मंडला। मंडला में नर्मदा तट, सहस्त्रधारा, संगमघाट और अन्य जलस्रोतों पर अनुविभागीय दंडाधिकारी द्वारा जारी किए गए प्रतिबंधात्मक आदेश के बाद आम जनता में भारी असमंजस और असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो गई है। लोगों के बीच यह चर्चा का विषय बन गया है कि क्या अब श्रद्धालु अपनी पूजा-पाठ और धार्मिक आस्था के निमित्त भी इन पवित्र स्थानों पर नहीं जा सकेंगे? स्थानीय नागरिकों और श्रद्धालुओं का कहना है कि यदि प्रशासन की मंशा सुरक्षा को लेकर है, तो यह सराहनीय कदम है, लेकिन पूजा-पाठ और आस्था स्थलों पर पूर्ण प्रतिबंध से आम श्रद्धालु आहत महसूस कर रहे हैं। लोगों का सवाल है कि क्या मानवीय आस्था और धार्मिक स्वतंत्रता पर इस तरह की रोक उचित है? एक स्थानीय नागरिक ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा, हम हर साल सावन और वर्षा काल में नर्मदा घाट पर पूजा-अर्चना करते हैं। प्रशासन ने अचानक पूरी तरह घाटों पर जाना बंद करवा दिया है। क्या हम अब अपने देवी-देवताओं से भी दूर हो जाएं?
जनता यह जानना चाहती है कि क्या प्रशासन ने यह आदेश केवल सुरक्षा कारणों से पारित किया है या इसके पीछे कोई और वजह है। कुछ लोगों का मानना है कि लालफीता शाही की तरह अत्यधिक कठोर आदेश निकालकर प्रशासन ने श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के तहत जारी आदेश में वर्षा ऋतु की समाप्ति तक समस्त घाटों, पुल-पुलियाओं, जल स्रोतों, पहाड़ी क्षेत्रों आदि में आम जनता का प्रवेश पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है। आदेश का उल्लंघन करने पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 223 के अंतर्गत दंडात्मक कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई है।
आमजन और विभिन्न धार्मिक संगठनों की ओर से प्रशासन से अपील की गई है कि इन आदेशों की समीक्षा की जाए। वे चाहते हैं कि श्रद्धालुओं के लिए सीमित समय या विशेष व्यवस्था के तहत पूजा-पाठ की अनुमति दी जाए, जिससे सुरक्षा भी बनी रहे और धार्मिक स्वतंत्रता भी प्रभावित न हो। सवाल यह नहीं है कि प्रशासन सुरक्षा चाहता है या नहीं, मुख्य सवाल यह है कि क्या जनभावनाओं और धार्मिक आस्थाओं को दरकिनार करके ऐसे कठोर आदेश पारित करना उचित है? आमजन अब इस पर प्रशासन से स्पष्टीकरण चाहता है।