मालवा- निमाड़ की डायरी
संजय व्यास
निमाड़ में भाजपा की गोटियां फिर बनने और बिगडऩे लगी हैं. खंडवा जिले में विधानसभा चुनाव के समय दो विधायकों खंडवा से देवेंद्र वर्मा और पंधाना से राम दांगोरे के टिकट काट दिए थे. इसके पीछे किनका हाथ था, यह नहीं पता, लेकिन अभी तक ये दोनों पूर्व विधायक इस संताप से उबार नहीं पाए हैं. दोनों भाजपा के सक्रिय कार्यक्रमों में हिस्सेदारी नहीं निभा रहे हैं. देवेंद्र वर्मा खंडवा से चुनाव लडऩे के इच्छुक थे. लगातार चार बार के विजेता वर्मा कम उम्र में ही विधायक बन गए थे. इसके बावजूद उनका टिकट काट दिया गया था. देवेंद्र वर्मा को भी उम्मीद नहीं थी कि उनके साथ ऐसा होगा. अब वे फिर से सक्रिय नजर आ रहे हैं. लोग उन्हें दिलासा दे रहे हैं कि आप लगातार चुनाव जीतते आए हो. टिकट ही काटा है, कोई हार तो नहीं गए. भाजपा में सक्रिय रहोगे, तो आगे भी बड़े चांस मिलेंगे. शायद देवेंद्र वर्मा ने उनकी सलाह मान ली है.
लोकसभा लड़वाने की तैयारी में महापौर गुट
दूसरा नया गणित खंडवा जिले की राजनीति में बैठ रहा है कि दो गुट खुलकर सामने हो गए हैं. सरेआम भाजपा में पदाधिकारी छीनने की होड़ इन दोनों गुटों में लगी है. सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल अपना नया खेमा नंदकुमार चौहान के बाद विरासत में लेकर आए हैं. यह बात अलग है कि नंदकुमार चौहान के बेटे खुद इसमें शामिल नहीं हैं. वे भी टिकट के अभाव में मुंह फुलाकर भाजपा से अलग बैठे थे.
अब स्थिति यह है कि उन्हें कोई नहीं पूछता. खंडवा में दूसरा गुट महापौर अमृता यादव का चल रहा है. मध्यप्रदेश की सरकार में थोड़ी पूछ परख होने के कारण इन्होंने जिला अध्यक्ष भी अपना बनवा लिया. दो पूर्व विधायक जिनके टिकट काटे थे, वे भी महापौर के साथ हो गए. देवेंद्र वर्मा जैसे पूर्व विधायक ने पिछले दिनों जोरदार तरीके से अपना जन्मदिन मनाया. ऐसा जन्मदिन चार बार विधायक रहते हुए भी नहीं मनाया था. इसके मायने लोग अलग लगा रहे हैं. महापौर गुट देवेंद्र वर्मा को अगला लोकसभा का चुनाव लड़वाने की तैयारी में नजर आ रहा है, ऐसी चर्चा है.
जब कलेक्टर ने कर दी भूरिया की किरकिरी
बीते दिनों झाबुआ में नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों की जब्ती और विशेष रूप से सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल करने के विरोध में जिला कांग्रेस के वरिष्ठ आदिवासी नेता व पूर्व प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के नेतृत्व में किए गए प्रदर्शन के दौरान भूरिया कलेक्टर के रवैये पर बुरी तरह उखड़ गए. वे कलेक्टर या अपर कलेक्टर को ज्ञापन देना चाहते थे, मगर एक घंटे की प्रतीक्षा के बाद आए भी तो एसडीएम. यह बात भूरिया को अपनी तौहिन लगी. इस पर भूरिया एसडीएम के बजाए किसी चतुर्थ वर्ग कर्मचारी को ज्ञापन देने पर अड़ लिए, लेकिन ऐसा कोई कर्मचारी भी लेने को तैयार नहीं हुआ. अंतत: भूरिया कलेक्टर पर भड़ास निकालते बिना ज्ञापन दिए चलते बने
