श्रीनगर, 30 नवंबर (वार्ता) जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता एवं ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक ने उमर अब्दुल्ला सरकार से पिछले कुछ वर्षों में बर्खास्त किये गये कर्मचारियों को बहाल करने का आग्रह किया है।
इससे पहले जम्मू के किश्तवाड़ जिले के एक स्कूल शिक्षक जहीर अब्बास और दक्षिण कश्मीर के कुलगाम के देवसर निवासी स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के फार्मासिस्ट अब्दुल रहमान नाइका को शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 311(2)(सी) के तहत बर्खास्त कर दिया। इस अनुच्छेद के तहत सरकार को स्पष्टीकरण मांगे बिना या उनके आचरण की जांच किए बिना कर्मचारियों को बर्खास्त करने का अधिकार है।
श्री अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री बनने के बाद से इस तरह की बर्खास्तगी का यह पहला मामला है।
मीरवाइज ने ‘एक्स’ पर अपनी पोस्ट में कहा, “दो और सरकारी कर्मचारियों को बिना किसी कानूनी मदद के कलम के वार से नौकरी से निकाल दिया गया! कड़ाके की सर्दी की शुरुआत से पहले ही परिवार बेसहारा हो गये। सजा और डर एक तानाशाही मानसिकता की पहचान है जो हम पर राज कर रही है। निर्वाचित सरकार को इस अन्याय को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए और बिना सुनवाई के भी इस अन्यायपूर्ण तरीके से नौकरी से निकाले गए सभी लोगों को बहाल करना चाहिए।”
सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) की ओर से बर्खास्तगी के आदेश जारी किए जाने के बाद पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के नेताओं ने इस कदम को बेशर्मी भरा अतिक्रमण करार दिया और निर्वाचित सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया।
पीडीपी नेता एवं विधायक वहीद पारा ने कहा, “यह चौंकाने वाला है कि सरकार किस तरह न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद की भूमिका निभा रही है तथा पीड़ितों को उचित सुनवाई का मौका भी नहीं दे रही है। इस तरह की बेशर्मी अस्वीकार्य है और इसे रोका जाना चाहिए। उमर अब्दुल्ला साहब जीएडी के प्रमुख हैं और इन बर्खास्तगी पर चुप्पी को उचित नहीं ठहराया जा सकता है।”
पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती ने कहा, “नव निर्वाचित सरकार मूकदर्शक बनी हुई है और अपने अंगूठे हिला रही है, जबकि सरकारी कर्मचारियों को केवल संदेह और तुच्छ आधार पर नौकरी से निकाला जा रहा है। आजीविका का यह अपराधीकरण बंद होना चाहिए।”
सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस ने हाल ही में बर्खास्तगी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, हालांकि वह अतीत में कर्मचारियों की बर्खास्तगी के खिलाफ मुखर रही है। पार्टी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में ऐसे मामलों की समीक्षा करने का वादा किया था।
गौरतलब है कि पिछले चार वर्षों में, जम्मू-कश्मीर में 76 सरकारी कर्मचारियों को अनुच्छेद 311(2)(सी) के तहत बर्खास्त किया गया है।