प्रवेश कुमार मिश्र
नई दिल्ली ।
कांग्रेस पार्टी दिल्ली की तर्ज पर बिहार में भी अपने पांव पर खड़े होकर चलने को बेचैन है. पार्टी ने राजद के साथ वर्षों पुरानी दोस्ती को सख्त शर्तों में बांधते हुए भविष्य की रणनीति को उजागर कर दिया है.
सूत्रों की मानें तो पार्टी रणनीतिकारों ने दस वर्ष आगे की रणनीति को अमली जामा पहनाने के उद्देश्य से ही “पहले संगठन को मजबूत करो, फिर सहयोगियों से शर्तों पर बात करो और बात न बने तो ऐकला चलो” की तैयारी आरंभ कर दी है. पार्टी रणनीतिकारों का स्पष्ट मानना है कि सहयोगियों के सहारे तत्कालीन जंग में कुछ सफल होने से बेहतर है अपने संगठन के दम पर भविष्य के लिए लड़ाई की जाए. सूत्रों की मानें तो पार्टी के नवनियुक्त प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने रणनीतिक सोच के तहत ही अभी तक बिहार के सहयोगी दलों के नेताओं के साथ औपचारिक मुलाकात भी नहीं की है. जबकि पिछले तीन दशकों का इतिहास रहा है कि जो भी कांग्रेस का प्रदेश प्रभारी नियुक्त किया जाता रहा है उनमें से ज्यादातर प्रभारी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के घर पहुंचकर यह संदेश देता रहा है कि कांग्रेस व राजद ऐतिहासिक सहयोगी दल हैं. इतना ही नहीं बिहार में ओबीसी, ईबीसी व दलितों का अलग अलग सम्मेलन कर पार्टी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह राष्ट्रीय पार्टी की हैसियत से इन जातियों को खास तवज्जो देने के लिए बहुस्तरीय संघर्ष कर रही है इसलिए वहीं उक्त जातियों की सबसे बड़ी हितैषी है.
सूत्रों की मानें तो पिछले दिनों निर्वतमान प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर दलित नेता राजेश राम को जिम्मेदारी देकर पार्टी ने यह संदेश दिया है कि वह राजद के साथ सख्त रुख के साथ आगे बढ़ने को तैयार है. वैसे भी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पिछले कुछ महीनों में लगातार बिहार का दौरा कर पार्टी कार्यकर्ताओं को पार्टी की रणनीति का संकेत दे रहे हैं. बहरहाल, पार्टी रणनीतिकार बिहार की जातियों से घिरे राजनीतिक जमीन पर अपने परंपरागत वोटबैंक से अलग नए कुनबे के सहारे भविष्य की योजना बना रहे हैं. जबकि राजद कांग्रेस के रूख पर पैनी नजर रखते हुए मुस्लिम व यादव समीकरण के सहारे राजग को सीधे चुनौती देने में लगी है.