आधुनिकता की दौड़ के चलते गरीबों के चूल्हे ठंडे
जबलपुर:आज का दौर आधुनिकता का दौर है इसके चलते प्रत्येक व्यक्ति इस आधुनिकता की दौड़ में आगे आना चाहता है और उसी के तौर तरीके को अपनाने के साथ चलना ही पसंद करता है। इसी का एक उदाहरण हमारे शहर में साइकिल रिक्शा से ई- रिक्शा की तरफ आ गया है, जिसमें बैटरी से चलने वाली रिक्शा का चलन पूरे शहर में देखने को मिल रहा है। जिसके कारण जो साइकिल रिक्शा चला करते थे, वह अब पूरी तरह से बंद होते हुए नजर आ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर ई- रिक्शा के चलन के कारण जो साइकिल रिक्शा चला कर अपना जीवन यापन किया करते थे, उनसे अब रोजी रोटी भी छिनते हुए नजर आ रही है और उन गरीबों की इतनी शामत ही नहीं है कि वह ई-रिक्शा को खरीद पाएं और उसको चला पाएं।
अब कोई भी नहीं पूंछता इनको
ई- रिक्शा चलन के कारण जो साइकिल रिक्शा अभी भी सडक़ों पर दिखाई देते हैं, वह मजदूर बेचारे दो वक्त की रोटी के लिए साइकिल रिक्शा चलाते हैं। लेकिन उसके बावजूद भी इन साइकिल रिक्शा पर सवारी करने से लोग अब दूर है रहे हैं यहां तक की कोई अब इन साइकिल रिक्शा चालकों को लोग पूछते भी नहीं है और इस पर सवारी करने के लिए भी साफ इनकार कर देते हैं। ई- रिक्शा के चलन से साइकिल रिक्शा की यह हालत हो चुकी है कि अब इनका चलन धीरे-धीरे पूरी तरह से बंद होने की कगार पर पहुंच गया है।
खड़े- खड़े हो रहे कबाड़
मदन महल क्षेत्र में खड़े साईकिल रिक्शा अब कबाड़ में तब्दील होते नजर आ रहे है। ई-रिक्शा के चलन के कारण शहर में अब नाम मात्र के ही साइकिल रिक्शा नजर आते है। समय और मूल्य बदलने के कारण जो असहाय व्यक्ति साइकिल रिक्शा चलाकर अपना गुजार-बसेरा करते थे। उनका रोजगार भी आज के आधुनिक दौर में इलेक्ट्रिक रिक्शा के चलन से बंद हो गया है। यही कारण हैं कि शहर में साइकिल रिक्शा चलना बंद हो गए हैं और इन रिक्शों को अब कबाड़ में बदलता देखा जा रहा है। जो गरीब रिक्शा चलाकर दो वक्त की रोटी खाते थे, वे आज मजदूरी करके अपना पेट पाल रहे हैं।