विगत,10 वर्ष से चार बजे से पाच बजे तक श्रृंगार किया जाता है । उसमें एक घंटा करीब मंदिर को दर्शन के लिए बंद कर दिया जाता है। इससे भीड़ के चलते यात्री भक्तों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। जबकि इस श्रृंगार की यहां कोई भी प्राचीन मान्यता नहीं है। यह केवल जब केमिकल युक्त पूजा सामग्री ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाई जाती थी। दूध दही शहद आदि से पूजा की जाती थी। इस कारण केमिकल से ज्योतिर्लिंग को नुकसान पहुंचता था। खट्टा दही से नुकसान पहुंचता था इससे ज्योतिर्लिंग को क्षरण होने लगा था।
इसको देखते हुए तत्कालीन कलेक्टर डी के अग्रवाल ने साधु संतों और विद्वानों की एक बैठक रखकर उसमें सुझाव लिए थे की क्षरण को कैसे रोका जाए । तो यह तय हुआ था कि केमिकल युक्त पूजा सामग्रियां दही दूध पंचामृत चढ़ाना बंद करवा दिया जाए और आगे एक कांच लगा दिया जाए जिससे ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते रहे और ज्योतिर्लिंग पर केवल जल चढ़े। क्योंकि भोले को जल प्रिय है और जल से ज्योतिर्लिंग को कोई नुकसान नही होगा । 4.00 भगवान का श्रृंगार किया जाए और जल चढ़ाना भी बंद कर दिया जाए । इसके बाद भक्तों की समस्या बढ गई।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पर नर्मदा परिक्रमा पूरी होने के बाद जल अमरकंटक का और भी जगह का परिक्रमा के बाद परिक्रमवासी लाकर ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर पर चढाते हैं उसके बाद ही उनकी परिक्रमा पूरी मानी जाती है । इसी तरह से हरिद्वार से गंगा का जल भरकर खड़ी कावड़ लेकर कई राजस्थान के भक्त और भी प्रांत के भक्त ओंकारेश्वर श्रावण मास में व अन्य पर्व पर आते हैं शिवरात्रि पर आते हैं और ज्योतिर्लिंग पर जल चढ़ाने के बाद ही कावड को रखते हैं और भोजन आदि करते हैं ।
इस समस्या पर मुख्यमंत्री,जिला कलेक्टर और मंदिर ट्रस्ट को ध्यान देना चाहिए। और जो प्रथा तीन आरतीयों की चली आ रही है उसी को बनाए रखते हुए,यह चार बजे श्रृंगार की परिपाटी को बंद कर दिया जाना चाहिए। दर्शन व जल चढाना शयन आरती तक सतत चालु रखना चाहिए। उल्लेखनीय है की ग्रर्भ गृह छोटा है भक्तों को खडे रखना के जगह की कमी है। प्रतिदिन माधयानह भोग के बाद भक्तों की भीड़ बढ जाती है जो रात तक बनी रहती है।
भक्तों को परेशानी हो रही
4.00 बजे श्रृंगार के नाम पर यात्रियों को भक्तों को दर्शन के लिए रोक दिया जाता है। सफाई की बात बताई जाती है । इससे विगत तीन चार सालों से हो रही भीड़ के कारण भक्तों को बहुत परेशानी हो रही है । 1 घंटे तक लाइन में लगकर खड़े रहना पड़ता है और 4.00 बजे के श्रृंगार के बाद कई भक्त जो जल लेकर के आते हैं । अमरकंटक का और हरिद्वार गंगा का वह जल भी नहीं चढ़ा पाते हैं और उन्हें रात रुकना पड़ता है और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए श्रृंगार को बंद कर देना ही उचित है इससे 1 घंटे में काम से कम 4 से 5 हजार भक्त दर्शन करके निकल जाएंगे