इंदौर:इंदौर लेखिका संघ के कार्यक्रम साहित्य सृजन यात्रा में 80वर्ष पूर्ण कर चुके साहित्यकारों ने अपने अनुभव सुनाए।हिन्दी साहित्य समिति में राष्ट्र कवि सत्यनारायण सत्तन ने छठवीं क्लास में लिखी अपनी पहली कविता “ कविताओं के फूलों से मैं देवों का पूजन करता हूँ, कविताओं की माला देवी सरस्वती को अर्पण करता हूँ, से संबोधन शुरू किया।” उन्होंने कहा नारी अगर साहित्य पर बात करे तो ऐसा लगता उसका जीवन ही काव्य है।वो सरस्वती है क्योंकि वो सरस है वती है रसवती भी है।सूर्यकांत नागर ने कहा लेखन की अभिव्यक्ति उन्हें दादाजी से विरासत में मिली। भाषा कौशल का प्रभाव संस्कृति, वातावरण, परिवेश से पड़ता है। हरेराम वाजपेयी ने कविता “उठना ऊपर इतना कि आसमान भी झुक जाए इतना ऊपर कि सूरज का रथ भी रुक जाए, से सदस्यों को प्रेरित किया।शोभा दुबे ने कहा अब है हमारी बारी ! इस कालखंड में सार्थक लेखन से करें नई शुरुआत।
व्हील चेयर से ओजस्वी संदेश
93 वर्षीय डॉ कृष्णा अग्निहोत्री ने व्हील चेयर से पुरज़ोर वाणी में कहा कि उनका लेखन यथार्थ के अनुभवों पर रहा हाँ विस्तार देने के लिए काल्पनिक लिखना पड़ता है लेकिन मूल भाव मौलिक होना चाहिए। जो मन में आए उसे छिपाएँ नहीं शब्दों में ढाल देना चाहिए।अध्यक्षीय उद्बोधन विनीता तिवारी ने, संस्था परिचय संध्या रायचौधरी ने दिया। संचालन डॉ संध्या जैन ने सरस्वती वंदना नवनीत जैन ने पेश की।अतिथियों का परिचय सुरेखा भारती,कीर्ति सिंह गौड़, डिंपल अग्रवाल, डॉ उषा गौर, प्रभा जैन, डॉ अल्पना आर्य ने दिया।आभार मंजुला भूतड़ा ने माना।कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्यकार मौजूद थे.