धर्मेंद्र सिंह चौहान
इंदौर: प्रदेश में अपराध की दुनिया अब वर्चुअल हो चली है. जहां हथियार, नशा और ठगी सब कुछ ऑनलाइन मिल रहा है. चुनौती अब सिर्फ सड़कों पर नहीं, स्क्रीन के भीतर भी है. जिसके चलते अब किसी भी प्रकार के हथियार हो या नशे का सामान इन दिनों आसानी से ऑनलाईन मिल रहा है, ऐसे में यह नया डिजिटल बाजार अब न सिर्फ हथियार और नशा ही नहीं बल्कि ठगी का भी अड्ढा बन चुका है.
शहर और प्रदेश में एक नया क्रिमिनल ट्रेंड तेजी से उभर रहा है. अपराध अब सिर्फ गलियों, अड्डों या खुफिया ठिकानों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि स्मार्टफोन और इंटरनेट की स्क्रीन पर भी संगठित हो गया है. नशे का कारोबार हो, हथियारों की डिलीवरी या फिर ऑनलाइन ठगी के लिए बैंक खातों की किट , सब कुछ अब वर्चुअल प्लेटफॉर्म्स के ज़रिए सुलभ हो चुका है. पुलिस की हालिया कार्रवाई और पूछताछ में जो खुलासे हुए हैं, वे खौफनाक हैं और बता रहे हैं कि अपराध अब टेक-सैवी हो चुका है.
केस एक-
छात्र बना एलएसडी तस्कर
भोपाल पुलिस ने हाल ही में एक स्टूडेंट को पकड़ा, जो टेलीग्राम जैसे एन्कि्रप्टेड प्लेटफॉर्म के जरिए एलएसडी जैसी खतरनाक ड्रग्स ऑनलाइन ऑर्डर करता था. यह युवक केरल से नशा मंगवाकर डाक के जरिए युवाओं तक पहुंचाता था. पुलिस की पूछताछ में उसने स्वीकार किया कि सोशल मीडिया के ज़रिए वह डार्कनेट से जुड़े ग्रुप्स से जुड़ा था, जहां नशे की सप्लाई का नेटवर्क ऑपरेट होता है.
केस दो-
बैंकिंग किट का गोरखधंधा
महालक्ष्मीनगर गोलीकांड में जब पुलिस ने आरोपियों को पकड़ा, तो उनके पास से एक क्राइम किट बरामद हुई जिसमें एटीएम कार्ड, बैंक पासबुक, सिम कार्ड और फर्जी आईडी शामिल थीं. ये सभी चीजें उन्होंने ऑनलाइन खरीदी थीं. पूछताछ में उन्होंने कबूला कि सोशल मीडिया पर ऐसे कई ग्रुप्स हैं, जो फुल क्राइम सेटअप बेचते हैं जिसका इस्तेमाल ऑनलाइन सट्टा, मनी लॉन्डि्रंग और ठगी में भी होता है.
केस तीन-
चाकू तक ऑनलाइन
कनाड़िया पुलिस ने हाल ही में रील बनाने बायपास पहुंचे दो युवकों और चार नाबालिगों से 6 धारदार चाकू बरामद किए थे . आरोपियों ने ये चाकू किसी स्थानीय हथियार सप्लायर से नहीं, बल्कि ऑनलाइन खरीदे थे. यह घटना बताती है कि अवैध चीजों की डिलीवरी अब एक क्लिक की दूरी पर है, और प्लेटफॉर्म्स की मॉनिटरिंग लगभग न के बराबर है.
केस चार-
सिकलीगरों का डिजिटल शस्त्र कारोबार
धार, खरगोन और बड़वानी जैसे इलाकों में बसे सिकलीगर अब देसी कट्टों की ऑनलाइन मार्केटिंग कर रहे हैं. ये लोग वॉट्सऐप ग्रुप्स के माध्यम से हथियारों की फोटो भेजते हैं, डील तय करते हैं और फिर ग्राहकों से पैसे ऑनलाइन खातों में मंगवा लेते हैं. बाद में डिलीवरी किसी लोकल एजेंट के ज़रिए की जाती है. इस गिरोह में फर्जी सिम, दूसरे के नाम पर खोले गए बैंक खाते और झूठी आईडी का इस्तेमाल आम बात हो गई है.
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की ढाल में अपराध
इन तमाम घटनाओं में एक समानता है .अपराधी अब सीधे टकराव या जोखिम से बचने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का सहारा ले रहे हैं. टेलीग्राम, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप और यहां तक कि ई-कॉमर्स साइट्स पर भी नकली नाम और फर्जी अकाउंट से काम हो रहा है. पुलिस अधिकारियों का मानना है कि जब तक ऑनलाइन स्पेस पर निगरानी और रेगुलेशन मजबूत नहीं होगा, तब तक ये ‘डिजिटल अंडरवर्ल्ड’ पनपता रहेगा.
सिस्टम की चूक या लापरवाही?
एक बड़ा सवाल यह भी है कि इतनी गंभीर गतिविधियां ऑनलाइन कैसे हो रही हैं फर्जी सिम कैसे एक्टिवेट हो रहे हैं? बैंक खाते बिना केवायसी के कैसे खुल रहे हैं? सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे ग्रुप्स कैसे बेरोकटोक चल रहे हैं?
पुलिस की अपील और चेतावनी
पुलिस ने युवाओं और पालकों से अपील की है कि वे बच्चों के मोबाइल और सोशल मीडिया गतिविधियों पर नज़र रखें. साथ ही साइबर सेल को भी अलर्ट किया गया है कि ऐसे ग्रुप्स और लिंक की ट्रेसिंग कर इन्हें ब्लॉक किया जाए.
