
नई दिल्ली, 14 जून (वार्ता) सुबह सुबह पक्षी कलरव क्यों करते हैं, इस रहस्य से पर्दा उठाया है कॉर्नेल लैब ऑफ ऑर्निथोलॉजी और भारत की प्रोजेक्ट ध्वनि के वैज्ञानिकों की एक टीम ने। वैज्ञानिकों के इस दल ने पता लगाया है कि हर सुबह पक्षियों के इस कलरव की वजह शांत हवा और ठंडा तापमान ही नहीं बल्कि उनके खाने के व्यवहार और कितनी मुस्तैदी से अपने इलाके की रक्षा करते हैं इस पर भी निर्भर करता है।
पक्षियों की गतिविधि से संबंधित शोध रॉयल सोसाइटी बी की पत्रिका ‘जर्नल फिलॉसॉफिकल ट्रांजैक्शन’ में प्रकाशित हुआ है। टीम ने डेटा एकत्रित करने के लिए पूरे जंगल में माइक्रोफोन लगाए ताकि दिन भर पक्षियों की आवाज़ को स्वचालित रूप से रिकॉर्ड किया जा सके। इस तकनीक को अक्सर ‘निष्क्रिय ध्वनिक निगरानी’ के तौर पर जाना जाता है।
अध्ययन में कहा गया है कि ये तकनीक ऑडियो रिकॉर्ड करती है जिसे शोधकर्ता बाद में सुनते हैं और सूचीबद्ध करते हैं कि दिन के दौरान कौन सी प्रजातियाँ कैसी आवाज़ करती हैं। रिपोर्ट मेें बताया गया है कि सुबह में पक्षियों की चहचहाहट बढ़ जाती है क्योंकि रौशनी ज्यादा होने लगती है और कीट पतंगों की गतिविधियां भी तेज होने लगती हैं। साथ ही पक्षी अपने इलाके की रक्षा के लिए ज्यादा सक्रिय होने लगते हैं।
टीम ने उन्नत ऑडियो मॉनिटरिंग तकनीक का उपयोग करके 43 वन स्थलों पर 69 पक्षी प्रजातियों का अध्ययन किया जिसमें पता चला कि क्षेत्रीय और सर्वाहारी पक्षी सुबह के समय सुरीली तान छेड़ने को अधिक इच्छुक हो सकते हैं। इससे संकेत मिलता है कि पक्षियों की इस सुबह की गतिविधि का मुख्य कारण पर्यावरणीय परिस्थितियां नहीं बल्कि उनका सामाजिक व्यवहार है। रिपोर्ट मेें बताया गया है कि सुबह में पक्षियों की चहचहाहट बढ़ जाती है क्योंकि रौशनी ज्यादा होने लगती है और कीट पतंगों की गतिविधियां भी तेज होने लगती हैं। साथ ही पक्षी अपने इलाके की रक्षा के लिए ज्यादा सक्रिय होने लगते हैं।
अध्ययन में के. लिसा यांग सेंटर फॉर कंजर्वेशन बायोएकॉस्टिक्स के पोस्ट डॉक्टरल शोधकर्ता और प्रमुख लेखक विजय रमेश ने कहा “निष्क्रिय ध्वनिक निगरानी ने हमें कई महीनों में 43 स्थानों के लिए एक साथ ध्वनिक डेटा एकत्र करने की सुविधा दी। इसके बिना हम यह अध्ययन नहीं कर सकते थे क्योंकि हमें अपने सवालों के जवाब के लिए बहुत सारे डेटा की आवश्यकता थी।” शोध के अन्य शोधकर्ताओं में प्रोजेक्ट ध्वनि बेंगलूरू से जुड़ी पवित्रा सुंदर एवं मेघना श्रीवत्सा और के. लिसा यांग सेंटर फॉर कंजर्वेशन बायोएकॉस्टिक्स की लॉरेल सिम्स, कार्नेल लैब आफ ऑर्निथोलॉजी, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी, न्यूयॉर्क शामिल थे।
दल ने पाया कि 20 पक्षी प्रजातियां शाम की तुलना में सुबह काफी अधिक मुखर रही थी। इन ‘सुबह के गायकों’ में ग्रे-हेडेड कैनरी-फ्लाईकैचर, ग्रेटर रैकेट-टेल्ड ड्रोंगो और लार्ज-बिल्ड लीफ वार्बलर जैसी प्रजातियाँ शामिल थीं। केवल एक प्रजाति डार्क-फ्रंटेड बैबलर सुबह की तुलना में शाम को ज्यादा गाती थी।
