रुपए का अवमूल्यन रोकना बड़ी चुनौती

भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी मौद्रिक समीक्षा में 11 वीं बार रेपो और रिवर्स रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है. भारतीय रिजर्व बैंक के फैसले से कर्ज महंगे नहीं होंगे तथा मुद्रास्फीति पर लगाम लगेगा. द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा पेश करते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि मूल्य स्थिरता लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन विकास भी जरूरी है. आरबीआई गवर्नर ने कहा कि मौद्रिक नीति समिति ने 4:2 के बहुमत से नीतिगत रेपो रेट को 6.5 $फीसदी पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया है.

आरबीआई 11 बार से प्रमुख नीतिगत ब्याज दर रेपो रेट को 6.5 फीसदी पर यथावत रखे हुए है. महंगाई और विकास के बारे में बोलने के साथ ही भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने एक महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने कहा कि इस समय एक चिंता मुद्रा विनिमय की भी है. जाहिर है आरबीआई गवर्नर का इशारा डोनाल्ड ट्रंप के उस ऐलान पर था, जिसमें उन्होंने कहा था कि ब्रिक्स देशों की मुद्रा को अमेरिका मान्यता नहीं देगा. डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि जो देश डॉलर से व्यापार नहीं करेंगे, अमेरिका उनके लिए टैक्स 100 $फीसदी कर देगा. जाहिर है ट्रंप के इस ऐलान से मुद्रा विनिमय के क्षेत्र में हलचल मची हुई है.ब्रिक्स में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं. दरअसल,बैंक ऑफ इंटरनैशनल सेटलमेंट्स के 2022 के नोट के मुताबिक 90 प्रतिशत मुद्रा व्यापार में डॉलर शामिल था. करीब 60 प्रतिशत विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर में हैं. दूसरा, किसी मुद्रा को आरक्षित मुद्रा का दर्जा देने की इच्छा का कोई खास अर्थ नहीं है.इसके अलावा अब तक संभावित ब्रिक्स मुद्रा का आकार और उसकी कार्यविधि को लेकर भी कुछ पता नहीं है. ट्रंप शायद ब्रिक्स के सदस्य देशों को हतोत्साहित करना चाह रहे थे.खास तौर पर वह चीन को मुद्रा परियोजना आगे ले जाने देने से रोकना चाहते थे.चाहे जो भी हो भारत को ऐसे प्रयासों से बचना चाहिए. चूंकि चीन एक बड़ी अर्थव्यवस्था है, इसलिए योजना में उसका कद भी बड़ा होगा. हालांकि यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि इसे कैसे तैयार किया गया है.तीसरी बात, कुछ वैश्विक व्यापार समय के साथ युआन में स्थानांतरित हो सकता है क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था का आकार बहुत बड़ा है और उसके व्यापक कारोबारी संबंध हैं.बहरहाल, ऐसा सीमित दायरे में होगा क्योंकि चीन का पूंजी पर तगड़ा नियंत्रण है.मुद्रा भंडार की बात करें तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों के अनुसार 2024 की दूसरी तिमाही में चीनी मुद्रा में करीब 245 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा रखी गई थी जबकि अमेरिकी डॉलर वाला मुद्रा भंडार 6.6 लाख करोड़ डॉलर था.विभिन्न देश कारोबारी लेनदेन की सुगमता और वित्तीय बाजारों की गहराई को देखेंगे जो डॉलर के पक्ष में है.यह बात ध्यान देने लायक है कि अगर डॉलर की स्थिति समय के साथ कमजोर पड़ती है तो इसकी वजह अमेरिकी राजनीति होगी. डॉलर के दबदबे वाली अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना कुछ देशों पर विकल्प तलाशने का दबाव बनाएगी. इतना ही नहीं ट्रंप द्वारा उच्च कर को प्राथमिकता और व्यापार घाटे को समाप्त करने की कोशिश डॉलर के खिलाफ जा सकती है.अमेरिकी व्यापार घाटा शेष विश्व को डॉलर मुहैया कराती है.अगर आपूर्ति में उल्लेखनीय कमी आती है तो दुनिया विकल्प तलाशने पर विचार करेगी. भारत का वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक 20 जनवरी की राह देख रहा है, जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका का प्रशासन संभालेंगे. जाहिर है भारत की चिंता रुपए का अवमूल्यन रोकने की होगी. भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने समीक्षा में अमेरिका की भावी आर्थिक नीतियों के संदर्भ में परोक्ष संकेत दिया है. यह संतोषजनक है कि अंतरराष्ट्रीय आर्थिक उतार-चढ़ाव के मद्देनजर केंद्र का वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक सतर्क है.

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