सुप्रीम कोर्ट का सीआईसी में नियुक्ति के लिए चयनित उम्मीदवारों के नामों का खुलासा करने संबंधी निर्देश से इनकार

नयी दिल्ली, 18 नवंबर (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) में नियुक्ति के लिए चुने गये उम्मीदवारों के नामों का सार्वजनिक रूप से खुलासा करने का निर्देश देने से एक बार फिर इनकार कर दिया है। इसके साथ ही आगाह किया है कि इस समय ऐसा खुलासा प्रतिकूल साबित हो सकता है और प्रक्रिया में और देरी हो सकती है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ सोमवार को आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों में अधिक पारदर्शिता और समय पर नियुक्तियों की मांग की गयी थी।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि चयनित उम्मीदवारों का खुलासा आवश्यक है ताकि नियुक्तियों को अंतिम रूप देने से पहले उनकी योग्यता या आचरण के बारे में उपयुक्त जानकारी रखने वाला कोई भी व्यक्ति सामने आ सके। उन्होंने उच्चतम न्यायालय के 2018 के फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि सूचना आयोगों के लिए चयनित उम्मीदवारों के नाम सार्वजनिक किये जाने चाहिये।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने हालांकि यह भी कहा कि समय से पहले खुलासा करने से आरोप-प्रत्यारोप लग सकते हैं जिससे सरकार को नियुक्तियों को स्थगित रखने का औचित्य मिल सकता है। पीठ ने कहा, “अगर किसी गलत व्यक्ति की नियुक्ति होती है तो आप उसे चुनौती दे सकते हैं। लेकिन इस चरण पर खुलासा करने के प्रतिकूल परिणाम हो सकते है।”

न्यायालय ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के सचिव को रिक्तियों को भरने में लगातार हो रही देरी के लिए तलब करने से भी इनकार कर दिया, जबकि पहले उसकी तरफ से आश्वासन दिया गया था कि भर्ती प्रक्रिया अप्रैल 2025 तक पूरी कर ली जाएगी। पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज को निर्देश दिया कि वे न्यायालय की चिंताओं से डीओपीटी को अवगत कराएँ और उपयुक्त निर्देशों के साथ वापस आएँ।

न्यायालय ने कहा, “हमें इस बात पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है कि सक्षम प्राधिकारी रिक्तियों को भरने के लिए आवश्यक पहल करेगा।”

पीठ को अवगत कराया गया कि केंद्र के पहले के आश्वासनों के बावजूद केंद्रीय सूचना आयोग केवल दो सूचना आयुक्तों के साथ काम कर रहा है जिससे मुख्य सूचना आयुक्त का पद खाली है। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि आयोग के समक्ष 26,800 से अधिक अपीलें और शिकायतें लंबित हैं।

न्यायालय को यह भी अवगत कराया गया कि कई राज्य सूचना आयोग या तो निष्क्रिय हैं या भारी कमी के साथ काम कर रहे हैं। झारखंड और हिमाचल प्रदेश में आयोग लंबे समय से रिक्तियों के कारण निष्क्रिय हैं जबकि तमिलनाडु में एक पद राज्यपाल के अनुमोदन के लिए लंबित है। दूसरी ओर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक ने अधिकांश रिक्तियों को भर दिया है और लगभग पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं। तमिलनाडु की स्थिति को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने निर्देश दिया कि रिक्तियों को भरने के लिए जल्द से जल्द आवश्यक अनुमोदन प्रदान किया जाए और राज्य को लंबित मामलों को हल करने के लिए आयुक्तों की स्वीकृत संख्या बढ़ाने पर विचार करने को कहा।

पीठ ने मध्य प्रदेश में सात रिक्त पदों को देखते हुये मुख्य सचिव को नियुक्ति प्रक्रिया तुरंत शुरू करने और अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया। इसके साथ ही चेतावनी दी कि यदि कोई प्रगति नहीं होती है तो अधिकारी को उपस्थित रहने की आवश्यकता हो सकती है। छत्तीसगढ़ के मामले में राज्य ने 11 नवंबर को भर्ती प्रक्रिया पर उच्च न्यायालय द्वारा लगायी गयी रोक हटने के बाद आगे बढ़ने के लिए छह सप्ताह का समय माँगा।

याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि रिक्तियों को भरने में विफलता और नियुक्ति प्रक्रिया में निरंतर अस्पष्टता सूचना के अधिकार अधिनियम को कमजोर करती है, जिससे अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के संवैधानिक अधिकार को कमजोर किया जा रहा है।

वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलील दी कि केंद्र और कई राज्य कार्यशील और प्रभावी सूचना आयोगों को सुनिश्चित करने के लिए गंभीर नहीं हैं और “जब तक यह न्यायालय सख्ती नहीं करता, तब तक कुछ नहीं होने वाला है।”

न्यायालय ने मामले की सुनवाई स्थगित करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल को निर्देश दिया कि वे मामले को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने से पहले, रिक्तियों को भरने की समय-सीमा और उठाये गये कदमों के बारे में केंद्र से निर्देश लेकर वापस आएँ।

 

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