
नयी दिल्ली, 03 फरवरी (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने प्रयागराज महाकुंभ भगदड़ को चिंता का विषय और एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना माना, लेकिन इससे संबंधित जनहित याचिका पर विचार करने से सोमवार को इनकार कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने महाकुंभ श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देशों और विनियमों के उचित कार्यान्वयन का निर्देश देने की मांग वाली अधिवक्ता विशाल तिवारी की याचिका कर सुनवाई करने से इनकार कर दिया।
हालांकि, पीठ ने याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय जाने की अनुमति देते हुए कहा, “हम याचिका पर विचार नहीं कर रहे हैं। आप उच्च न्यायालय जा सकते हैं।”
मौनी अमावस्या के अवसर (29 जनवरी को) पर पवित्र स्नान के दौरान भगदड़ के दौरान कम से कम 30 लोगों की जान चली गई और 60 घायल हो गए थे। इस घटना के बाद यह याचिका दायर की गई थी।
सुनवाई के दौरान अधिवक्ता तिवारी ने यह दावा करते हुए निर्देश मांगे कि भगदड़ की ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं। उन्होंने नीतियां और नियम बनाने के लिए निर्देश देने की भी मांग की।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने जनहित याचिका का विरोध करते हुए कहा कि पहले से इस ही एक न्यायिक आयोग(इस मामले में) है।
श्री रोहतगी ने आगे कहा, “घटना की न्यायिक जांच चल रही है। इसी तरह की एक याचिका उच्च न्यायालय में दायर की गई है।”
याचिकाकर्ता ने सभी राज्य सरकारों को अपने-अपने राज्यों से कुंभ में जाने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश देने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता विशाल तिवारी ने सभी राज्य सरकारों को महाकुंभ श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करनेक का निर्देश देने की शीर्ष अदालत से गुहार लगाई थी।
याचिका में घटना पर स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश देने और अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ उनकी लापरवाही के लिए कानूनी कार्रवाई शुरू करने का निर्देश देने की भी मांग की गई थी।
श्री तिवारी ने अपनी याचिका में कहा कि भगदड़ सरकारी अधिकारियों की चूक, लापरवाही और प्रशासन की पूरी तरह विफलता के कारण लोगों की खराब स्थिति और भाग्य को दर्शाती है।
जनहित याचिका में दावा किया गया है कि जब भी ऐसी घटनाएं होती हैं तो ज्यादातर आम और गरीब लोग ही इसके शिकार बनते हैं। किसी भी कार्यक्रम या समारोह में जाने वाले अति विशिष्ट लोगों के लिए अलग से व्यवस्था की जाती है। यहां तक कि किसी अधिकारी, राजनेता या अति विशिष्ट लोगों के गुजरने पर आम लोगों की आवाजाही भी रोक दी जाती है।
राजस्थान के भरतपुर के निवासी अधिवक्ता श्री तिवारी की इस याचिका में सभी राज्य सरकारों को अपने-अपने राज्यों से कुंभ में जाने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश देने की मांग की गई थी।
उनकी याचिका में कहा गया है, “महाकुंभ में श्रद्धालुओं की सुरक्षित यात्रा के लिए सभी राज्यों को सामूहिक रूप से काम करने के निर्देश दिए जाएंगे। सभी राज्य प्रयागराज में महाकुंभ के लिए उचित तरीके से अपने सुविधा केंद्र स्थापित करेंगे। ये केंद्र अपने राज्यों से आने वाले लोगों को सुरक्षा उपायों और दिशा-निर्देशों के बारे में बुनियादी जानकारी प्रदान करेंगे और प्रदर्शित करेंगे। आपात स्थिति में ये केंद्र किसी भी सहायता के लिए तैयार रहेंगे।”
याचिका में कहा गया है कि सार्वजनिक घोषणाओं, दिशा दिखाने वाले दिशा सूचक बोर्ड, अन्य भाषाओं में दिशा सूचक बोर्ड की व्यवस्था भी की जानी चाहिए ताकि विभिन्न भाषा और संस्कृति के लोगों को परेशानी का सामना न करना पड़े।
याचिका में कहा गया है कि सभी राज्य सरकारें श्रद्धालुओं द्वारा पालन किए जाने वाले बुनियादी दिशा-निर्देशों और सुरक्षा उपायों के बारे में एसएमएस, व्हाट्सएप संदेश भेजने के लिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से संदेशों की व्यवस्था भी करें, ताकि लोगों को आसानी से जानकारी मिल सके। उत्तर प्रदेश सरकार के साथ समन्वय में सभी राज्य सरकारें प्रयागराज महाकुंभ में डॉक्टरों और नर्सों की अपनी छोटी मेडिकल टीम भी तैनात करें ताकि मेडिकल इमरजेंसी के समय मेडिकल स्टाफ की कमी न हो।
याचिका में यह भी कहा गया है कि अति विशिष्ट लोगों की आवाजाही से आम श्रद्धालुओं की सुरक्षा पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए और महाकुंभ में श्रद्धालुओं के प्रवेश और निकास के लिए अधिकतम स्थान उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि वर्ष 1954 के कुंभ मेले में भगदड़ दुर्घटना से लेकर उत्तर प्रदेश में 2025 के महाकुंभ में मची भगदड़ तक यह स्पष्ट और प्रत्यक्ष है कि हमारे देश की प्रशासनिक गतिविधियों में कोई बदलाव नहीं आया है। जोकि उचित देखभाल, अग्रिम मरम्मत और विकास गतिविधियों से बचा जा सकता था।