संयुक्त किसान मोर्चा की मांग सोयाबीन 8 हज़ार रुपए प्रति गेहूं 4 हज़ार रुपए कु तय करें सरकार
इंदौर: मालवा निमाड़ में सोयाबीन पीला सोने के नाम से जाना जाता है. खरीफ सीजन में किसानों के द्वारा काफी मात्रा में सोयाबीन की मुख्य फसल बोई जाती है परंतु पिछले कई वर्षों से सरकार की गलत नीतियों के कारण सोयाबीन उत्पादक किसानों को काफी निराश होना पड़ रहा है. फिलहाल मंडियों में सोयाबीन समर्थन मूल्य से भी नीचे बीक रहा है. फसल का वाजिब दाम नहीं मिलने से किसानों में आक्रोश है.
सोयाबीन का एमएसपी 4850 रुपये प्रति मि्ंटल निर्धारित किया है जबकि किसानों को फिलहाल प्रति मि्ंटल पर 1000 से 1300 रुपये का सीधा नुकसान हो रहा है. कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की रिपोर्ट के अनुसार सोयाबीन की उत्पादन लागत 3261 रुपये प्रति मि्ंटल है लेकिन मंडियों में यह 3500 से 4000 रुपये के बीच बिक रही है. सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के आंकड़ों के मुताबिक 2013-14 में सोयाबीन का औसत भाव 3823 रुपये प्रति मि्ंटल था, जो आज की कीमतों के लगभग बराबर है.
लागत नहीं निकल पा रही
संयुक्त किसान मोर्चा के नेता रामस्वरूप मंत्री, बबलू जाधव, चंदन सिंह बड़वाया, शैलेंद्र पटेल आदि ने बताया कि सरकार की गलत नीति के कारण सोयाबीन के भाव नहीं बड़े हैं. वहीं किसानों द्वारा जो खेती किसानी में वस्तुएं इस्तेमाल की जाती है. उनके दामों में काफी बढ़ोतरी हुई है. खाद, दवाई, मजदूरी सारी चीजों में बहुत बढोतरी हुई है, परंतु किसानों को उनकी फसल के वाजिब दाम नहीं मिल रहे हैं. 25-30 दिन में नई सोयाबीन आने वाली है. मंडियों में 4 हजार प्रति क्विंटल किसानों को दाम मिल रहे हैं जिससे किसानों की लागत भी नहीं निकल पा रही है.
नहीं तो आंदोलन की राह चलना पड़ेगा
किसान नेताओं ने कहा कि हमारी मांग है कि जल्द ही किसानों की इन मांगों पर सरकार को ध्यान देना चाहिए नहीं तो मध्य प्रदेश का किसान भी आंदोलन की राह पर चल पड़ेगा. सोशल मीडिया के जरिए किसान अपनी आवाज सरकार तक पहुंचा रहे हैं अब देखना है कि सरकार किसानों की मांगों को कितना गंभीरता से लेती है