आत्मा का मूल स्वभाव ही आनंद: पुण्डरीक महाराज

गोविंदपुरी में श्रीमद्भागवत कथा का पांचवा दिन
ग्वालियर: जब तक जीवन में आनंद है, माया प्रवेश नहीं कर सकती है। आनंद का आशय मौज मस्ती नहीं है। आत्मा का मूल स्वभाव ही आनंद है। जीवन में बाह्य दृष्टि माया है और आत्मदृष्टि अध्यात्म है। यह विचार पुण्डरीक महाराज ने शनिवार को श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन गोविंदपुरी पार्क में व्यक्त किए। इस मौके पर गोवर्धन महाराज का सुंदर विग्रह बनाया गया, जिसके दर्शन कर भक्तों ने पुण्य लाभ अर्जित किया। उन्होंने कहा कि यदि आप सोने-चांदी और हीरे के आभूषण पहनते हैं तो यह प्रदर्शित होता है कि आपने धन कमाया है,लेकिन यदि आप तुलसी का माला पहनते हैं तो पता चलता है कि आपने धर्म कमाया है। तुलसी की माला आपको गलत काम करने से भी रोकती है।

उन्होंने कहा कि तप सेवा सुमरिन के लिए भाव का पवित्र रहना जरूरी है। भगवान को दो भाव पसंद नहीं हैं। यदि आप लड्डू गोपाल की पूजा करते हो तो द्वारिकाधीश को मत पूजो और यदि आप द्वारिकाधीश को पूजते हो तो बालगोपाल को नहीं, क्योंकि भगवान को दो भाव रखने वाले पसंद नहीं है। उन्होंने कहा कि जन्म बंधन है,लेकिन भजन और गुरूकृपा के पंखों से जन्म जन्मों का बंधन खुल जाता है। कामना की पूर्ति से नहीं कामना की निवृत्ति से ही सुख मिलता है।

उन्होंने कहा कि पुत्री का जन्म भाग्य से होता है। पुत्री का जन्म से भाग्य बदल जाते हैं,लेकिन कई बार बेटी की विदाई के बाद सब कुछ हिल जाता है। गौमाता की कृपा भी भाग्य बदलती है। उसकी कृृपा से कितने ही आश्रम चल रहे हैं। हम स्वयं भी गौकृपा से चल रहे हैं। भगवान गोपाल भी गाय से चले। इस मौके पर कथा परीक्षत रैनू विपिन शर्मा, मधु प्रदीप बोहरे, ममता रवि शर्मा, ममता गोस्वामी, शुभम गोस्वामी, मनोज श्रोत्रिय, रोहन दाामिनी, रोहित बोहरे, अमित अदिति, रविशेखर, दीप्ति गौड सहित सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद रहे।

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