हिट एंड रन : कड़े कानून की जरूरत

हिट एंड रन यानी कार से कुचलने के जितने मामले अब तक सामने आए हैं उनमें अधिकांश में रईसजादे या उनके रईस पिता निर्दोष लोगों को मारने के दोषी होते हैं. ऐसे मामलों में एक बात यह भी कॉमन होती है कि आमतौर पर आरोपी नशे के आदी होते हैं. ऐसे आरोपियों पर गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दायर होता है जिसमें आमतौर पर आसानी से जमानत हो जाती है. यदि हिट एंड रन का आरोपी नाबालिग है, तो फिर वही होता है जो पुणे जुवेनाइल कोर्ट ने किया. पुणे का हिट एंड रन केस इस समय पूरे देश में चर्चित है. पुलिस और जुवेनाइल कोर्ट के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा है. महाराष्ट्र में अनेक स्थानों पर प्रदर्शन हुए हैं जबकि देशभर में सोशल मीडिया पर जमकर आक्रोश व्यक्त किया जा रहा है. आक्रोश इतना जबरदस्त है कि महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पुणे जाकर पुलिस को सख्त कार्रवाई के निर्देश देना पड़े. उप मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के हस्तक्षेप के बाद पुलिस की कार्रवाई लाइन पर आई. अन्यथा अरबपति रईस के दबाव में पुलिस ने मामले को रफा दफा कर दिया था. पुणे के प्रकरण के बहाने एक बार फिर नाबालिग के अपराध को लेकर देश भर में बहस चल रही है. यह बहस अपनी जगह है लेकिन हिट एंड रन के मामले में अब अलग से कड़े कानून बनाने की आवश्यकता है. ऐसे मामलों पर यातायात उल्लंघन के कानून सही नहीं हैं. इस तरह के प्रकरणों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अलग से कड़ा कानून बनाने की जरूरत है. दरअसल,पुणे में अमीर बाप के बिगड़ैल अल्पवयस्क बेटे ने शराब के नशे में दो युवा इंजीनियरों को रौंदने के बाद जिस तरह आनन-फानन में जमानत हासिल की, उसने तमाम सवालों को भी जन्म दिया है.दुर्घटना की त्रासदी,इन सवालों की जड़ में न्यायिक विवेक भी आ गया है.

दुस्साहस देखिये कि दो करोड़ रुपये से अधिक महंगी विदेशी कार को सडक़ पर यह किशोर दो सौ किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ा रहा था.उस धनी बाप के नशेड़ी बेटे को पुणे की सडक़ों में रोकने वाला कोई नहीं था.उसने कई जगह दोस्तों के साथ शराब पार्टियां निबटाने के बाद अपनी पोर्श कार को इतनी अनियंत्रित गति से दौड़ाया कि मोटरसाइकिल सवार दो इंजीनियरों को मौत की नींद सुला दिया. संयोग से दोनों इंजीनियर मध्यप्रदेश के ही थे.इस मामले में सोशल मीडिया पर आक्रोश का लावा तब फूटा जब 17 साल कुछ महीनों की उम्र वाले अभियुक्त को किशोर होने के नाते कुछ ही घंटों में जमानत दे दी गई. दो परिवारों के उम्मीदों के चिराग बुझ गए और किशोर न्यायालय ने अभियुक्त को यातायात पर निबंध लिखने का दंड देकर छोड़ दिया. जब इस मामले में राजनीतिक प्रतिक्रिया तेज हुई तो अभियुक्त किशोर के अरबपति बिल्डर पिता और नाबालिगों को शराब परोसने वाले होटल के अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया.सामाजिक जागरूकता की पहल रंग लायी और चुनावी माहौल में तुरत-फुरत कार्रवाई हुई.इस घातक दुर्घटना के बाद सार्वजनिक विमर्श में यह सवाल फिर उठा कि गंभीर अपराधों में किशोरों की संलिप्तता होने पर वयस्कों के कानून के हिसाब से उन्हें सजा क्यों नहीं मिलती? सवाल यह है कि धनाढ्य बिल्डर ने क्यों किशोर पुत्र को बिना लाइसेंस के कार चलाने की अनुमति दी? क्यों बेटे को शराब पार्टी करने की इजाजत दी? क्यों होटल वालों ने किशोरों को शराब पीने की सुविधा दी? जब किशोर ने बार-बार जानबूझकर तमाम कानूनों का उल्लंघन किया तो उसे सामान्य कानून के तहत दंडित क्यों नहीं किया जाना चाहिए? इसके बाद नये सिरे से किशोर न्याय अधिनियम में सुधार की बहस तेज हुई है. एक गंभीर आपराधिक घटना के बाद किशोर न्याय बोर्ड द्वारा किशोर को मामूली परामर्श के बाद छोडऩा भी विवाद का विषय बना है.दरअसल, देश के विभिन्न भागों में भी किशोरों द्वारा तेज रफ्तार वाहन चलाने के तमाम मामले प्रकाश में आते रहते हैं, जिसमें खतरनाक ड्राइविंग के चलते कई को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है.ये घटनाएं यातायात कानूनों को सख्ती से लागू करने और किशोर अपराधियों को दंडित करने के लिये कानूनी ढांचे की समीक्षा की आवश्यकता पर बल देती हैं. निस्संदेह, देश की न्यायिक प्रणाली को इस तरह के मामलों में उचित प्रतिक्रिया देनी चाहिए. सही मायनों में अपराधी की उम्र की परवाह किये बिना ऐसे घातक कृत्यों में कड़े दंड के जरिये मिसाल कायम की जानी चाहिए. इससे जहां जनता का विश्वास बहाल होगा,वहीं हमारी सडक़ों पर किशोरों की लापरवाह ड्राइविंग से होने वाली मौतों को भी रोका जा सकेगा.निश्चित रूप से इससे दुर्घटनाओं में मारे लोगों के परिजनों को भी न्याय मिल सकेगा.

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