चेन्नई, 29 अगस्त (वार्ता) तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एवं द्रविड मुनेत्र कषगम (द्रमुक) अध्यक्ष एम के स्टालिन ने शुक्रवार को विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों और देश भर के राजनीतिक दलों के नेताओं से राजनीति तथा पक्षपात से ऊपर उठकर संविधान की संघीय भावना को पुनर्जीवित करने का आग्रह किया।
केंद्र-राज्य संबंधों के संबंध में अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को लिखे श्री स्टालिन ने कहा कि यह राजनीति और पक्षपात से ऊपर उठने वाला एक प्रयास है। उन्होंने कहा, “आइए हम सब मिलकर अपने संविधान की संघीय भावना को पुनर्जीवित करें और आने वाली पीढ़ियों को एक ऐसा संघ प्रदान करें जो मज़बूत और न्यायसंगत, एकजुट और सच्चा संघीय हो।”
उन्होंने कहा कि देश के संविधान ने भारत सरकार अधिनियम, 1935 से महत्वपूर्ण रूप से प्रेरणा लेते हुए एक संघीय ढांचा बनाया जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति का एक अच्छा संतुलन था , हालांकि पिछले कुछ वर्षों में इस संतुलन में लगातार बदलाव आया है। उन्होंने जोर दिया कि एक मज़बूत संघ और मज़बूत राज्य परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि पूरक होते हैं—दोनों एक-दूसरे से शक्ति प्राप्त करते हैं।
श्री स्टालिन ने कहा , “वर्ष 1967 में तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. सी.एन. अन्नादुरई ने कहा था- मैं चाहता हूँ कि संघ इतना मज़बूत हो कि वह भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रख सके। इस देश की सुरक्षा के लिए संघ को ज़िम्मेदार बनाने हेतु आवश्यक सभी शक्तियां संघ के पास होनी चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पाकिस्तानियों या चीनियों से भारत की रक्षा के लिए संघ को यहां स्वास्थ्य विभाग बनाने के बारे में सोचना चाहिए। इससे भारत की संप्रभुता किस तरह मज़बूत होगी? क्या यहां शिक्षा विभाग होना चाहिए? इससे वहाँ के सैन्यकर्मियों की युद्ध क्षमता किस तरह बेहतर होगी।”
श्री स्टालिन ने यह भी बताया कि द्रमुक के संरक्षक एवं दिवंगत मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने “राज्यों को स्वायत्तता, केंद्र में संघवाद” के सिद्धांत का लगातार समर्थन किया था। वर्ष 1969 में मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने न्यायमूर्ति पी.वी. राजमन्नार के नेतृत्व में संघ-राज्य संबंधों पर पहली स्वतंत्र समिति का गठन किया था।
उन्होंने कहा कि समिति की 1971 की रिपोर्ट भारत में संघवाद पर बहस को आकार देने में एक मील का पत्थर थी। वर्ष 1974 में तमिलनाडु विधानसभा ने एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया जिसमें केंद्र से राजमन्नार समिति की सिफारिशों को स्वीकार करने और एक सच्ची संघीय व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त करने के लिए संविधान में संशोधन करने का आग्रह किया गया था। बाद में केंद्र सरकार ने सरकारिया आयोग (1983-88) और पुंछी आयोग (2007-10) का गठन किया , हालांकि दोनों व्यापक थे, लेकिन उनकी सिफारिशें एक वास्तविक संतुलित संघीय ढांचे को प्राप्त करने में विफल रहीं।
उन्होंने कहा कि इस बीच लगातार संवैधानिक संशोधनों, संघीय कानूनों और केंद्रीय नीतियों ने धीरे-धीरे शक्तियों के नाजुक संतुलन को संघ के पक्ष में झुका दिया है।
मुख्यमंत्री ने कहा, “केंद्र स्तर पर बड़े मंत्रालय मौजूद हैं जो राज्य के कार्यों की नकल करते हैं और वित्त आयोग के अनुदानों से जुड़ी शर्तों, केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए एक समान दिशा-निर्देशों, अनिवार्य कार्य-दर-कार्य अनुमोदन और कार्यान्वयन के सूक्ष्म प्रबंधन के माध्यम से राज्य की प्राथमिकताओं को प्रभावित या निर्देशित करते हैं। आज हम एक निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं।” उन्होंने जोर दिया कि समय की मांग है कि इन घटनाक्रमों का पुनर्मूल्यांकन किया जाए और एक ऐसा भविष्य का ढांचा तैयार किया जाए जो सच्चे संघवाद को मजबूत करे।
श्री स्टालिन ने कहा कि इस उद्देश्य से, तमिलनाडु सरकार ने संघ-राज्य संबंधों पर एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया है।इसकी अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ करेंगे, जिसमें सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी के. अशोक वर्धन शेट्टी, जो भारतीय समुद्री विश्वविद्यालय, चेन्नई के पूर्व कुलपति भी हैं, और तमिलनाडु योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष प्रोफेसर एम. नागनाथन सदस्य होंगे।
उन्होंने कहा कि अपने कार्य को दिशा देने के लिए, समिति ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विचार जानने हेतु एक प्रश्नावली तैयार की है। उन्होंने बताया कि उन्होंने 23 अगस्त, 2025 को यहां संघ-राज्य संबंधों पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में समिति का वेब पोर्टल लॉन्च किया था और ऑनलाइन प्रश्नावली जारी की थी। उन्होंने कहा, “यदि आप इस मामले पर व्यक्तिगत ध्यान दें और अपनी सरकार के संबंधित विभागों को प्रश्नावली की जांच करने और विस्तृत उत्तर प्रदान करने का निर्देश दें, तो वे आपके बहुत आभारी होंगे।”
