नयी दिल्ली, 26 जुलाई (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने कांवड़ यात्रा मार्गो पर खाद्य पदार्थों के विक्रेता, होटल मालिकों को अपने और अपने यहां काम करने वाले अन्य कर्मचारियों के नाम सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करने के उत्तर प्रदेश पुलिस समेत अन्य के आदेश पर रोक शुक्रवार को पांच अगस्त तक बढ़ा दी।
न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ ने ‘नाम’ प्रदर्शित करने के आदेशों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद रोक बढ़ाने संबंधी आदेश पारित करते हुए कहा कि यदि कोई स्वैच्छिक रूप नाम प्रदर्शित करना चाहे, तो ऐसा कर सकता है।
पीठ ने स्पष्ट किया कि पिछला आदेश (22 जुलाई) किसी को भी मालिकों और कर्मचारियों के नाम स्वेच्छा से प्रदर्शित करने से नहीं रोकता है।
पीठ ने कहा, “अगर कोई स्वेच्छा से ऐसा करना चाहता है तो वह ऐसा कर सकता है, लेकिन कोई जोर नहीं देना चाहिए,”
शीर्ष अदालत के समक्ष सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के एसएसपी द्वारा 17 जुलाई को जारी निर्देश का बचाव करने वाले उत्तर प्रदेश सरकार के जवाबी हलफनामे पर अपना (याचिकाकर्ता का) जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा।
श्री सिंघवी ने दलील देते हुए दावा किया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने स्वीकार किया है कि भेदभाव हुआ है, लेकिन यह स्थायी प्रकृति का नहीं है। उन्होंने कहा कि पिछले 60 वर्षों में ऐसा कोई आदेश नहीं दिया गया था।
शीर्ष अदालत के समक्ष उतर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि केंद्रीय कानून खाद्य एवं सुरक्षा मानक अधिनियम 2006 के तहत नियमों के अनुसार ढाबों सहित प्रत्येक खाद्य विक्रेता को मालिकों के नाम प्रदर्शित करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि रोक संबंधी अंतरिम आदेश इस केंद्रीय कानून के अनुरूप नहीं है।
उनकी इस दलील पर अदालत ने राज्य सरकार से पूछा कि यदि ऐसा है तो इसे पूरे राज्य में क्यों नहीं लागू किया गया।
शीर्ष अदालत ने सोमवार 22 जुलाई को नाम प्रदर्शित करने के आदेश पर रोक लगाते हुए उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकारों को अगली सुनवाई 26 जुलाई से पहले अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया था।
पीठ ने अपने आदेश में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकारों को कांवड़ यात्रियों के मार्ग में पड़ने वाले होटल, दुकानों, भोजनालयों और ढाबों के मालिकों और वहां कार्यरत कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देशों को लागू करने पर रोक लगा दी थी।
पीठ ने नाम प्रदर्शित करने वाले आदेश पर पर रोक लगाते हुए कहा था, “खाद्य पदार्थ विक्रेता मालिकों, नियोजित कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।”
शीर्ष अदालत के समक्ष याचिकाएं अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की नेता सांसद महुआ मोइत्रा, गैर सरकारी संगठन- एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) के अलावा शिक्षाविद प्रोफेसर अपूर्वानंद और अन्य द्वारा दायर की गई थीं।
याचिकाओं में मुजफ्फरनगर के एसएसपी द्वारा विक्रेता मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के लिए 17 जुलाई को जारी निर्देश को भेदभावपूर्ण और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17, 19(1)(जी) और 21 का उल्लंघन बताया गया है।
शीर्ष अदालत की ओर से 22 जुलाई को जारी नोटिस पर उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने जबावी हलफनामे में कहा है कि श्रावण महीने में ‘यात्रा’ करने वाले कांवड़ियों की सार्वजनिक सुरक्षा व्यवस्था, पारदर्शिता और सूचित विकल्प सुनिश्चित करने के लिए सभी खाद्य विक्रेता मालिकों और कर्मचारियों की पहचान प्रदर्शित करने के निर्देश दिए गए थे।
उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने जवाब में आगे कहा कि यह निर्देश (नाम प्रदर्शित करने का) सीमित भौगोलिक सीमा के लिए अस्थायी प्रकृति का था। यह आदेश गैर-भेदभावपूर्ण और उन ‘कांवड़ियों’ की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए लाया गया, जो केवल ‘सात्विक’ खाद्य पदार्थ पसंद करते हैं और गलती से भी अपनी मान्यताओं के खिलाफ नहीं जाते
उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा, “अनजाने में किसी ऐसे स्थान पर अपनी पसंद से अलग भोजन करने की दुर्घटना कांवड़ियों के लिए पूरी यात्रा के साथ ही क्षेत्र में शांति और सौहार्द को बिगाड़ सकती है, जिसे बनाए रखना राज्य का कर्तव्य है।”
हलफनामे में सरकार ने कहा कि यह उपाय एक सक्रिय कदम है, क्योंकि अतीत में बेचे जा रहे भोजन के प्रकार के बारे में गलतफहमियों के कारण तनाव, अशांति और सांप्रदायिक दंगे भड़के थे।
शीर्ष अदालत के समक्ष शुक्रवार 26 जुलाई को सुनवाई के दौरान उत्तराखंड सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता जतिंदर कुमार सेठी ने कहा कि त्योहार के दौरान पूरे राज्य में कानूनी आदेश लागू किया गया, लेकिन इस बीच शीर्ष अदालत के अंतरिम आदेश ने समस्या पैदा कर दी है।
मध्य प्रदेश सरकार ने खाद्य विक्रेताओं द्वारा मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के लिए कोई निर्देश जारी करने से इनकार किया।
शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान हस्तक्षेप याचिका दायर करने वाले कुछ ‘कांवड़ यात्रियों’ की ओर से दलील दी गई कि सूचना प्रदर्शित करना विशेषाधिकार नहीं और वे सूचित विकल्प चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि कुछ भोजनालयों में हिंदू देवताओं के नाम हैं, लेकिन उनके मालिक और कर्मचारी अलग-अलग धर्मों के हैं।