महाकौशल की डायरी
अविनाश दीक्षित
पवार बहुल आबादी वाले बालाघाट में पिछले सप्ताह से अलग तरह की सियासती गर्माहट बनी हुई है। मामला पूर्व सांसद कंकर मुंजारे का है, जिन्हें पिछले दिनों सहकारी सोसायटी पदाधिकारियों से मारपीट करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है। उनकी गिरफ्तारी के विरोध में 31 दिसम्बर को बालाघाट बंद का कुछ संगठनों ने आव्हान किया। सुबह महज 11 बजे तक के लिए आयोजित बंद की सफलता-विफलता को लेकर सवाल उठाये गये। मुंजारे विरोधियों ने बंद को असफल बताया तो समर्थकों ने सफल निरूपित किया। इस सबके बीच जिले में भारी संख्या में पुलिस और प्रशासनिक अफसरों की तैनाती और उनकी सक्रियता को लेकर चर्चा होती रही। एक ओर जहां मुंजारे समर्थक रैली निकालकर नारेबाजी करते रहे वहीं जिले के शहरी क्षेत्र के साथ ही वारासिवनी, परसवाड़ा, सहित अन्य समीपी क्षेत्रों में चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात की गई।
बड़े प्रशासनिक अफसर हर गतिविधियों पर पल-पल की अपडेट लेते रहे। 31 दिसम्बर को जिले में नजारा यह था कि प्रदर्शनकारी जितने नहीं थे, उससे दोगुनी पुलिस और प्रशासनिक टीम सड़कों पर नजर आ रही थी। बंद का आव्हान और उसकी सफलता पर प्रश्न भी दागे गये, किसी ने सुबह 11 बजे तक की समयसीमा तय करने पर तंज कसा तो किसी ने प्रदर्शनकारियों की अल्प संख्या पर व्यंग्य बाण छोड़े। बहरहाल बंद सफल रहा अथवा असफल, मसला यह नहीं बल्कि एक छोटे से बंद के आव्हान पर भारी भरकम पुलिस-प्रशासनिक इंतजाम का है।
31 दिसम्बर बीते 2 दिन हो चुके हैं, लेकिन लोग चर्चा कर रहे हैं कि जब बालाघाट बंद को बड़ा आव्हान नहीं माना जा रहा था और श्री मुंजारे की लोकप्रियता के ग्राफ को नीचे बताया जा रहा था, तो फिर जिस तरह से बंद को विफल करने के लिए राजनीतिक घेराबंदी की गई और इसके लिए व्यापक प्रशासनिक इंतजाम क्यों करने पड़े .?, इसकी जरूरत पर सवाल जरूर खड़े किये जा रहे हैं। स्मरण रहे कि पूर्व सांसद कंकर मुंजारे की पत्नी अनुभा मुंजारे कांग्रेस से विधायक हैं, और उनकी लोकप्रियता भी जिले में अच्छी मानी जाती है। श्रीमती मुंजारे ने अपने पति की आनन- फानन में हुई गिरफ्तारी पर प्रशासन और सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किये थे। फिलहाल लोग कह रहे हैं कि संभवत: कंकर मुंजारे की गिरफ्तारी और उससे उपजे असंतोष के मद्देनजर जिला प्रशासन को पुख्ता इंतजाम करने के लिए विवश होना पड़ा गया होगा।
सप्ताह पूर्व अलर्ट फिर भी नहीं किये इंतजाम
इन दिनों महाकौशल में समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की जा रही है। हमेशा की तरह इस कार्य में लगे लोग अपनी रोटियां भी सेंक रहे हैं। तमाम गड़बड़झालों के बीच चल रहे उपार्जन कार्य में तब सवालिया निशान लग गये जब 28 दिसम्बर को हुई बारिश- ओलादृष्टि से लाखों क्विंटल धान भीग गई। वह भी तब जब मौसम विभाग ने एक सप्ताह पूर्व ही मौसम पूर्वानुमान में यह संकेत दे दिया था कि 28 दिसम्बर को जबलपुर में बारिश के साथ ओले गिर सकते हैं।
इस पूर्वानुमान के चलते कलेक्टर दीपक सक्सेना ने दो दिन धान खरीदी पर रोक लगा दी थी। कलेक्टर के फरमान के बावजूद धान खरीदी से जुड़े अधिकारियों ने ना धान के उठाव- परिवहन पर समुचित ध्यान दिया और ना ही खुले में पड़ी धान को बारिश से बचाने के लिए कोई प्रबंध किया, परिणाम स्वरूप हर साल की तरह इस बार भी खाद्यान्न माफिया ना केवल अपने खेल खेलने में सफल रहे, वरन् इसे बदस्तूर जारी भी रखे हैं। फिलहाल जिला कलेक्टर खरीदी केन्द्रों का निरीक्षण कर घपलेबाजी के तार ढूंढ़ रहें हैं, वहीं खाद्यान्न खरीदी के धुरंधर अपनी कला दिखाने से बाज नहीं आ रहे हैं।
