पाकिस्तान के बलूचिस्तान में जो कुछ हो रहा है उससे साफ है कि वहां गृह युद्ध जैसे हालात हैं. मौजूदा स्थिति में भारत को सतर्क रहना होगा. समस्या सिर्फ बलूचिस्तान में ही नहीं हैं, वहां खैबर पख्तुन, पंजाब और सिंध प्रांत में भी अशांति है.आए दिन पाकिस्तान में आतंकी घटनाएं और बम विस्फोट हो रहे हैं. जाहिर है वहां हालत बद से बदतर होते जा रहे हैं.ऐसे में भारत का सतर्क और चिंतित होना स्वाभाविक है.बहरहाल, सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि ‘हिट-एंड-रन’ हमलों से लेकर इस सप्ताह जाफर एक्सप्रेस के अपहरण की घटना तक, बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी एक ऐसे संगठन के रूप में सामने आई है जो सामरिक सटीकता के साथ दुस्साहसिक हमले कर सकती है.हाल की सैनिकों से भरी ट्रेन के अपहरण की घटना अभूतपूर्व है. इस समय की बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी की तुलना एक समय के खूंखार आतंकी संगठन लिट्टे से की जा सकती है.
अलगाववादी, विद्रोही आंदोलन इस दक्षिण-पश्चिमी प्रांत के लिए कोई नई बात नहीं है. यहां सरकारों/सेना के बीच कम से कम चार बार संघर्ष दर्ज किए गए हैं, जिनमें से आखिरी संघर्ष 1973-1977 के बीच हुआ था. दरअसल, बीएलए को आम लोगों से सहानुभूति मिलती है क्योंकि पाकिस्तानी फौज बलूच लोगों पर अत्याचार करती है. बलूचिस्तान पाकिस्तान से लगा हुआ एक अलग प्रांत है, जो खुद को पाकिस्तान का हिस्सा नहीं मानता.मगर पाकिस्तान ने 1947 में जबरन इसका विलय करवा दिया था.तब से वह बलूचिस्तान पर अपना अधिकार जताता है. पाक वहां की संपत्ति का खुद भी दोहन कर रहा है और चीन को भी खनन का अधिकार सौंप दिया है. इससे बलूचिस्तान के निवासी चीन और पाकिस्तान दोनों से खफा रहते हैं.बलूचिस्तान का मानना है कि यदि पाकिस्तान और चीन उसका दोहन करना बंद कर दें और दखलंदाजी न करें तो वह अमीर बलूचिस्तान बन सकता है. बलूचों का कहना है कि पाकिस्तान और चीन ने उसकी अमूल्य संपदाओं का दोहन करके बलूचिस्तान की हालत खस्ता कर रखी है. इसलिए यहां के लोग पाकिस्तान और चीन से आजादी चाहते हैं. बलूचिस्तान और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से संघर्ष होता चला आ रहा है. 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश के विलय के बाद बलूचिस्तान के आंदोलन ने और तेजी पकड़ ली थी.बलूचिस्तान के लोगों ने खुद को मजबूत करने के लिए करीब 25 साल पहले सन 2000 में अपनी सशस्त्र सेना तैयार की. इसके 6000 हजार से ज्यादा हाईटेक हथियारों से लैस अपने लड़ाके हैं.इसे बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी (बीएलए) कहते हैं. यह बलूचिस्तान का सबसे बड़ा आर्म्ड ग्रुप कहा जाता है. बलूचिस्तान में विद्रोह का एक कारण चीन भी है. पाकिस्तान ने यहां एक बंदरगाह भी बना रखा है.इसका नाम ग्वादर है. यह रणनीतिक लिहाज से पाकिस्तान के लिए अहम बंदरगाह है, जिसका अधिकार इसने चीन को भी दे रखा है. चीन इसी बंदरगाह के माध्यम से बलूचिस्तान की अकूत संपत्तियों को दोहन कर ले जा रहा है. इसलिए बीएलए अक्सर ग्वादर बंदरगाह पर भी हमले करता रहता है.चीन की तमाम कंपनियां बलूचिस्तान में खनन कर रही हैं.इसके बदले में पाकिस्तान चीन से मोटी रकम लेता है,मगर बलूचिस्तान को फूटी कौड़ी तक नहीं मिलती.
ऐसे में बलूचिस्तानी इस बात से खफा हैं कि उनके खनिजों का दोहन कर पाकिस्तान अपनी जेब भर रहा है और चीन भी मालामाल हो रहा है, जबकि इन संपदाओं पर जिन बलूचों का हक है, वह लगातार गरीब होते जा रहे हैं. कुल मिलाकर वहां इतने खतरनाक हालात हैं कि पाकिस्तानी फौज इस पर काबू नहीं कर पा रही है.ऐसे में भारत को अतिरिक्त सतर्कता रखनी होगी.