अयोध्या : सभ्यता के पुनर्जागरण का शंखनाद

अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत की उपस्थिति में राम मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा का फहराया जाना एक साधारण धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं है. यह घटना भारतीय सभ्यता के धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आत्मविश्वास का ऐसा क्षण है, जिसे आने वाली पीढिय़ां एक नए युग की शुरुआत के रूप में याद करेंगी. सदियों पुराने संघर्ष, प्रतीक्षा और तपस्या के बाद अयोध्या में लहराई यह भगवा पताका न केवल आस्था की जीत है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना के पुनरुत्थान का सशक्त संदेश भी है.सबसे पहले इसके धार्मिक अर्थ को समझना जरूरी है. रामलला का जन्म स्थान करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र रहा है. रामचरितमानस से लेकर वाल्मीकि रामायण तक, राम भारतीय मानस में मर्यादा और धर्म के सर्वोच्च आदर्श के रूप में स्थापित हैं. ऐसे में धर्म ध्वजा का फहराया जाना सनातन धर्म के सिद्धांतों और मूल्यों का प्रत्यक्ष उद्घोष है. यह उस अटूट आस्था का उत्सव है, जिसने संघर्षों, बाधाओं और प्रतीक्षाओं के बावजूद अपना दीपक नहीं बुझने दिया. यह ध्वजा बताती है कि धर्म संस्थापना केवल शास्त्रों का विषय नहीं, बल्कि समाज के साझा संकल्प से साकार होने वाली जीवंत प्रक्रिया है.

धर्म ध्वजा का यह क्षण सामाजिक दृष्टि से भी उतना ही महत्वपूर्ण है. राम मंदिर आंदोलन कोई एक वर्ग, एक क्षेत्र या एक संगठन का अभियान नहीं था. इस निर्माण में गरीब, किसान, मजदूर, कारोबारी, महिलाएं और आदिवासी—भारत के हर तबके ने श्रद्धा और श्रमदान से भागीदारी की. यही कारण है कि यह घटना केवल धार्मिक विजय नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता का राष्ट्रीय उत्सव बनी. अयोध्या आज यह बताती है कि जब समाज एक ध्येय के लिए खड़ा हो जाए, तब विभाजन की रेखाएं स्वत: मिट जाती हैं. अयोध्या का सांस्कृतिक मूल्य भी असाधारण है. राम मंदिर की नागर शैली में बनी भव्य वास्तुकला भारतीय कला, कारीगरी और आध्यात्मिक विरासत का सर्वोच्च उदाहरण बनकर दुनिया के सामने खड़ी है. धर्म ध्वजा इस विरासत की पूर्णता का प्रतीक है. अब अयोध्या केवल एक धार्मिक शहर नहीं, बल्कि वैश्विक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पर्यटन का केंद्र बनने जा रही है. इससे भारत की सॉफ्ट पावर को जबरदस्त मजबूती मिलेगी. वैदिक मंत्रोच्चार और प्राचीन अनुष्ठानों की पुनर्स्थापना यह संदेश देती है कि भारत अपनी परंपराओं को आधुनिकता के साथ आत्मविश्वास से आगे बढ़ा रहा है.ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो यह क्षण एक जटिल विवाद के शांतिपूर्ण समाधान का प्रतीक है. यह एक ऐसे अध्याय का पटाक्षेप है जिसने दशकों तक राजनीतिक, कानूनी और सामाजिक विमर्श को प्रभावित किया. प्रधानमंत्री और संघ प्रमुख की संयुक्त उपस्थिति इस संदेश को और मजबूत करती है कि देश अब इतिहास की उलझनों को पीछे छोडक़र एकात्मता और भविष्य निर्माण की ओर बढ़ रहा है. इस ध्वजा के साथ भारतीयता की वह चेतना भी पुनर्जीवित हुई है, जो कभी आक्रांताओं और वैमनस्य के बीच धूमिल पड़ गई थी. कुल मिलाकर अयोध्या में फहराई गई धर्म ध्वजा केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि सभ्यता के आत्मविश्वास, एकता और पुनर्जागरण का शंखनाद है. यह भारत को उसके स्वर्णिम अतीत से जोड़ते हुए उज्जवल भविष्य की ओर ले जाने वाला मार्गदर्शक बनकर सामने आई है. यही कारण है कि यह क्षण न सिर्फ भारत, बल्कि विश्व के लिए भी सांस्कृतिक उत्थान का सार्थक संदेश लेकर आया है.

 

 

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