त्योहारी मौसम की आहट के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था ने एक बार फिर अपनी जीवंतता और लचीलापन दिखाया है. जीएसटी सुधारों के बाद जो पारदर्शिता और सुव्यवस्था आई, उसने बाजारों में उपभोक्ता विश्वास को नई उड़ान दी है. दिवाली तक देशभर के व्यापारिक केंद्रों में जिस जोश और उत्साह के साथ खरीदारी हुई, वह न केवल बाजार की सक्रियता का प्रमाण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि लोगों की क्रयशक्ति में निरंतर सुधार हो रहा है. एक प्रतिष्ठित वित्तीय संस्थान के अनुसार, केवल इस फेस्टिवल सीजन में करीब पांच लाख करोड़ रुपए की खरीदी हुई, यह आंकड़ा भारत की खपत-आधारित वृद्धि के मॉडल को और भी मजबूती से साबित करता है. वास्तव में, यह आर्थिक रफ्तार केवल मौसमी उतार-चढ़ाव का परिणाम नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने जो संरचनात्मक सुधार किए, जैसे कि जीएसटी का सरलीकरण, डिजिटलीकरण का विस्तार, और बेहतर राजकोषीय अनुशासन, उसने आर्थिक गति को स्थायित्व दिया है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और भारतीय रिजर्व बैंक, सभी ने भारतीय अर्थव्यवस्था के 6 से 7 प्रतिशत की विकास दर से आगे बढऩे का अनुमान लगाया है. यह दर न केवल एशिया में बल्कि पूरे विश्व में सबसे तेज है.इस मजबूती के पीछे एक सुसंयोजित नीति ढांचा कार्यरत है. ‘मेक इन इंडिया’ और ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव’ जैसी योजनाओं ने निवेश को आकर्षित किया है. मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में जो वृद्धि दर्ज हो रही है, वह वर्षों बाद देखने को मिल रही है. इस क्षेत्र के साथ-साथ भारतीय सेवा उद्योग ने भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है, विशेषकर आईटी, फिनटेक, और हेल्थकेयर सेवाओं में. ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी इस गति की मुख्य धुरी बनती जा रही है, जहां कृषि और लघु उद्योगों में तकनीकी हस्तक्षेप से उत्पादकता बढ़ी है.हालांकि इस प्रगति के बीच कई चुनौतियां भी हैं. अंतरराष्ट्रीय व्यापार तनाव, तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, तथा अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए अनुचित टैरिफ जैसी नीतियां हमारे निर्यात पर दबाव डालती हैं. परन्तु सकारात्मक पक्ष यह है कि भारत ने अपने घरेलू बाजार की मजबूती से इन बाहरी झटकों को काफी हद तक संतुलित रखा है. खुदरा और थोक व्यापार में जो तेजी देखी जा रही है, वह इस बात का संकेत है कि भारत की घरेलू मांग अभी भी अपने चरम पर है.भविष्य के लिए यह जरूरी है कि नीति-निर्माता इस रफ्तार को केवल आंकड़ों तक सीमित न रखकर रोजगार और आय वृद्धि से जोड़ें. उत्पादकता में सुधार, स्किल डेवलपमेंट, और हरित प्रौद्योगिकी में निवेश आने वाले दशकों में भारत की आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित कर सकते हैं. साथ ही, उद्यमिता और स्टार्टअप पारिस्थितिकी को और प्रोत्साहन देना आवश्यक है, क्योंकि यही नवाचार भविष्य की वृद्धि का मूल स्रोत बनेगा.आज जब वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी और अनिश्चितता की ओर झुक रही है, भारत का यह प्रगतिकारी मार्ग दुनिया के लिए आशा की किरण बन सकता है. सरकार, उद्योग और नागरिक, सभी को इस गति को बनाए रखने के लिए मिलकर कार्य करना होगा, ताकि भारत न केवल सबसे तेज़ बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहे बल्कि सबसे सशक्त आर्थिक शक्ति के रूप में भी उभरे. भारत की यही रफ्तार, यही ऊर्जा और यही आत्मविश्वास हमारे भविष्य की सबसे बड़ी पूंजी है. अब लक्ष्य यह होना चाहिए कि यह गति सिर्फ कायम न रहे, बल्कि आने वाले वर्षों में और भी तेज़ हो.
