इंदौर: पिछले कुछ वर्षो से शहर में लगातार विकास किया जा रहा है. इसको लेकर सबसे अधिक कार्य सड़क चौड़ीकरण को लेकर किए जा रहे है. लेकिन इस में अधिकांश आम और निम्न वर्ग के लोगों का नुकसान हो रहा है.एलआईजी चौराहे से रिंग रोड़ की ओर मात्र पांच सौ मीटर जाने पर मालवीय नगर है. यह क्षेत्र वार्ड क्रमांक 30 में आता है मालवीय नगर में उस समय हलचल मच गई जब नगर निगमकर्मी हाथों में इंच टेप और कलर की डिब्बी लिए पहुंचे. सड़क की नप्ती कर मकानों पर मीटर अंकित किए जाने लगे. पुछने पर पता चला कि फिलहाल सड़क की चौड़ाई नाप कर दोनों तरफ बने मकानों पर लिखी जा रही है और जल्द ही साठ फीट सड़क का कार्य शुरू हो जाएगा.
इस सुचना पर यहां के रहवासियों के चेहरों पर मायूसी छा गई क्योंकि एक तरफ बने मकान आधे से ज़्यादा टूट जाएंगे तो दूसरी तरफ बने सभी मकान एक इंच भी बाकी नहीं रहेंगे. वर्षों से यहां रह रहे लोगों में अपने घर और रोज़गार उजड़ने का खौफ बन गया है. एक सड़क विकास के लिए सैकड़ों लोग बे-घर किया जाएगा. अपने आशियाने को बचाने के लिए यहां के रहवासी संगठित हो कर क्षेत्र विधायक रमेश मेदौला से गुहार लगाने पहुंचे. इस पर मेंदौला ने निरीक्षण करने आने की बात कही है. तब क्या होगा पता नहीं फिलहाल तो सभी की रातों की नींदें उड़ी हुई है. अब सवाल यह उठता है कि जब वर्षों पुराना मास्टर प्लान तय था तो अधिकारियों ने पैसा हजम कर कॉलोनाईज़र को अनुमति क्यों दी जिसका खमियाज़ा आज आम जनता को भुगतना पड़ रहा है.
इनका कहना है…
हम विकास के लिए मना नहीं कर रहे है. हमारे घरों के पीछे सीलिंग की जमीन है. फ्लैट देने के बजाए हमें यही जगह दे दो. जैसे तैसे हम अपने घर बना कर गुजर बसर कर लेंगे.
– राकेश ठाकुर
सभी गरीब लोग हैं. सुबह कमाते है,ं शाम को खाते हैं. हम चाहते हैं यहां के लोगों का कम से कम नुकसान हो वरनाा लागों की मुसीबतें बढ़ जाएंगी. हमने क्षेत्रीय विधायक से भी गुहार लगाई है.
– मीना ठाकुर
हमारी पट्टी अठ्ठारा फीट की है. जो सड़क विकास में पूरी तरहा उजड़ रही है. कई लोगों के रोज़गार भी यही हैं. एक घर बनाने में पूरा जीवन लग जाता है सरकार इसे उजाड़े तो नहीं.
– गौरी बी
कपड़े प्रेस कर मजदूरी करते हैं. जैसे-तैसे परिवार चल रहा है. घर और रोज़गार दोना ही छिन जाएगा. हम कहां जाएंगे. हमारे ही घरों के पीछे विकास प्राधिकरण की जमीन है हमे वहां बसा दो.
– ललिता चौहान
यहां से हटा दिया तो कहां जाएंगे. किराया भी नहीं भर सकती. मैं घर में अकेली हूं. काम कर बच्चे पाल रही हूं. आठ दस हज़ार में उनके पालन और शिक्षा कैसे पूरी करूंगी.
– नीतू रधुवंशी