नयी दिल्ली, 20 अगस्त (वार्ता) केन्द्र सरकार ने शासन में कुछ उच्च पदों पर अधिकारियों की सीधी (लैटरल) नियुक्ति के लिए पिछले सप्ताह जारी विज्ञान पर लेकर उठे राजनीतिक विवाद के बीच इसे रद्द करने के लिये संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) से आग्रह किया है।
केन्द्रीय कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के मंत्री जितेन्द्र सिंह ने यूपीएससी की अध्यक्षा प्रीति सूदन को विज्ञापन वापस लेने के लिए पत्र लिखा है। उन्होंने स्पष्ट किया है सरकार नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्ध है और इसे सामाजिक न्याय की व्यवस्था की बुनियाद का एक पत्थर मानती है। साथ-साथ उन्होंने यह भी कहा कि लैटरल भर्तियां पहले भी हुई थीं पर उनमें आरक्षण का ध्यान नहीं रखा गया था और ऐसी नियुक्ति के लिए कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं बनायी गयी थी।
उन्होंने कहा है कि इस सरकार ने लैटरल प्रवेश को पहली बार यूपीएससी के माध्यम से करने का फैसला किया था।
डॉ. सिंह ने यूपीएससी अध्यक्षा को लिखा है, “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दृढ़ मत है कि लैटरल नियुक्तियों की प्रक्रिया निश्चित रूप से संविधान, विशेष रूप से संविधान में आरक्षण के विषय में समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुसार होनी चाहिये।”
कार्मिक विभाग के मंत्री ने आयोग से कहा है कि चूंकि उच्च पदों के लिये लैटरल नियुक्ति के लिये 17 अगस्त 2024 को जारी विज्ञापन में जिन पदों के लिये रिक्तियों की भर्ती की जानी थी, उन्हें विशेषज्ञता वाली और एकल कैडर के पद माना गया था इसलिये उन पर नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया था।
डॉ. सिंह ने नियुक्तियों में सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने पर श्री मोदी के स्पष्ट मत के संबंध में आयोग के अध्यक्ष से शनिवार को विज्ञापित लैटरल भर्ती की प्रक्रिया को रद्द करने का अनुरोध किया है।
उन्होंने कहा है कि इससे सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण के प्रयासों को और बल मिलेगा।
डॉ. सिंह ने यूपीएससी की अध्यक्षा को लिखा है कि 2014 से पहले उच्चपदों पर जो भी सीधी भर्तियां की गयी वे मनमाने तरीके से की गयीं थीं। उनमें पक्षपात के मामले भी थे। उन्होंने पत्र में कहा है, “हमारी सरकार का प्रयास रहा है कि सरकारी नौकरियों में लैटरल प्रवेश संविधान निर्देशित, पारदर्शी और सबके लिए खुली रखी जाए।”
डॉ. सिंह ने लिखा, “इससे भी बढ़ कर माननीय प्रधानमंत्री का दृढ़ मत है कि लैटरल प्रवेश की प्रक्रिया संविधान में विहित, विशेष रूप से उसमें आरक्षण के विषय से संबंधित, प्रावधानों के अनुरूप होनी चाहिए।” पत्र में यह भी कहा गया है कि यह एक सर्वविदित बात है कि उच्च पदों पर इस प्रकार सीधे प्रवेश की लैटरल व्यवस्था को श्री वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में 2005 में गठित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने सिद्धांत रूप से सहमित प्रदान की थी। छठें वेतन आयोग की 2013 की सिफारिशें भी इसी दिशा में थीं।
डॉ. सिंह ने कहा है कि उससे पहले और उसके बाद भी उच्च पदों पर कई भर्तियां हुई हैं जो चर्चित रही हैं। उन्होंने कहा है कि इस सरकार से पहले भी विभिन्न मत्रालयों में सचिव जैसे महत्वपूर्ण पदों तथा भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के नेतृत्वकारी पदों जैसे कई स्थानों पर लैटरल भर्ती में आरक्षण की प्रक्रिया नहीं अपनायी गयी।
उन्होंने लिखा है कि यह सर्वविदित है कि कुख्यात राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) के सदस्यों ने ‘नौकरशाही के पर एक अलग एक-नौकरशाही’ चला रखा थो जो उस समय प्रधानमंत्री कार्यालय को नियंत्रित करती थी।
उल्लेखनीय है कि संघ लोक सेवा आयोग ने 17 अगस्त को कुल 45 पदों पर लैटरल भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किए थे। इनमें से दस पद संयुक्त सचिव के स्तर के तथा 35 निदेाशक/ उप सचिव स्तर के थे।
डॉ. सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था सामाजिक न्याय की हमारी व्यवस्था की बुनियाद का एक पत्थर है जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्यायों का समाधान करना और समावेश को बढ़ावा देना है।
उल्लेखनीय है कि लैटरल नियुक्ति के शनिवार को जारी विज्ञापन पर विपक्षी कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे आरक्षण खत्म करने की सरकार की चाल बताया था।