अभी हमारे देश में मुख्य चिंता गिरते भूजल स्तर की है. निश्चित ही गिरता भूजल स्तर चिंता का विषय है लेकिन इसी के साथ भूजल शुद्धता भी उतनी ही जरूरी है. दुर्भाग्य से भूजल शुद्धता की ओर हमारा ध्यान नहीं है. जबकि यह भी बेहद गंभीर समस्या है.दरअसल, यह वैज्ञानिक रिपोर्ट निश्चित ही चौकाने वाली है कि सन 2100 में लगभग 59 करोड़ लोग ऐसे जल स्रोतों पर निर्भर हो सकते हैं जो पीने योग्य पानी के लिए सबसे कड़े मानकों को पूरा नहीं करते हैं. सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हमारे राजनेताओं की प्राथमिकताओं में आम आदमी के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे शामिल ही नहीं रहे हैं. इसका ज्वलंत उदाहरण पंजाब है. जहां भूजल लगातार जहरीला होता जा रहा है.यह जानते हुए भी कि भूजल में जहरीली धातुओं और प्रदूषकों की उपस्थिति खतरनाक स्तर तक जा पहुंची है, इसे रोकने के कोई उपाय नहीं किया जा रहे हैं.पंजाब तो कई दशकों से इस संकट से लगातार पीडि़त है, लेकिन एक हालिया चौंकाने वाली रिपोर्ट बताती है कि पंजाब के भूजल में नाइट्रेट, लौह अयस्क, आर्सेनिक, क्रोमियम, मैंगनीज, निकल, कैडमियम, सीसा और यूरेनियम की खतरनाक उपस्थिति की पुष्टि हुई है. दरअसल, पंजाब में व्यावसायिक कृषि के क्रम में लगातार उत्पादन बढ़ाने के मकसद से जिस बड़ी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग हुआ है, उसका खमियाजा पंजाब के आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है.दरअसल, देश की खाद्य शृंखला को सुनिश्चित करने के क्रम में हरित क्रांति में पंजाब ने जो योगदान दिया, उसकी कीमत किसानों और आम नागरिकों को चुकानी पड़ रही है. ये रासायनिक पदार्थ हमारे पेयजल व खाद्य पदार्थों में मिलकर गंभीर रोगों के वाहक बन रहे हैं. लेकिन पंजाब के इस महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद उसके पानी के संकट का समाधान तलाशने की कोई गंभीर पहल होती नजर नहीं आती. जिसका नतीजा यह हुआ कि प्रदूषित पानी की चपेट में आकर लोग कैंसर व अन्य गंभीर रोगों के शिकार बन रहे हैं.दरअसल, इन घातक रासायनिक पदार्थों के हमारे खान-पान में प्रवेश करने से उच्च स्तरीय अवसाद और तंत्रिका तंत्र से जुड़ी बीमारियों का भी जन्म होता है. पेयजल व हमारे खाद्य पदार्थों में मैग्नीशियम व सोडियम की अधिकता से उपजे जानलेवा रोग जीवन पर संकट उत्पन्न कर सकते हैं. इसी तरह सीसा, निकल, यूरेनियम व मैंगनीज से दूषित पानी के उपयोग से कैंसर समेत कई अन्य गंभीर रोगों का खतरा बढ़ जाता है.लगातार गहराते इस संकट को नीति-नियंताओं को गंभीरता से लेना चाहिए.
भूजल को जहरीला बनाने वाली फैक्ट्रियों व डिस्टिलरियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं होती क्योंकि वे राजनीतिक दलों की
आय के स्रोत भी रहे हैं.शासन-प्रशासन की उदासीनता समस्या के समाधान की राह नहीं दिखाती. दरअसल यह समस्या केवल पंजाब की नहीं है . हाल ही में इंदौर जिले के सांवेर तहसील में भी विषाक्त और प्रदूषित भूजल पाया गया था. जरूर इस बात की है कि देश के जल शक्ति मंत्रालय को जल गुणवत्ता की निगरानी और सुधार को प्राथमिकता देनी चाहिए.वहीं दूसरी ओर किसानों को प्रेरित किया जाना चाहिए कि वे हानिकारक रसायनों पर निर्भरता को कम करें.इसके स्थान पर परंपरागत प्रथाओं को अपनाएं ताकि उनका और आम लोगों का जीवन सुरक्षित रह सके. उन्हें फसल विविधीकरण अपनाने पर अतिरिक्त आय का आश्वासन दिया जाना चाहिए. यदि ऐसा नहीं होता है तो हम नागरिकों के जीवन से खिलवाड़ ही करेंगे.हमारी लापरवाही एक महत्वपूर्ण जीवन संसाधन को एक जहर के स्रोत में तब्दील कर देगी. इस संबंध में सरकारों के साथ ही जनता को भी सचेत होने की जरूरत है.