अमेरिका के साथ व्यापार समझौता नौ जुलाई से पहले संभव: जयशंकर

ब्रुसेल्स, 10 जून (वार्ता) विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौता नौ जुलाई से पहले हो जाने की उम्मीद है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत के प्रति लगाये गये ऊंचे दंडात्मक आयात शुल्कों को फिलहाल नौ जुलाई तक स्थगित किया हुआ है। यूरोप की यात्रा पर गये श्री जयशंयर ने फ्रांस के अखबार ‘ली फिगारो’ के साथ विशेष बातचीत में एक प्रश्न पर कहा कि एक चौथाई सदी से अधिक समय से, पांच अमेरिकी राष्ट्रपतियों के नेतृत्व में, अमेरिका के साथ हमारे संबंध लगातार मजबूत हुये हैं। आर्थिक, तकनीकी, शैक्षिक, वैज्ञानिक, रणनीतिक तथा सैन्य क्षेत्र में संबंध आगे बढ़ रहे हैं। उनसे पूछा गया था कि ऐसे समय में अमेरिका 26 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने की धमकी दे रहा है, क्या भारत अब भी ट्रम्प प्रशासन के साथ अच्छे संबंध बनाये रखना चाहता है?

विदेश मंत्री ने कहा कि आयात शुल्क पहले दो अप्रैल से बढ़ाया जाना था , लेकिन हमने व्यापार समझौते के लिए द्विपक्षीय वार्ता पहले ही शुरू कर दी थी। फरवरी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मेजबानी की थी और वे एक-दूसरे के बाजारों तक पहुंच का विस्तार करने पर सहमत हुए थे। उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि नौ जुलाई को टैरिफ निलंबन समाप्त होने से पहले हम एक समझौते पर पहुंच जायेंगे।”

अमेरिकी राष्ट्रपति की विदेश नीति के बारे में उनके विचार पूछे जाने पर डॉ जयशंकर ने कहा, “ हम देखते हैं कि अमेरिका अपने तात्कालिक स्वार्थ के अनुरूप काम कर रहा है। हमारे दृष्टिकोण से, हमने क्वाड (अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच संवाद) में उनकी रुचि और इसे आगे बढ़ाने के लिए उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता पर ध्यान दिया। शेष दुनिया के संबंधों के मामले में, हम देखते हैं कि अमेरिका अपने तात्कालिक स्वार्थ के अनुरूप कार्य कर रहा है। ईमानदारी से कहूं तो मैं उनके साथ भी ऐसा ही करूंगा। ”

यह पूछे जाने पर कि क्या भारत श्री ट्रम्प और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच सुलह की इच्छा रखता है, डॉ जयशंकर ने कहा, “ यह मुद्दा केवल दो लोगों के बारे में नहीं है, बल्कि यूक्रेन संघर्ष का तत्काल समाधान खोजने की आवश्यकता का मुद्दा है। हमारा हमेशा से मानना रहा है कि यूक्रेन में युद्ध का तत्काल समाधान खोजना होगा और यह समाधान युद्ध के मैदान में नहीं होगा। दोनों पक्षों के बीच सीधी बातचीत होनी चाहिये, जितनी जल्दी हो सके उतना ही अच्छा। हम परिणाम निर्धारित नहीं करते हैं, यह निर्णय लेने में शामिल पक्षों पर निर्भर है।”

यह पूछे जाने पर कि क्या भारत किसी का पक्ष नहीं लेना चाहता है, तो विदेश मंत्री ने कहा, “ नहीं, हमने यूक्रेन और रूस दोनों की यथासंभव मदद की है। मेरे प्रधानमंत्री मास्को और कीव दोनों जगह गये थे। यूरोप में, आपका दृष्टिकोण अलग है क्योंकि आप यूरोप का हिस्सा हैं।… दुनिया के बड़े हिस्से – अफ्रीका से लेकर लैटिन अमेरिका से लेकर प्रशांत द्वीपीय देश तक – महसूस करते हैं कि उनकी अर्थव्यवस्थाएं और स्थिरता इस संघर्ष से नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई हैं। दुनिया चाहती है कि यह बंद हो जाये। इस मुद्दे पर हम ग्लोबल साउथ की ओर से बात करते हैं।”

यह पूछे जाने पर कि “ग्लोबल साउथ” का भारत के लिए क्या महत्व है, उन्होंने कहा, “ यह उन विकासशील देशों के संदर्भ में है, जिन्होंने उपनिवेशीकरण का दर्द सहा है और अब अपने समाजों और अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण की कोशिश कर रहे हैं। वे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में अपना वह स्थान अर्जित करने की कोशिश कर रहे हैं, जिन पर उनका हक बनता है। हमारे बीच एकजुटता की भावना है, जो हमें मजबूत बनाती है-हमने इसे कोविड के दौरान देखा था।”

विदेश मंत्री ने कहा कि भारत का प्रति व्यक्ति घरेलू उत्पाद (जीडीपी ) बहुत अधिक नहीं है, फिर भी हम अभी भी दक्षिणी गोलार्ध के 78 अन्य देशों के विकास में मदद करते हैं।”इस सवाल पर कि क्या भारतीय समाज आंतरिक तनावों का अनुभव करता है, विशेष रूप से इस तथ्य को देखते हुए कि देश की आबादी में 20 करोड़ का आबादी वाला एक बड़ा मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय है। क्या यह भारत की छवि को प्रभावित कर सकता है? विदेश मंत्री ने कहा कि वह इस प्रश्न के आधार को अस्वीकार करते हैं। क्योंकि यह काफी हद तक अतिरंजित है, और कभी-कभी पूरी तरह से गलत भी है। उन्होंने कहा, “ जब विविधता की बात आती है, तो हम यूरोप से बहुत अलग होते हैं। यहां, राष्ट्र आम तौर पर एक भाषा पर आधारित, अक्सर एक धर्म पर आधारित हैं। एकरूपता आपकी स्वाभाविक स्थिति है, और आप विविधता के साथ संघर्ष करते हैं। लेकिन हम हमेशा विविधता के बीच रहे हैं। ”

 

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