० दर्शक एवं श्रोता वर्ग का कई छुए और अनछुए पहलुओं पर हुआ ज्ञानवर्धन
नवभारत न्यूज
सीधी 9 जनवरी। सिनेमा और साहित्य का संबंध बड़ा जटिल है और इससे जुड़े सवाल दशकों से चर्चा का केन्द्र रहे हैं। विंध्य इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन सिनेमा में नई कहानियों की खोज विषय पर केन्द्रित चर्चा शुरू हुई तो दर्शक श्रोता वर्ग का इसके कई छुए और अनछुए पहलुओं पर ज्ञानवर्धन हुआ।
जाने माने फिल्ममेकर अविनाश दास ने एक सवाल के जवाब में कहा कि जब आपको लगता है कि आपकी कहानी में दम है और उसपर फिल्म बननी चाहिए तो आपको बाजार में कहानी को बेचने की कला भी आनी चाहिए। देश की प्रसिद्ध लेखिकाओं में शुमार गीताश्री ने कहा कि साहित्य में हम आइडिया और अनुभव से कहानियां उठाते हैं और इसमें इतने धक्के/झटके शामिल होते हैं कि आप केवल सिनेमा के हिसाब से इसे नहीं देख सकते। हिन्दी सिनेमा में अच्छी और साहित्यिक कहानियों की कमी को लेकर उन्होंने कहा कि साहित्यकार और लेखक अपनी कृतियों को लेकर लालची हैं कि फिल्मकार को उतनी छूट देने को तैयार नहीं होते। उन्हें समझना होगा कि माध्यम बदलने पर काफी कुछ बदल जाता है। सिनेमा बनाना भी एक संस्कार है और देखना भी संस्कार है। उन्होंने बेहद ही खूबसूरत बात कही कि एक लेखिका होने के नाते किसी कहानी को जन्म देने के बाद वो गर्भनाल काट चुकी होती हैं और फिर उसपर कोई नाटक या फिल्म आनी है तो उसे स्वतंत्र छोड़ देना होगा। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि लेखक रचते समय पाठकों के बारे में नहीं सोचता। फिल्मकार स्वार्थी नहीं होता, वो पूरे दर्शक वर्ग/बाजार को सोचते हुए फिल्म बनाता है। फिल्म और साहित्य दोनों की अलग दुनिया है और दोनों को साथ आने के लिए साहित्य को थोड़ा कम्परमाइज करना होगा। इस सत्र का संचालन असिस्टेंट प्रोफेसर अभिषेक त्रिपाठी ने किया। इससे पहले कई क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फिल्मों का प्रदर्शन हुआ। इटली से आए फिल्म निर्देशक क्रिस्टियानो से मुखातिब हुए। अन्य फिल्मकारों के साथ भी काफी अच्छी बातचीत हुई।
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रिलीज तक सामंस्य बनता है तो चीजे आसान होती है
अविनाश दास ने विमल मित्र की कहानी पर बनी गुरुदत्त की फिल्म साहेब बीवी और गुलाम, फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी मारे गए गुलफाम पर बनी फिल्म तीसरी कसम का किस्सा सुनाते हुए बताया कि कैसे लेखकों और फिल्ममेकर्स ने तालमेल बिठाया। बाल फिल्म निर्देशिका देवयानी अनंत ने कहा कि देवयानी अनंत ने कहा कि बिजनेस मॉडल फॉलो करना जरूरी है नहीं तो अगली कहानी कैसे कह पाएंगे। इसलिए कलेक्टिव डिसीजन जरूरी है। वन लाइनर, कहानी और स्क्रिप्ट से फिल्म प्रोडक्शन, प्रमोशन और रिलीज तक सामंजस्य बनता है तो चीजें आसान होती हैं।
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