पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद “ऑपरेशन सिंदूर” के जरिए भारत ने जो जवाब दिया, वह सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की नई परिभाषा का घोषणापत्र है.इस ऑपरेशन में भारत ने पाकिस्तान के अंदर घुसकर न केवल 9 आतंकी शिविरों को नष्ट किया, बल्कि लाहौर स्थित वायु रक्षा इकाई को भी खत्म कर दिया. इस साहसी और सटीक प्रहार ने स्पष्ट कर दिया कि भारत अब केवल सीमाओं की रक्षा करने वाला राष्ट्र नहीं, बल्कि अपने दुश्मनों की रणनीतिक गहराई में जाकर निर्णायक हमला करने की क्षमता भी रखता है.इस परिवर्तनशील क्षमता के पीछे पिछले एक दशक में एयर डिफेंस में हुआ संरचनात्मक बदलाव है. मोदी सरकार ने 2014 से भारत की हवाई सुरक्षा को तकनीकी दृष्टि से सशक्त करने की जो शुरुआत की थी, उसका प्रतिफल अब दिखाई दे रहा है.
यह युद्ध केवल हथियारों का नहीं, तकनीकी कौशल का भी है. आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना अब रक्षा क्षेत्र में भी मूर्त रूप ले चुकी है.कराची और लाहौर में सटीक हमलों के लिए स्वदेशी ड्रोन और इजरायली तकनीक पर आधारित प्लेटफॉर्मों का उपयोग, राफेल विमानों के साथ समन्वय और रियल-टाइम इंटेलिजेंस नेटवर्क.ये सभी भारत की सामरिक रणनीति में परिवर्तन के संकेत हैं. ऑपरेशन सिंदूर केवल एक बदले की कार्रवाई नहीं, बल्कि यह एक संदेश है कि भारत अब अपने आकाश की ही नहीं, अपने रणनीतिक भविष्य की भी रक्षा करना जानता है.बहरहाल, विश्व आज जिस अस्थिरता और वैचारिक द्वंद्व के दौर से गुजर रहा है, उसमें भारत की भूमिका धीरे-धीरे निर्णायक होती जा रही है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने अपनी सुरक्षा नीतियों में जिस संयम और संतुलन का परिचय दिया है, वह वैश्विक समुदाय के लिए आश्वस्त करने वाला है.यह तत्परता किसी भी प्रकार की आक्रामकता का संकेत नहीं, बल्कि एक परिपक्व राष्ट्र के आत्मविश्वास और अपनी संप्रभुता के प्रति सजग रहने का प्रमाण है.
भारत ने सिंधु जल संधि के सन्दर्भ में जो रुख अपनाया है, वह भी इसी रणनीतिक परिपक्वता का हिस्सा है.यह रुख न तो प्रतिशोध से प्रेरित है, न ही प्रताडऩा की मानसिकता से—बल्कि यह भारत की जल संप्रभुता और पर्यावरणीय न्याय के पक्ष में लिया गया एक नीतिगत निर्णय है. यदि कोई संधि काल-प्रवाह में अपनी प्रासंगिकता खो बैठी हो, तो उस पर पुनर्विचार स्वाभाविक और उत्तरदायी लोकतंत्र की अनिवार्यता है.
भारत की सैन्य रणनीति में जो आत्मविश्वास परिलक्षित हो रहा है, वह अकारण नहीं. ऑपरेशन सिंदूर जैसे अभियानों से यह स्पष्ट हो गया है कि भारतीय सेना अब केवल रक्षात्मक मोर्चों तक सीमित नहीं रहना चाहती, बल्कि आवश्यकता पडऩे पर सीमा पार जाकर भी अपने नागरिकों की रक्षा कर सकती है.किंतु यह सब एक ठोस संवैधानिक ढांचे, जवाबदेही और अंतरराष्ट्रीय संधियों के अंतर्गत किया जा रहा है.यही भारत को विशिष्ट बनाता है.
यह भी सत्य है कि विश्व में यदि कोई राष्ट्र आतंकवाद से सर्वाधिक पीडि़त रहा है, तो वह भारत है. इसके बावजूद भारत ने संयम और संवाद को प्राथमिकता दी है. अब जबकि भारत और इज़राइल के साझा अनुभव, तकनीकी दक्षता और नीतिगत समर्पण एक साझा मंच पर आ रहे हैं, तो यह मानवता के लिए आशा का एक नया केंद्र बन सकता है. यह धुरी, जिसका मूल आत्मरक्षा और न्याय है, केवल युद्ध की भाषा नहीं बोलती,यह शांति के लिए शक्ति का संतुलन रचती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह नीति भारत की परंपराओं से भी सामंजस्य रखती है, जहां ‘शांति’ को ‘धर्म’ कहा गया और ‘शस्त्र’ को ‘शास्त्र’ का अनुचर माना गया. यह वही भूमि है जहां युद्ध का उद्देश्य केवल “धर्म की रक्षा” और “अधर्म का नियंत्रण” रहा है.ऐसे में भारत की यह स्थिति—सामरिक मजबूती के साथ नैतिक संतुलन की—विश्व में शांति की आकांक्षा रखने वालों के लिए प्रेरक बन सकती है.