दिल्ली डायरी
प्रवेश कुमार मिश्र
कोलकाता में पिछले दिनों मेडिकल कालेज में महिला डाक्टर की नृशंस हत्या के विरोध में आरंभ हुआ आंदोलन ममता सरकार पर भारी पड़ता जा रहा है. राज्य की कानून व्यवस्था पर जिस तरह से लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं उसको देखते हुए राष्ट्रपति शासन लागू करने को लेकर चर्चा होने लगी है. कहा जा रहा है कि राज्य सरकार द्वारा उक्त घटना को लेकर दिखाए गए कथित टालू रवैया के बाद सर्वोच्च न्यायालय की तल्ख टिप्पणी और पश्चिमी बंगाल के राज्यपाल द्वारा केंद्र सरकार को भेजी गई कई रिपोर्ट राज्य सरकार के खिलाफ कठोर निर्णय लेने का आधार बनता जा रहा है. कहा जा रहा है कि विभिन्न रिपोर्ट के आधार पर पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने को लेकर बहुस्तरीय समीक्षा बैठक हो रही है. चर्चा यह भी है कि गृहमंत्री अमित शाह राष्ट्रपति से मिलकर पश्चिम बंगाल की स्थिति को स्पष्ट करने वाले हैं और उसके बाद कुछ कड़ा निर्णय लिया जा सकता है.
झारखंड की राजनीति पर दिल्ली की नजर
इस वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले झारखंड की राजनीति में आई उथल-पुथल पर दिल्ली की नजर लगी हुई है. सत्ताधारी जेएमएम के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन लगभग छह विधायकों के साथ बगावत कर भाजपा में शामिल होने वाले हैं जबकि कांग्रेसी खेमे के अंदर चुनाव के पहले भगदड़ मची हुई है. ऐसे में सत्ताधारी दोनों दलों के नेता परेशान हैं. इतना ही नहीं भाजपा के अंदर भी पाला बदल करने वालों को महत्व दिया जाय या नहीं इसको लेकर भी एक राय नहीं है. झारखंड के भाजपाई नेता दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं से मिलकर दूसरे दलों को शामिल नहीं करने की गुहार लगा रहे हैं. उनका तर्क है कि मौजूदा राज्य सरकार के खिलाफ लगातार पांच सालों से जो नेता संघर्षशील रहे हैं वैसे नेताओं का मनोबल आयातित नेताओं के आने से टूट जाएगा और पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. इसलिए इस समय झारखंड में हो रहे हरेक घटनाक्रम पर भाजपा व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिल्ली से नजर लगाए हुए हैं.
हरियाणा व जम्मू-कश्मीर चुनाव की तैयारी
हरियाणा व जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनावों की घोषणा के बाद उम्मीदवारों के चयन प्रक्रिया को लेकर दिल्ली में बैठकों का दौर आरंभ हो गया है. जहां एक तरफ हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर को कुंद करने को लेकर भाजपाई रणनीतिकार परेशान हैं वहीं दूसरी ओर कांग्रेसी खेमे में क्षेत्रीय दिग्गजों की गुटबाजी चरम पर है. अपने अपने चहेतों को टिकट दिलाने के लिए क्षेत्रीय दिग्गज दबाव की राजनीति आरंभ कर रहे हैं. हालांकि कांग्रेस के केन्द्रीय नेताओं द्वारा पूर्व के अनुभवों का हवाला देकर समन्वय बैठाने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन वर्षों बाद सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए बैठे नेता वर्चस्व कायम रखने के लिए बहुस्तरीय घेराबंदी में जुटे हुए हैं. इतना ही नहीं जम्मू-कश्मीर को लेकर भी कांग्रेस व भाजपा खेमे में एकराय नहीं दिख रही है. उक्त दोनों राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ समन्वय बैठाना भी चुनौती बना हुआ है. इंडिया गठबंधन में रहते हुए भी जहां आम आदमी पार्टी हरियाणा में मोर्चाबंदी में जुटी है वहीं पीडीपी व नेशनल कांफ्रेंस जम्मू-कश्मीर में अलग-अलग राह पर चल रहे हैं. दिल्ली की राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भाजपाई खेमे को दोनों राज्यों में विरोधी दलों के बीच बंटने वाले वोट से ही अपने लिए उम्मीद है.
महाराष्ट्र की राजनीति में एकजुटता का अभाव
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की घोषणा भले ही कुछ दिनों के लिए टल गई है लेकिन सत्ता पक्ष व विपक्षी खेमे में जबरदस्त उठा-पटक दिख रही है. सीट बंटवारे से लेकर मुख्यमंत्री चेहरा बनाए जाने तक को लेकर आपस में टकराव चल रहा है. राजग खेमा फिलहाल शिंदे गुट को साथ लेकर चलने को तैयार है लेकिन चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री का चेहरा शिंदे को बनाने को भाजपाई रणनीतिकार तैयार नहीं हैं. इसी तरह महाअगाड़ी गुट के अंदर पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चुनाव पूर्व चेहरा बनाए जाने को लेकर दबाव है लेकिन एनसीपी व कांग्रेस के नेता अभी तक इस विषय पर एकराय नहीं बना पाए हैं. इस बीच चर्चा है कि एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के भतीजे अजित पवार अभी भी शरद पवार के संपर्क में हैं और राजग खेमे पर इसी आधार पर बेहतर तालमेल के लिए मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में जुटे हैं.
लेटरल एंट्री का मुद्दा गरमाया
यूपीएससी द्वारा 45 जॉइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर लेवल की भर्तियां निकाले जाने वाले विज्ञापन के बाद आरंभ हुई विरोध की राजनीति के आगे सरकार झुक गई है. इस तरह की भर्ती पर फिलहाल रोक लगा दी गई है लेकिन कांग्रेस, सपा ,राजद समेत विभिन्न दलों को ओर से इस विषय पर जिस तरह से हमलावर रुख अपनाया गया संभवतः उसके कारण सरकार बैकफुट पर आई है. कांग्रेस समेत ज्यादातर विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि सरकार आरक्षण पर चोट कर रही है. इतना ही नहीं एनडीए के घटक दलों ने भी फैसले की आलोचना की. जिसके चलते सरकार को अपना यह फैसला वापस लेना पड़ा है. सरकार के इस फैसले को विपक्षी दलों के नेताओं ने एकजुटता की बड़ी जीत बताते हुए मोदी सरकार पर बहुस्तरीय हमला बोला है. हालांकि भाजपाई वक्ताओं द्वारा पूर्व के सरकारों द्वारा इस तरह की नियुक्ति का उदाहरण देकर सरकार का बचाव करने का प्रयास किया गया है.