धारा 52 से पहले कुलगुरू का इस्तीफा हुआ तो रेक्टर की लगेगी

ग्वालियर चंबल डायरी
हरीश दुबे

जीवाजी यूनिवर्सिटी में अनिश्चितता की स्थिति बरकरार है। कुलगुरु भोपाल जाकर मेल मुलाकात कर आए हैं। हालांकि वहां से लौटने के बाद भी वे पद पर बने हुए हैं, हालांकि उनका ज्यादा दिन तक कुर्सी पर रहना मुश्किल है। एक ओर यूनिवर्सिटी के गलियारों में उनके इस्तीफे से लेकर उन्हें पद से हटाए जाने का इंतजार किया जा रहा है वहीं उनका स्थान लेने के लिए कई वरिष्ठ प्रोफेसरों ने अपने प्रयास तेज कर दिए हैं। माना यह जा रहा है कि कुलगुरु प्रो. अविनाश तिवारी यदि धारा 52 लागू होने से पहले ही इस्तीफा दे देते हैं तो रेक्टर प्रो. डीएन गोस्वामी को कार्यभार सौंपा जा सकता है। यदि धारा 52 लागू होती है तो कुलगुरु की तो कुर्सी जाएगी ही, यूनिवर्सिटी की कार्यपरिषद और स्थायी समिति भी स्वत: ही विसर्जित हो जाएगी। ऐसी स्थिति में किसी वरिष्ठ प्रोफेसर को कार्यभार सौंपा जा सकता है। वर्षों से कुलपति बनने का सपना संजोए प्रोफेसरों ने राजनीतिक से लेकर अकादमिक क्षेत्र की हस्तियों से सिफारिश लगवाना शुरू कर दिया है।

नई कार्यकारिणी में जगह बनाने करना पड़ेगा इंतजार…

कमल दल में जिला स्तर पर नेतृत्व परिवर्तन के बाद पदाभिलाशी नेताओं को संभावित नई कार्यकारिणी में एडजस्ट होने की उम्मीद बंधी थी लेकिन सत्तारूढ़ दल में जिला उपाध्यक्ष और महामंत्री बनने का ख्वाब संजोए नेताओं को चार पांच महीने इंतजार करना पड़ सकता है। दरअसल, प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही नई जिला कार्यकारिणी के गठन का सिला बनने की उम्मीद है और इसमें वक्त लग सकता है तब तक जयप्रकाश राजौरिया और प्रेमसिंह राजपूत अपने पूर्ववर्तियों की कार्यकारिणी से ही काम चलाएंगे। नई कार्यकारिणी भले ही देर से बने लेकिन सत्तारूढ़ दल की नई स्थानीय टीम में जगह पक्की करने के लिए जुगाड़ बिठाने के सभी भेदों पर दावेदारों का होमवर्क चालू आहे।

इस बार नकल माफिया के मंसूबे शायद ही पूरे हो पाएं…

नकल माफिया के लिए चंबल कभी पूरे देश प्रदेश में चर्चित रहा है लेकिन इस बार नकल माफिया के मंसूबे शायद ही पूरे हो पाएं। दरअसल बीस दिन बाद शुरू हो रहीं बोर्ड परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए प्रशासन कुछ ऐसे कदम उठाने जा रहा है जो इससे पहले अमल में नहीं आए। मसलन सभी संवेदनशील परीक्षा केंद्रों को सीसीटीवी कैमरों की नजर में रखने की तैयारी की गई है। अकेले ग्वालियर जिले की ही बात करें तो प्रशासन ने यहां 7 अतिसंवेदनशील और 41 संवेदनशील परीक्षा केंद्र चिन्हित किए हैं। शिक्षा विभाग के अफसरान भी इस बात को मानते हैं कि यहां तमाम सख्ती के बावजूद धड़ल्ले से नकल होती रही है। इन 48 परीक्षा केंद्रों पर परीक्षा कक्ष से लेकर बाहर तक कैमरे तो लगाए ही जाएंगे, अतिरिक्त पुलिस फोर्स तैनात करने की भी तैयारी है। इंतजाम कामयाब हुए तो चंबल पर लगा नकल माफिया का दाग धुल सकता है।

इस बार खुद व्यापारी नहीं चाहते कि मेला अवधि बढ़े

हर साल ज्यों ही ग्वालियर व्यापार मेला की समापन तिथि समीप आती है, वैसे ही मेला व्यापारी संघ दुकानदारों को घाटा और मौसम की मार जैसे तमाम तर्क देते हुए मेला की अवधि कम से कम एक हफ्ते के लिए बढ़ाने की मांग करते हुए अधिकारियों पर दवाब बनाने लगता है लेकिन इस बार खुद मेला व्यापारी संघ नहीं चाहता है कि मेला को एक्सटेंशन टाइम दिया जाए। मेला व्यापारी संघ के पदाधिकारी अफसरों से कह चुके हैं कि मेला तयशुदा तारीख को ही खत्म कर दिया जाए। दरअसल, इन मेला व्यापारियों को तकलीफ है कि मेला अवधि बढ़ने पर सिर्फ एक विशेष सेक्टर को ही फायदा होता है, बाकी सेक्टरों के कारोबारियों के खाते में तो सिर्फ बढ़ा हुआ किराया और अतिरिक्त बिजली पानी बिल का भुगतान ही आता है।

आम बजट से छह साल पुराना इंतजार पूरा होने की उम्मीद

वर्षों से ग्वालियर श्योपुर ब्रॉडगेज रेल लाइन का काम पूरा होने का इंतजार किया जा रहा है ताकि इस रूट पर बस एवं अन्य साधनों से रोजाना सफर करने वाले दस हजार लोगों की मुश्किलें आसान हो सकें लेकिन निर्मला सीतारमन द्वारा प्रस्तुत आम बजट ने छह साल पुराना यह इंतजार खत्म होने की राह आसान कर दी है। दरअसल इस रूट पर कैलारस से श्योपुर तक 135 किमी का काम पैसों के अभाव में अटका हुआ था। आम बजट में ग्वालियर श्योपुर ब्रॉडगेज रेल लाइन के लिए 450 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं। ब्रॉडगेज का काम पूरा होते ही 190 किमी का यह सफर सिर्फ साढ़े तीन घंटे में पूरा होना संभव होगा। प्रदेश के सुदूर में स्थित श्योपुर जिले की ग्वालियर से कनेक्टविटी बढ़ेगी और इस आदिवासी बाहुल्य जिले की तरक्की के नए रास्ते खुलेंगे।

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