प्रधानमंत्री ने हाल ही में टेलीविजन चैनलों को दिए गए साक्षात्कार में संकेत दिया है कि तीसरे कार्यकाल में उनकी सरकार आर्थिक मोर्चे पर कड़े फैसले लेगी.खास तौर पर कृषि को लाभ का व्यवसाय बनाने के लिए कुछ बड़े कदम उठाए जाएंगे. प्रधानमंत्री ने दावा किया है कि उन्होंने तीसरे कार्यकाल के पहले 100 दिनों की कार्य योजना भी अभी से तय कर ली है. जाहिर है यदि देश में फिर से भाजपा सरकार बनती है तो देश को आर्थिक संपन्न बनना नरेंद्र मोदी के एजेंडे में सबसे ऊपर होगा. इसके लिए बैंकिंग सुधार तथा उनके ढांचे को मजबूत करना सबसे पहली जरूरत होगी. दरअसल,
वित्त वर्ष 2024 की तीसरी तिमाही में निजी क्षेत्र के कई बैंकों के नतीजे ऐसे रुझान दर्शाते हैं जो शायद समूचे आर्थिक क्षेत्र पर लागू हों. विशुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) में साफ तौर पर कमी देखी जा सकती है. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा की गई अनिवार्यता के मुताबिक ही बैंक वैकल्पिक निवेश फंड जोखिम के विरुद्ध उच्च प्रोविजन भी रखते हैं. असुरक्षित ऋण के मामलों में जोखिम भार बढ़ाने की केंद्रीय बैंक की जरूरत ने भी वृद्धि दर पर असर डाला है.निजी क्षेत्र के अधिकांश हिस्से में फंसा हुआ कर्ज नियंत्रण में बना हुआ है. हालांकि यह ढांचागत समस्या नहीं प्रतीत होती है और सुधार के जोर पकडऩे की उम्मीद है.ऋण वृद्धि की बात करें तो अधिकांश बैंकों में यह बेहतर रही है. खुदरा और छोटे और मझोले उपक्रमों में ऋण विस्तार आमतौर पर कॉर्पोरेट ऋण से तेज रहा है. चूंकि समग्र ऋण वृद्धि जमा दर से तेज रही है इसलिए बैंक अब अधिक फंड जुटाने के लिए जमा पर बेहतर ब्याज दे रहे हैं.यह भी एनआईएम में कमी की एक वजह रही है, हालांकि अधिकांश निजी बैंकों के एनआईएम में कमी 50 आधार अंकों से कम रही है.असुरक्षित ऋण के लिए उच्च जोखिम भार ने भी उन ऋणों को प्रभावित किया है जो क्रेडिट कार्ड से लिए जाते हैं या पर्सनल लोन हैं.ये प्राय: उच्च वृद्धि और उच्च प्रतिफल वाला क्षेत्र है. यह आगे चलकर शुद्ध ब्याज आय (एनआईआई) की वृद्धि में कमी ला सकता है. एचडीएफसी बैंक भी एक अपवाद के रूप में सामने आया है.पूर्व एचडीएफसी के साथ विलय ने कम लागत वाले फंड तक पहुंच आसान की है.बहरहाल अन्य लाभों के सुसंगत होने में अभी समय लगेगा.दरअसल,बाजार तीसरी तिमाही में देश के सबसे बड़े निजी बैंक के नतीजों से निराश दिखा. जहां तक गैर ब्याज आय की बात है, राजकोषीय आय कम रही है.यह चौंकाने वाली बात नहीं है क्योंकि नीतिगत दरें अपरिवर्तित रहीं और रुपए में भी अधिक उतार-चढ़ाव नहीं आया. इसलिए बॉन्ड प्रतिफल भी मोटे तौर पर अपरिवर्तित रहे. परिचालन लागत में इजाफा हुआ क्योंकि बैंकों ने उच्च प्रतिस्पर्धा वाले माहौल के चलते शाखाएं खोली हैं.खुदरा मार्केट भी एक दिलचस्प क्षेत्र है जहां बैंक विशिष्ट गैर बैंक वित्तीय कंपनियों के साथ कड़ा मुकाबला कर रहे हैं. रिजर्व बैंक के हालिया नीतिगत कदमों ने नए एआईएफ प्रावधानों के कारण मुनाफे पर बुरा असर डाला है.अधिकांश निजी बैंकों में प्रबंधन के निर्देश आत्मविश्वास से भरे नजर आ रहे हैं. ऋण की मांग में इजाफा जारी रहने की उम्मीद है.बैंक मानकर चल रहे हैं कि रिजर्व बैंक फेडरल रिजर्व के साथ तालमेल रखते हुए उसके साथ ही नीतिगत दरों में कटौती आरंभ कर देंगे.परंतु जब तक मौद्रिक नीति मजबूत बनी रहेगी और ऋण जमा अनुपात सुधरेगा, एनआईएम में कमी जारी रहेगी. दिग्गजों की मानें तो चालू तिमाही में एनआईएम में और कमी आएगी भले ही इसका आकार बहुत बड़ा न हो. कॉर्पोरेट ऋण की मांग में सुधार की भी अपेक्षा है. यह खुदरा ऋण विस्तार में धीमेपन की भरपाई करेगा.
सैद्धांतिक तौर पर देखें तो क्षमता के उपयोग में सुधार की मदद से कॉर्पोरेट निवेश में सुधार किया जा सकता है. हालांकि शुरुआती कॉर्पोरेट नतीजे यही संकेत देते हैं कि मुनाफे में वृद्धि बहुत ऊंची नहीं है. बैंक निफ्टी जिसमें कई निजी बैंक हैं, उसका प्रदर्शन पिछले महीने कमजोर रहा है क्योंकि निवेशक बहुत उत्साहित नहीं नजर आए. निकट भविष्य में प्रदर्शन इस बात पर निर्भर करेगा कि मौद्रिक नीति के आसपास कॉर्पोरेट ऋण की अपेक्षाओं में कैसी बढ़ोतरी होती है.केंद्र सरकार का राजकोषीय रुख भी निकट अवधि का दृष्टिकोण तय करेगा. कुल मिला कर बैंकिंग सुधार एक निरंतर प्रक्रिया है जिसे नई सरकार को भी जारी रखना पड़ेगा. मजबूत बैंकिंग सिस्टम ही अर्थव्यवस्था को तीव्र गति प्रदान कर सकता है.