विधायक और शहर कांग्रेस कमेटी की तमाम कोशिशें फ्लोर तक नही ला पाई अविश्वास के प्रस्ताव को
सतना।दो साल कुछ महीने पहले जब नगर सरकार का चुनाव हुआ और कुछ लोगों की इच्छा के विपरीत जनता का जनादेश आया तभी शहर के कई स्वयंभू नेता यह कहते सुने गए थे कि अब हम दो साल बाद पदाधिकारियों को बताएगे कि हम क्या?हैसियत रखते हैं.
गौरतलब है कि शहर सरकार चुने जाने के बाद विधानसभा और लोकसभा के चुनाव हुए .इन चुनावों के दौरान आया राम और गया राम के चले प्रदेशव्यापी अभियान के बीच प्रदेश की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने अपने आप को सर्वस्पर्शी बनाते हुए अन्य दलों के छोटे -बड़े नेताओं को अपने साथ जोड़ने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी.यही वजह है कि वर्तमान में जिले की मूल भाजपा अपने आप को हासिए में ही पा रही है. जानकारों की माने तो नगर निगम के अविश्वास प्रस्ताव कांग्रेस पार्षदों की ओर से लाया जरूर गया था,लेकिन इसमें भाजपा की बी टीम और सी टीम के बीच अस्तित्व की मुख्य लड़ाई थी.अंदरूनी तौर पर चरम पर पहुँच चुकी भाजपा की गुटबाजी लोगों को उस समय खुलकर देखने को मिलती जब काग्रेस पार्षदों का अविश्वास प्रस्ताव चर्चा के लिए स्वीकार कर नगर निगम की फ्लोर पर आता.
संयोग रहा कि इस राजनैतिक घटनाक्रम में सारे कदम रणनीति पूर्वक ही उठाए गए बिना बाहरी सुगबुगाहट के सभी विपक्ष के 18 पार्षदों के बीच पहले कई दौर की बैठक कर सहमति बनाने का प्रयास किया गया.अलग-अलग स्तरों पर हुई इन बैठकों की जानकारी पूरी तरह से गोपनीय रखी गई.जब सब मे सहमति बन गई तो सामूहिक रूप से कलेक्टर कार्यालय में पहुँच कर अविश्वास की सूचना दी गई.इस बात की जानकारी नहीं हो सकी कि जब कलेक्टर से भेंट का समय लिया गया तब उन्हें क्या?बताया गया.सूत्रों की माने तो शायद भेंट के उद्देश्य में नगर निगम की व्याप्त अव्यवस्था का जिक्र कर समस्याओं से अवगत कराने की बात कही गई.इसी के बाद शुरू हुआ शक्ति और राजनैतिक कौशल का खेल.
कलेक्टर एवं विहित प्राधिकारी अनुराग वर्मा ने प्रस्ताव की सूचना लेकर निर्णय बाद में बताने का जिक्र कर मामले में थोड़ी अड़चन खड़ी कर दी.हालांकि की आग की तरह फैली इस जानकारी के बाद अविश्वास की संभावना टालने के लिए भाजपा बी टीम के कुछ नेता बिना समय गवाए सक्रिय हो गए .कमजोर कड़ी ढूढ के उसे अपने पक्ष में करने का प्रयास शुरू हुआ.इस काम नगर निगम के कुछ दवंग किस्म के संविदाकारों की मदद ली गई.बाद में इस कोशिश का परिणाम यह हुआ कि प्रस्ताव फ्लोर में आने पहले ही भ्रूण हत्या का शिकार हो गया.
दूसरी बार असफल हुए विधायक
नगर निगम चुनाव में कांग्रेस की ओर से महापौर के प्रत्याशी रहे काग्रेस विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा को काग्रेस के तत्कालीन प्रदेश संगठन ने फ्री हैंड दे रखा था.उन्हें शहर के सभी 45 वार्डों की टिकट देने के लिए प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने अधिकृत कर रखा था.महापौर का चुनाव हारने के बाद उन्होंने अध्यक्ष के लिए काग्रेस पार्षदों को राजनैतिक पर्यटन भी कराया,इसके बावजूद अध्यक्ष के लिए हुए मतदान के बाद उन्हें हार का सामना करना पड़ा.इस बार भी उन्होंने पूरी कोशिश की कि अविश्वास प्रस्ताव चर्चा के लिए स्वीकार कर लिया जाए पर ऐसा नहीं हो सका.बताया जाता है कि भाजपा बी और सी टीम से उन्हें जो आश्वासन मिला था वह इस मामले में खुलकर उनकी मदद के लिए सामने नही आया.