जबलपुर। देर से पहुँचने के कारण हाईकोर्ट जज की ट्रेन छूट जाने के कारण ड्रायवर पद से बर्खास्त किये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। हाईकोर्ट जस्टिस संजीव सचदेवा तथा जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि विभागीय जांच के बाद याचिकाकर्ता को सजा से दंडित किया गया था। याचिकाकर्ता की गलती इतनी बड़ी नहीं थी उसे सेवा से बर्खास्त किया जाये। युगलपीठ ने बर्खास्तगी की सजा को असंगत पाते हुए उसे निरस्त कर दिया है।
याचिकाकर्ता विजय सिंह भदौरिया की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि वह जिला एवं सत्र न्यायालय में दैनिक वेतन भोगी के रूप में कार्यरत था। उसका ड्राइवर पद पर जनवरी 2004 में नियमितीकरण हुआ था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एस.के. सिंह की भोपाल यात्रा के दौरान उनकी सेवा में 18 से 20 नवम्बर 2006 को ड्राइवर की ड्यूटी सौंपी गई थी। उसे 19 तथा 20 नवम्बर की दरम्यानी रात जस्टिस सिंह को रेलवे स्टेशन ले जाना था। इसके लिए उसे रात 1.30 बजे बुलाया गया था। वह रात 2.15 बजे सर्किट हाउस पहुंचे और स्टेशन पहुंचने से पहले जस्टिस सिंग की ट्रेन छूट गयी थी। जस्टिस सिंह के द्वारा उसकी लिखित शिकायत की गयी थी। शिकायत में यह भी कहा गया था कि याचिकाकर्ता नशे की हालत में था।
जिसके बाद उसे कारण बताओं नोटिस जारी किया गया और विभागीय जांच प्रारंभ की गयी। विभागीय जांच में उसे कदाचरण का दोषी पाते हुए फरवरी 2007 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। जिसके खिलाफ उक्त याचिका दायर की गयी थी। याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया था कि जिस वाहन से जस्टिस सिंह को स्टेशन ले जाना था वह श्यामला हिल्स में खड़ा था। घर से हिल्स पहुंचने के दौरान रास्ते में उसकी साइकिल पंचर हो गयी थी। जिसके कारण वह वीआईपी गेस्ट हाउस देरी से पहुँचा था। नाराज होने के कारण जस्टिस सिंह ने शिकायत में याचिकाकर्ता के नशे में होने की बात कही थी।याचिकाकर्ता को मेडिकल जांच के लिए नहीं भेजा गया और जांच के दौरान किसी गवाह से पूछताछ नहीं की गई, जिससे यह साबित हो सके कि याचिकाकर्ता नशे में था।
युगलपीठ ने याचिका की सुनवाई करते हुए बताया कि रेलवे मजिस्ट्रेट भोपाल सुरेश सिंह ने जांच अधिकारी के समक्ष स्पष्ट रूप से कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रेलवे स्टेशन पर समय पर नहीं पहुंच सके, क्योंकि याचिकाकर्ता वीआईपी गेस्ट हाउस में देरी से आया था और नशे की हालत में था। याचिकाकर्ता ने स्वयं अपनी जांच में स्वीकार किया है कि उसे 1.30 बजे वीआईपी गेस्ट हाउस पहुंचने का निर्देश दिये गये थे। उसने इस आरोप से इनकार कर दिया कि वह नशे की हालत में था। श्यामला हिल्स के जजेज एन्क्लेव में रात्रिकालीन सुरक्षा गार्ड की ड्यूटी कर रहे होमगार्ड सैनिक सुनील कुमार से पूछताछ के दौरान याचिकाकर्ता के इस तर्क का समर्थन किया कि उसकी साइकिल पंचर हो गई थी। युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि उच्च न्यायालय केवल तभी दंड के आदेश में हस्तक्षेप कर सकता है जब नियमों के प्रावधानों या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन साबित हो। कानून सक्षम प्राधिकारी को जब अपराधी व्यक्ति के खिलाफ उसके कदाचार के लिए कार्रवाई करने की अनुमति देता है, तो निष्कर्ष में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। कदाचार के निष्कर्ष का संबंध में न्यायालय अनुशासनात्मक प्राधिकारी से सहमत हैं। कदाचार के आरोप को देखते हुए बर्खास्तगी की सजा असंगत प्रतीत होती है। युगलपीठ ने सक्षम प्राधिकरण को सजा के संबंध में तीन माह में पुनर्विचार करने के निर्देश दिये है। युगलपीठ ने याचिकाकर्ता को नो वर्क नो पे के आधार पर बहाल करने के आदेश दिये है।