रादुविवि की साख का हो रहा बंटाधार

महाकौशल की डायरी

अविनाश दीक्षित

कभी अपनी उपलब्धियों के लिए चर्चाओं में रहने वाले जबलपुर का रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय इन दिनों प्रबंधन की लापरवाहियों के चलते सुर्खियां बटोर रहा है। बीते दिनों बीसीए द्वितीय वर्ष की परीक्षा में विद्यार्थियों ने परीक्षा ई-कॉमर्स विषय की दी थी लेकिन परीक्षा परिणाम में परीक्षार्थियों को आर्गेनिक फार्मिंग विषय में अंक मिले, जिसको लेकर काफी हो हल्ला मचा। गत 7 मई को बीए सेकंड ईयर के इतिहास (मेजर) के पेपर में विद्यार्थियों को आउट ऑफ सिलेबस प्रश्न पत्र थमा दिया गया। हंगामा होने पर केंद्र में मौजूद शिक्षकों ने भी पाया कि पूछे गए प्रश्न निर्धारित सिलेबस से बाहर के हैं। केंद्राध्यक्ष ने आरडीयू के जिम्मेदार अधिकारियों को गफलत की सूचना दी।

तत्पश्चात बीच एक्जाम तय किया गया कि विद्यार्थियों से आवेदन लेकर उन्हें जाने दिया जाए। यह परीक्षा जबलपुर के सभी सेंटर्स सहित कटनी, मंडला, नरसिंहपुर में आयोजित की गई थी, लिहाजा यहां भी एग्जाम स्थगित करना पड़ा। अब एक कमेटी मामले की जांच कर रही है। इसके पूर्व बीएससी सेकंड ईयर के फाउंडेशन कोर्स के पेपर में परीक्षार्थियों से पूछा गया कि रानी दुर्गावती का ” मकबरा” कहां स्थित है, जबकि हकीकत यह है कि रानी दुर्गावती का ” समाधि ” स्थल है। समझा जा सकता है कि शब्द चयन में कितनी गंभीर गलती की गई।

वह भी वहां जिसके नाम पर ही विश्वविद्यालय की स्थापना की गई हो। इस मामले की जांच की जा रही है, चर्चा है कि विषय से संबंद्ध एक प्रोफेसर को सस्पेंड किया गया है। विदित रहे कि बीते शैक्षणिक सत्र में नैक टीम के दौरे के पश्चात रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय की ग्रेडिंग में इजाफा हुआ है और विश्वविद्यालय की उम्दा शैक्षणिक प्रबंधन की खूब वाहवाही भी हुई थी किन्तु अब लगातार सामने आ रहीं खामियों ने विश्वविद्यालय की साख पर प्रश्न चिन्ह तो लगाया ही है साथ ही वीरांगना रानी दुर्गावती के समाधि स्थल के लिए ” मकबरा ” जैसे शब्द
का उपयोग कर ऐतिहासिक भूल भी कर दी है। उपरोक्त प्रकरणों से यह भी स्पष्ट होता है कि विद्यार्थियों के भविष्य और उनके मूल्यवान समय को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन कितना गंभीर है।

बदनाम हो रहा जिला स्वास्थ्य विभाग

एक हाथ दो और दूसरे हाथ लो, तभी आपकी फाइल पर नजर जाएगी नहीं तो भीषण गर्मी में अस्पताल के चक्कर काटते रहो हमें क्या फर्क पड़ता है…. जी हां, ये प्रचलन इन दिनों बीते कुछ समय से जिला अस्पताल विक्टोरिया के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय का बन चुका है जो कि जबलपुर ही नहीं बल्कि पूरे महाकौशल क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। क्योंकि जिला अस्पताल विक्टोरिया में जबलपुर के ही नहीं बल्कि पूरे महाकौशल के मरीज अपने परिजनों के साथ बेहतर इलाज की आस लेकर आते हैं लेकिन जब ये भ्रष्टाचार देखते हैं तो उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसकने लगती है। मतलब साफ है कि अगर स्वास्थ्य से संबंधित किसी को कोई काम करवाना है तो सबसे पहले उस काम के बदले में लगने वाली रिश्वत का ठेका करो.. ठेका तय होगा उसके बाद आपके काम की फाइलों पर अधिकारियों की नजर जाएगी फिर आपका काम होगा। कुछ जागरूक लोगों द्वारा लोकायुक्त में शिकायत हुई तो विभाग के कुछ कर्मचारी दबोचे भी गए लेकिन फिर भी रिश्वतखोर बाबू, कर्मचारियों का ढर्रा एक ही है रुपए लाओ, काम कराओ।

सीएमएचओ मजबूर….?

अधीनस्थ कर्मचारियों की लालच और मनमाने ढर्रे के सामने अब तो अपने आप को मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. संजय मिश्रा विवश समझ चुके हैं। जिसका उदाहरण यही देखा जा सकता है कि वे सिर्फ यही कहते नजर आ रहे हैं कि विभाग के सभी कर्मचारी ईमानदारी से अपनी नौकरी करें, लेकिन सवाल यह है कि कार्रवाई करने से हिचक क्यों रहे हैं। स्मरण रहे कि सप्ताह के मंगलवार और शुक्रवार को दिव्यांग सर्टिफिकेट, फिट- अनफिट सर्टिफिकेट बनवाने के लिए जिला अस्पताल में वसूली की बात पूरे महाकौशल में व्याप्त हो चुकी है। बीते 3 माह पूर्व रवि बोहत नामक बाबूू और दो दिन पूर्व एक महिला कर्मचारी को रिश्वत लेते लोकायुक्त टीम ने दबोचा था। इन दो मामलों से समझा जा सकता है कि जिला अस्पताल की छवि चंद बाबू व कर्मचारियों की बदौलत वसूली वाले अस्पताल की बनते जा रही है।

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