भारत को भावुक आदर्शवाद छोड़ आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिएः धनखड़

नयी दिल्ली 23 जून (वार्ता) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने वैश्विक बहुपक्षवाद के सतत पतन के बीच आज नसीहत दी कि भारत को कूटनीतिक जगत में भावुक आदर्शवाद छोड़कर आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

श्री धनखड़ ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव डॉ. राम माधव की पुस्तक ‘न्यू वर्ल्ड: 21 सेंचुरी ग्लोबल आर्डर इन इंडिया’ के विमोचन के अवसर पर समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि पुस्तक के शब्दों में सावरकर की छवि स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। सावरकर, तमाम अतिशयोक्तिपूर्ण और निराधार आरोपों के बावजूद एक सम्मानित चिंतक के रूप में सामने आते हैं, जो युद्धोत्तर व्यवस्था की प्रारंभिक घड़ी में खड़े थे। सावरकर एक कट्टर यथार्थवादी थे, जिन्होंने यह भविष्यवाणी की थी कि राष्ट्र केवल अपने हितों की पूर्ति के लिए कार्य करेंगे, न कि आदर्शवाद, नैतिकता या अंतरराष्ट्रीय एकता के आधार पर।

श्री धनखड़ ने कहा, “सोचिए, वह कितने दूरदर्शी थे। पिछले पखवाड़े, पिछले तीन महीनों में जो कुछ हुआ, वह हम सबने देखा है। उन्होंने शांतिवादी या काल्पनिक अंतरराष्ट्रीयतावाद को नकारते हुए यह बल दिया था कि भारत को अपनी संप्रभुता को ताकत से सुरक्षित रखना चाहिए, न कि राष्ट्र संघ या बाद में संयुक्त राष्ट्र जैसी पश्चिम प्रधान संस्थाओं पर निर्भर होकर, जिन्होंने मानवता के छठवें हिस्से को कभी उसका उचित स्थान नहीं दिया।”

उपराष्ट्रपति ने कहा, “आज भारत को सशक्त बनाना सरकार का संचालन सिद्धांत और अडिग संकल्प है। यह अडिग है, दृढ़ है, और आलोचकों की परवाह किए बिना, यह रीढ़ की तरह मजबूत है। देश ने पहले कभी भी इतनी दृढ़ता से अपना पक्ष नहीं रखा। हमें इस बात से भ्रमित नहीं होना चाहिए कि किसने क्या कहा। सरकार, भारत और उसके लोग देश के साथ दृढ़ता से खड़े हैं। राष्ट्र सर्वोपरि और यही हमारा राष्ट्रवाद है… जो लोग तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार रुख अपनाते हैं, वे भारत की मानसिकता और धारा में नहीं हैं। जब हम आंतरिक रूप से मजबूत बनेंगे, तभी हम अपनी रणनीतिक स्थिति को बाहरी रूप से आकार दे सकेंगे।”

उन्होंने कहा,“लेखक डॉ. राम माधव की पीड़ा से मैं पूर्णतः सहमत हूं। वे वैश्विक बहुपक्षवाद के लगातार पतन की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं और भारत को भावुक आदर्शवाद त्यागकर आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह देते हैं।”

राष्ट्र की रणनीतिक सोच की जड़ों को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा, “अमेरिकी विचारक जॉर्ज टन्हैम ने तीन दशक पहले यह विचार रखा था कि भारत में उसकी हिंदू दार्शनिक जड़ों के कारण रणनीतिक सोच का अभाव है, और इस पर कई लोगों ने सहमति जताई थी। लेकिन श्री राम माधव की यह पुस्तक उस विचार को गलत सिद्ध करती है। टन्हैम का विश्लेषण भारत की सदियों पुरानी धरातलीय सच्चाई से कोसों दूर था… ‘राजधर्म’ (नीति सम्मत राज्य संचालन) और ‘धर्मयुद्ध’ की महाभारत में अवधारणा, अशोक के अभिलेखों में धम्म नीति और चाणक्य का मंडल सिद्धांत — ये सभी रणनीतिक सोच के प्रमाण हैं। ये सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं, और वर्तमान चुनौतीपूर्ण समय में तो इनकी आवश्यकता और भी अधिक है।”

उन्होंने कहा, “आज के समय में हमें आसानी से गलत समझा जाता है। विडंबना यह है कि जब आप सच्चाई कहते हैं, तो चाटुकारिता की मानसिकता हावी हो जाती है और जो आरोप वास्तव में दूसरों पर लगने चाहिए, वे आपके ऊपर थोप दिए जाते हैं। यहां तक कि 1950 के दशक के फैबियन समाजवादी भी उस दिशा से असहमत नहीं हो सकते, जिस दिशा में देश अग्रसर है। हम क्या प्राप्त करना चाहते हैं? हम भारत का निर्माण नहीं कर रहे। भारत का जन्म 15 अगस्त 1947 को नहीं हुआ था। हमने उस दिन केवल औपनिवेशिक सत्ता से मुक्ति प्राप्त की थी। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः’ — यही हमारी विचारधारा है। सब सुखी हों, सब निरोगी रहें।”

भारत की शांतिप्रिय प्रवृत्ति को रेखांकित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “यह देश हमेशा से वैश्विक शांति और समरसता का समर्थक रहा है और अपने पूरे इतिहास में कभी भी विस्तारवाद में लिप्त नहीं रहा। आज की वैश्विक स्थिति विशेष रूप से शांति प्रिय राष्ट्रों के लिए अत्यंत चिंताजनक और गंभीर है… जैसे-जैसे भारत सभी नागरिकों के लिए सार्वभौमिक कल्याण प्राप्त करता है। हम दूसरों के लिए आदर्श बनते हैं। हम घोषणाओं से नहीं, बल्कि अपने उदाहरण से नेतृत्व करते हैं। हम पहले से ही डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में अग्रणी हैं, जहाँ वैश्विक दक्षिण हमारे पथ का अनुसरण कर सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व के कारण ही जी-20 के दौरान वैश्विक दक्षिण की चिंताओं को पहली बार प्रमुखता मिली। जी-20 में पहली बार अफ्रीकी संघ को यूरोपीय संघ के समकक्ष सदस्यता दी गयी। मैं इसे एक गेम-चेंजर मानता हूँ। इसलिए जब हम भारत की प्रगति का आकलन करते हैं, तो दृष्टिकोण व्यापक होना चाहिए, अलग-अलग घटनाओं से प्रभावित नहीं।”

श्री धनखड़ ने भारत से सावधानीपूर्वक मार्ग अपनाने का आग्रह करते हुए कहा, “भारत के उत्थान का मार्ग सतर्कता से तय किया जाना चाहिए। देश के भीतर और बाहर ऐसी शक्तियाँ हैं जो हमारे जीवन को कठिन बनाना चाहती हैं। ये घातक ताकतें, हमारे हितों के लिए हानिकारक हैं, और हमें भाषा जैसे मुद्दों पर भी विभाजित कर हमें कमजोर करना चाहती हैं। विश्व में और कोई देश नहीं है, जो भारत जैसी भाषाई समृद्धता पर गर्व कर सके। हमारी शास्त्रीय भाषाओं की संख्या को देखिए। संसद में 22 भाषाएं ऐसी हैं, जिनमें कोई भी अपनी बात रख सकता है। नीति निर्धारण में सहायता करने के लिए ऐसे कई विचारकों की आवश्यकता है जो मिलकर चर्चा करें, बहस करें और चुनौतियों तथा अवसरों का समाधान खोजें। नीतियों का विकास अब अधिक प्रतिनिधित्वशील होना चाहिए। भारत के थिंक टैंक विभिन्न स्वरूपों में उपलब्ध हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों से भी। अब समय आ गया है कि एकता हो… राजनीतिक तापमान कम होना चाहिए। राजनीतिक दलों के बीच अधिक संवाद हो। मैं दृढ़ता से मानता हूं कि देश में हमारे कोई दुश्मन नहीं हैं। हमारे दुश्मन बाहर हैं। और जो कुछ दुश्मन अंदर हैं, वे बाहरी ताकतों से जुड़े हुए हैं, जो भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण हैं।”

 

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