसिया ने खोज कर साझा किया है। विशेषज्ञों के अनुसार ये चित्र अत्यंत प्राचीन काल के हैं और मानव सभ्यता के आरंभिक विकास, सांस्कृतिक गतिविधियों तथा उस दौर के सामाजिक जीवन का सजीव प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। लाल-गेरुए रंगों से बने ये चित्र आज भी स्पष्ट दिखाई देते हैं, जो हमारी प्रागैतिहासिक धरोहर की महत्ता को दर्शाते हैं। खिलसारी की पन्नी अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ बहने वाली नदी का जल कई फीट ऊँचाई से गिरकर एक मनोरम झरना बनाता है, जो विशेषकर बरसात के दिनों में अत्यंत भव्य रूप ले लेता है। झरने के आसपास का वनक्षेत्र कुल्लू, अर्जुन, कठजामुन जैसे वृक्षों तथा विविध वन्य जीव-जंतुओं से समृद्ध है। पक्षियों का कलरव और तितलियों की उड़ान इस स्थल की खूबसूरती में चार चाँद लगाते हैं। इतना ही नहीं, शैल चित्रों के समीप स्थित बड़ादेव का स्थल आदिवासी समाज की आस्था का केंद्र है, जो इस स्थान को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण बनाता है।
संरक्षण की आवश्यकताः- इतिहासकारों और प्रकृति प्रेमियों का मानना है कि खिलसारी की पन्नी में मिले इन शैल चित्रों को पुरातात्विक धरोहर के रूप में संरक्षित करना अनिवार्य है। इनका संरक्षण न केवल हमारे अतीत को समझने में सहायक होगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी यह अमूल्य धरोहर बनी रहेगी।
