तालियां नहीं बजीं तो नाराज नेहरू ने पढ़ाया लोकतंत्र का पाठ

फिर कांग्रेस के बड़े नेताओं की सभा में जिंदाबाद के नारे लगाने महल द्वारा बिठाई जाने लगी थी प्रायोजित भीड़
एमएलबी की छत से जनसभा ली थी प्रथम प्रधानमंत्री ने

हरीश दुबे
ग्वालियर:जब राजनेता आमसभा को संबोधित करने मंच पर माइक संभालें और उस वक्त भीड़ में न तालियां बजें, न ही जिंदाबाद के नारे गूंजें तो नेता का मूड बिगडऩा स्वाभाविक है। नेताओं की इस स्वाभाविक कमजोरी से पंडित नेहरू भी अछूते नहीं थे। देश को इसका पहली बार अहसास ग्वालियर में ही आयोजित जनसभा में हुआ। यह मध्यभारत राज्य के गठन के फौरन बाद की बात है। ग्वालियर की सभा में तालियां न बजने से बिगड़ी बात यहां तक पहुंची कि पंडित नेहरू और ग्वालियर के तत्कालीन महाराज जीवाजीराव सिंधिया की मित्रता तक पर आंच आ गई थी।दरअसल, नेहरू और सरदार पटेल दोनों एक साथ जनसभा को संबोधित करने के लिए ग्वालियर आए थे। जीवाजी राव सिंधिया पहले से ही इस सभा में मौजूद थे।

जैसे ही भाषण देने के लिए सिंधिया खड़े हुए तो भीड़ ने उनके लिए जमकर जिंदाबाद के नारे लगाए और काफी देर तक तालियां भी बजाईं। सिंधिया का भाषण खत्म होने के बाद जब अपनी बात रखने के लिए पंडित नेहरु ने माइक संभाला तो वे यह देखकर हतप्रभ रह गए कि उनके स्वागत में न कोई ताली बजी और न किसी ने जिंदाबाद के नारे लगाए। नेहरु पहले तो अचंभे में रहे और फिर गुस्से में आ गए। वे यह समझ चुके थे कि ग्वालियर की जनता अपने पुराने महाराज को किस चश्मे से देखती है और उन्हें किस आईने से। गुस्से में भरे नेहरूजी ने अपने भाषण में ग्वालियरवासियो को पुराने अतीत से बाहर निकलने की समझाइश भरी नसीहत देते हुए लोकतंत्र का पाठ पढ़ा दिया। ग्वालियर में अपने भाषण के दौरान नेहरू ने कहा कि जमाना बदल चुका है, देश के लोगों को आज का सच स्वीकार करना चाहिए। मैं देश में जहां भी जाता हूं लोग मेरा भाषण सुनने के लिए उतावले रहते है लेकिन आपके ग्वालियर में ऐसा कुछ नहीं है। जाहिर सी बात है, ग्वालियर के लोग आज भी अतीत में जीते हैं।

देश के प्रधानमन्त्री को ग्वालियर की धरती पर इस तरह नाराज देख सभा में मौजूद जीवाजीराव सिंधिया चिन्ता में पड़ गए। भाषण दे रहे नेहरू के चेहरे को न सिर्फ सिंधिया पढ़ रहे थे बल्कि उनके तल्ख शब्दों से यह अंदाज भी लगा लिया कि प्रधानमन्त्री ग्वालियर की जनता को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाकर क्या संदेश देना चाहते हैं। सभा के बाद नेहरु और जीवाजीराव के बीच क्या बात हुई और नेहरू की नाराजगी मिटी या नहीं, यह कभी जाहिर नहीं हुआ लेकिन ग्वालियर अंचल में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की सभाओं में भविष्य में ऐसा फिर न हो, इसके लिए सिंधिया ने अपने सभा प्रबंधकों को ध्यान रखने के निर्देश दिए। इसके बाद यह होने लगा कि जब भी नेहरु या कांग्रेस के कोई बड़े नेता कभी ग्वालियर आते तो जीवाजी राव सिंधिया अपने दो ढाईसौ समर्थकों को सभा मंच के आस-पास बैठा देते थे ताकि नेता का भाषण शुरू होने से पहले और बाद में तालियां बजें और समर्थन में नारे भी लगें। इस बात से यह जरूर जाहिर हुआ कि ग्वालियर में देश के प्रधानमन्त्री के साथ हुए उपेक्षापूर्ण बर्ताव की पृष्ठभूमि में सिंधिया परिवार कहीं नहीं था।
सच्चाई यह है कि जीवाजीराव सिंधिया भले ही कांग्रेस के विरोधी थे और उनका झुकाव खुले तौर पर हिन्दू महासभा की तरफ था लेकिन व्यक्तिगत तौर पर नेहरू से उनके मित्रतापूर्ण संबंध थे। नेहरू को भी सिंधिया की राजनीतिक ताकत का अहसास था, वजह यह कि ग्वालियर रियासत में आठ लोकसभा सीटें और साठ विधानसभा सीटें आती थीं। राजनीतिक मतभेद के बावजूद मध्यभारत प्रदेश के गवर्नर होने के नाते नेहरु की अगवानी के लिए सिंधिया न सिर्फ महाराजपुरा एयरपोर्ट जाते थे बल्कि गार्ड ऑफ ऑनर के बाद खुद कार चलाकर उन्हें अपने साथ लेकर आते थे। ग्वालियर के बुजुर्ग याद करते हुए बताते हैं कि ऐसे ही एक दौरे में पंडितजी ने विक्टोरिया कॉलेज जिसे अब एमएलबी कहा जाता है, की छत से विशाल जनसभा को संबोधित किया था। एमएलबी कॉलेज की दीवार पर एक शिलालेख लगाकर इस याद को संजोया गया है। यह वही कॉलेज है जहां से स्व. अटलबिहारी वाजपेई ने छात्रनेता के रूप में कैरियर शुरू किया और एक दिन प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। एमएलबी की इस सभा के बाद नेहरूजी सिंधिया के साथ महाराज बाड़ा का भ्रमण करने भी पहुंचे थे और पोस्ट ऑफिस की सीढिय़ों पर खड़े होकर बाड़ा की भव्यता देखी थी।

चौ. चरणसिंह ने तो चुनावी सभा में ही लाठीचार्ज का हुक्म दे दिया था
ग्वालियर की जनता पर खुलकर नाराज होने वाले पंडित नेहरू अकेले प्रधानमन्त्री नहीं थे बल्कि तत्कालीन पीएम चौधरी चरणसिंह भी जनवरी 80 में एसएएफ ग्राउंड, कंपू पर अपनी चुनावी सभा में अपने विरोधियों के बर्ताव को देखकर आपा खो बैठे थे। उस वक्त लोकसभा के मध्यावधि चुनाव हो रहे थे। चरणसिंह ने एसएएफ ग्राउंड स्थित सभा स्थल पहुंचकर जैसे ही माईक संभालकर पहला शब्द दोस्तों कहा, जनसंघ के समर्थको ने जेब में छिपाकर लाए काले झंडे निकाल लिए और उन्हें लहराते हुए चरणसिंह वापस जाओ के नारे लगाने लगे।

आग बबूला होकर चरणसिंह ने मंच से ही वहां मौजूद पुलिस फोर्स को यह कहते हुए लाठीचार्ज का हुक्म दिया कि मैं भारत का प्रधानमंत्री इन संघियों को यहां से खदेडऩे का आदेश देता हूं। इसके बाद जमकर लाठियां चलीं और सभा में चरणसिंह की जनता पार्टी सेक्यूलर के कुछ सेंकडा कार्यकर्ता ही रह गए। दरअसल, चरणसिंह को मोरारजी सरकार के पतन के लिए जिम्मेदार मानते हुए जनसंघ घटक ने उनके खिलाफ ग्वालियर में तगड़े विरोध प्रदर्शन की काफी पहले से तैयारी कर रखी थी। इस चुनाव में चरणसिंह की पार्टी के उम्मीदवार विष्णुदत्त तिवारी को सिर्फ 36,894 वोट ही मिले और वे तीसरे नम्बर पर रहे। जनसंघ घटक के प्रत्याशी एनके शेजवलकर 1,43,616 वोट पाकर लगातार दूसरी बार सांसद बनने में सफल रहे।

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