नयी दिल्ली 12 दिसंबर (वार्ता) भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) डॉ. वी. अनंत नागेश्वरन ने फिर से कहा है कि भारत चालू वित्त वर्ष के लिए अनुमानित 6.5 से 7 प्रतिशत की वृद्धि हासिल करने की राह पर है और मध्यम से दीर्घ अवधि में अर्थव्यवस्था के सतत विकास पर ध्यान केंद्रित करने के महत्व पर जोर दिया।
डॉ नागेश्वरन ने आज यहां भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा आयोजित वैश्विक आर्थिक नीति फोरम 2024 में कहा “ भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे खुली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जिसमें भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 45.8 प्रतिशत अकेले व्यापार से आता है।” इस फोरम का विषय था ‘वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए दशकीय प्राथमिकताएँ’।
उन्होंने कहा कि 1991-92 के बाद से भारत का उदारीकरण काफी बढ़ गया है, जब सकल घरेलू उत्पाद में व्यापार का योगदान केवल 17.1 प्रतिशत था। उन्होंने कहा कि भारत अब किसी भी अन्य देश की तुलना में वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं का कहीं अधिक हिस्सा है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि में नरमी के बारे में हाल की चिंताओं को संबोधित करते हुए डॉ. नागेश्वरन ने कहा कि अनिश्चित वैश्विक आर्थिक माहौल भारत के लिए एक स्थायी चुनौती है और हमें अनिश्चितताओं से निपटने के लिए घरेलू प्रयासों को दोगुना करने की जरूरत है।
उन्होंने पूंजी निर्माण को मजबूत करने के महत्व पर भी जोर दिया और आशा व्यक्त की कि बेहतर बैलेंस शीट और लाभप्रदता के कारण अगले पांच वर्षों में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने की उम्मीद है। उन्होंने उत्पादक रोजगार पैदा करना, कौशल अंतर की चुनौती का समाधान करना, कृषि क्षेत्र की पूरी क्षमता का दोहन करना, विनियमन के माध्यम से भारत के विनिर्माण और एमएसएमई विकास को बढ़ाना, भारत की ऊर्जा सुरक्षा और संक्रमण का प्रबंधन करना, ग्रामीण-शहरी विकास को संतुलित करना, उच्च गुणवत्ता वाले पूंजीगत व्यय को निरंतर समर्थन देना और नवाचारों, अनुसंधान एवं विकास और गुणवत्ता चेतना के माध्यम से ‘मेक इन इंडिया’ को उच्च गुणवत्ता का पर्याय बनाना महत्वपूर्ण चालक होंगे जो 2047 तक विकसित भारत की दिशा में विकास को बनाए रखेंगे।
डॉ नागेश्वरन ने भारत के युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य की बढ़ती चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला, जो मोबाइल फोन की लत, गतिहीन जीवन शैली और अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के सेवन से बढ़ गई है। उन्होंने कहा “यह केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज और निजी क्षेत्र की भी जिम्मेदारी है। अगर भारत को जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाना है, तो भारतीयों को न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए, बल्कि मानसिक रूप से भी स्वस्थ होना चाहिए।”