देश में स्वास्थ्य क्षेत्र में स्थिति पहले से खराब हुई है : विपक्ष

नयी दिल्ली 18 मार्च (वार्ता) राज्यसभा में विपक्षी दलों ने देश में स्वास्थ्य क्षेत्र की बदहाल स्थिति की तस्वीर पेश करते हुए कहा कि कुछ मानकों में देश बंगलादेश और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से भी पीछे है जबकि सत्ता पक्ष ने कहा कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से स्वास्थ्य क्षेत्र में कई गुना सुधार हुआ है।

विपक्षी सदस्यों ने यह भी दावा किया कि कई राज्यों में स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थिति केन्द्र की तुलना में कहीं बेहतर है।

द्रविड मुनेत्र कषगम के तिरूचि शिवा ने मंगलवार को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के कामकाज पर चर्चा की शुरूआत करते हुए कहा कि देश में स्वास्थ्य क्षेत्र की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुल बजट में इसके लिए मात्र 1.4 प्रतिशत का आवंटन किया गया है जो जीडीपी का केवल 0.02 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि अन्य देशों में यह आंकड़ा कहीं ज्यादा है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट का आवंटन करते समय स्थायी समिति की सिफारिशों को नजरंदाज किया गया है। उन्होंने कहा कि श्रीलंका और थाइलैंड जैसे देश भी स्वास्थ्य पर भारत से अधिक खर्च कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार को इस स्थिति की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए।

श्री शिवा ने कहा कि तमिलनाडु सरकार ने राज्य के कुल बजट का 4.9 प्रतिशत स्वास्थ्य के लिए आवंटित किया है। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में सबसे अधिक 79 मेडिकल कालेज हैं और राज्य में डाक्टर तथा रोगी का अनुपात देश भर में सबसे बेहतर है। उन्होंने कहा कि सरकार गैर संचारी रोगों पर काबू पाने में पूरी तरह विफल रही है। मानसिक रोगियों और मानसिक स्वास्थ्य को भी देश में नजरंदाज किया जा रहा है। मेडिकल कालेजों में दाखिले के लिए नीट परीक्षा को राज्यों पर थोपने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि यह परीक्षा राज्यों से विचार विमर्श के आधार पर तय की जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि विशेष रूप से दक्षिण के राज्य केन्द्र की तुलना में कहीं बेहतर स्वास्थ्य सुविधा ढांचा उपलब्ध करा रहे हैं । उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में 50 प्रतिशत अस्पताल सरकारी हैं और 48 प्रतिशत निजी अस्पताल हैं जबकि अन्य राज्यों में सरकारी अस्पतालों की संख्या कम है। उन्होंने स्वास्थ्य बीमा पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाये जाने का भी मुद्दा उठाया और इसे वापस लेने की मांग की। उन्होंने कहा कि मदुरै एम्स अभी भी कागजों में ही अटका हुआ है और इसका काम जल्द शुरू किया जाना चाहिए। द्रमुक सदस्य ने कहा कि तमिलनाडु को परिवार नियोजन के क्षेत्र में अच्छा कार्य करने के लिए परिसीमन के नाम पर दंडित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि परिसीमन प्रक्रिया आबादी के आधार पर नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि उत्तर के राज्यों में भी परिवार नियोजन पर ध्यान दिया जाना चाहिए ।

भारतीय जनता पार्टी के भागवत कराड़ ने इसका प्रतिवाद करते हुए मोदी सरकार के कार्यकाल में अस्पतालों से लेकर मेडिकल कालेज, मेडिकल सीटों , टीकाकरण और स्वास्थ्य ढांचे में कई गुना सुधार होने का दावा किया। उन्होंने कहा कि सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट निरंतर बढा रही है और इस बार भी इसे 1.9 प्रतिशत से बढकर 1.97 प्रतिशत किया गया है।

उन्होंने कहा कि इस सरकार के कार्यकाल में शिशु मृत्यु दर निरंतर कम हो रही है। डाक्टर और रोगी का अनुपात 1.2 प्रतिशत डाक्टर प्रति हजार रोगी पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि मेडिकल शिक्षा में सुधार के लिए कालेज और मेडिकल सीटों की संख्या भी निरंतर बढायी जा रही है। उन्होंने कहा कि आयुष्मान योजना का दायरा गिग वर्कर तक बढाया गया है। देश भर में 70 हजार अस्पतालों में से 26000 सरकारी और 44000 निजी अस्पताल हैं। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए प्रौद्योगिकी आधारित चिकित्सा ढांचे को बढाये जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि दूर दराज के क्षेत्रों में भी डाक्टरों की सुविधा बढायी जा रही है।

श्री कराड़ ने कहा कि देश में ढाई करोड़ बच्चों का टीकाकरण किया जा रहा है। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को भी टीके लगाये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जन औषधि केन्द्रों के माध्यम से लोगों को सस्ती दवा मिलने से करोड़ों रूपये का फायदा हो रहा है।

कांग्रेस के अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि इस सरकार के कार्यकाल में स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थिति काफी खराब हुई है। उन्होंने कहा कि यह सरकार 2017 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति लेकर आयी थी जिसमें 2025 तक स्वास्थ्य पर सकल घरेलु उत्पाद का 2.5 प्रतिशत खर्च करने का लक्ष्य रखा गया था जबकि यह अभी तक 1.2 प्रतिशत पर ही अटका हुआ है। उन्होंने कहा कि देश में गैर संचारी रोगों से मरने वालों की संख्या 12 प्रतिशत बढ गयी है। दुनिया के 25 प्रतिशत तपेदिक रोगी भारत में है और इस मामले में भारत की स्थिति काफी खराब है। उन्होंने कहा कि डेंगू का आतंक भी बढता जा रहा है और इसके लिए कोई व्यापक कार्यक्रम नहीं चलाया जा रहा है। सदस्य ने कहा कि कुछ मामलों में तो हालत बंगलादेश, पाकिस्तान और अन्य पडोसी देशों से भी खराब है। उन्होंने कहा कि महिलाओं में एनीमिया की समस्या बढती जा रही है। श्री सिंह ने कहा कि सरकार आयुष्मान योजना का गुणगान कर रही है लेकिन निजी अस्पतालों में इस योजना के लाभार्थियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि जेनेरिक दवाओं का असर नहीं हो रहा है और उससे रोगी ठीक नहीं हो पा रहे। उन्होंने कहा कि देश में 14 प्रतिशत आबादी मानसिक समस्याओं से ग्रसित है जो चिंताजनक है। उन्होंने इसके लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किये जाने की मांग की। उन्होंने दावा किया कि बिहार में स्वास्थ्य क्षेत्र में 49 प्रतिशत पद खाली हैं और डाक्टरों के भी आधे से अधिक पद रिक्त हैं। बिहार में मातृ मृत्यु और शिशु मृत्यु दर देश की औसत से कहीं अधिक है।

उन्होंने कहा कि सरकार बार बार मेडिकल कालेजों की संख्या बढाने का दम भरती है लेकिन इस बात को नहीं बताती कि इनमें शिक्षकों की भारी कमी है। उन्होंने आंकडों का उल्लेख करते हुए कहा कि एम्स नयी दिल्ली सहित सभी कालेजों में औसतन 25 प्रतिशत शिक्षकों की कमी है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अलग अलग तरीकों से वास्तविक स्थिति से ध्यान भटकाने में लगी रहती है।

तृणमूल कांग्रेस के सुखेंदू शेखर राय ने कहा कि देश में असाध्य और घातक बीमारी के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है। उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकार को इस दिशा में तत्काल ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत दवा कंपनियों के लिए बहुत बड़ा बाजार बन गया है। संविधान में स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है और केंद्र को इस संबंध में राज्य सरकारों से विचार विमर्श करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार को जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय प्रभाव से निपटने की तैयारी करनी चाहिए।

चर्चा में हिस्सा लेते हुए आम आदमी पार्टी के संदीप कुमार पाठक ने कहा कि सरकारी अस्पतालों की हालत खराब होती जा रही है। अस्पतालों में डाक्टर और दवा उपलब्ध नहीं है जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है। देश की स्थिति की विकसित देशों के साथ तुलना नहीं कर सकते हैं। देश में शहरों में डाक्टरों की संख्या आवश्यकता से अधिक है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है। उन्हाेंने कहा कि देश में स्वास्थ्य बीमा की योजना रोगी को ध्यान में रखकर नहीं, बल्कि अस्पताल को ध्यान रखा जा रहा है। श्री पाठक ने कहा कि सरकार मध्यम वर्ग को कोई स्वास्थ्य सुविधा नहीं दे रही है। सरकार की दोनों स्वास्थ्य योजनाएं राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और आयुष्मान भारत गरीबी से नीचे रहने वाले लोगों(बीपीएल) के लिए हैं।

वाईएसआरसीपी गोला बाबूराव ने कहा कि सरकार को ‘स्वास्थ्य ही धन है’ का मंत्र समझना चाहिए। जिला अस्पतालों में सुविधायें बढ़ाई जानी चाहिए और पर्याप्त डाक्टरों की तैनाती की जानी चाहिए। इन अस्पतालों पर लाखों लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी होती है। उन्होंने आयुष्मान भारत योजना का स्वागत करते हुए कहा कि इसमें बीमा राशि बढ़ाई जानी चाहिए।

बीजू जनता दल की सुलता देव ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए कम से कम तीन प्रतिशत बजटीय आवंटन होना चाहिए। विकसित राष्ट्र बनने के लिए यह आवश्यक है। यूरोपीय देश और अमेरिका में बजट का एक बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य सेवा पर व्यय किया जाता है। देश में कुपोषित बच्चों की मृत्यु हो रही है। इसके अलावा कुपोषित बच्चों की संख्या में वृद्धि हो रही है। केंद्र सरकार को इस संबंध में नवीन पटनायक सरकार से सीखना चाहिए। ओडिशा में बेहतर स्वास्थ्य योजना शुरु की गयी थी।

राष्ट्रीय जनता दल के मनोज कुमार झा ने कहा कि माेरंगा, सहजन से कूपोषण से लड़ने में सहायक है। सरकार को परंपरागत खानपान की ओर ध्यान देनरा चाहिए है। सार्वजनिक स्वास्थ्य ढ़ांचा टूट रहा है जिसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। उपचार कराने के लिए लोग गरीब हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि काेविड के दौरान बढ़ाया गया स्वास्थ्य बजट घटाया नहीं जाना चाहिए।

समाजवादी पार्टी की जया बच्चन ने देश में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर केन्द्र सरकार की कड़ी आलोचना की और कहा कि मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति बहुत खराब है। इस पर सरकार को तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।

कांग्रेस की जेबी मथैर हीशम ने आशा कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी शिक्षिकों और सहायिकाओं के मानदेय में वृद्धि करने की मांग करते हुये कहा कि इन सभी सरकारी कर्मचारी की सुविधायें दी जानी चाहिए और सरकारी कर्मचारी माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अच्छे दिन, सबका साथ सबका विकास, अमृतकाल और विकसित भारत सिर्फ नारा है। लोगों को इससे कोई लाभी नहीं हो रहा है। आयुष्मान भारत के तहत फर्जीवाड़ा किये जाने के आरोप लगाते हुये उन्होंने कहा कि सरकार 10 हजार मेडिकल सीटें बढ़ाने की बात कहती है, लेकिन वास्तविकता में इसका लाभ नहीं मिल रहा है।

आईयूएमएल के अब्दुल वहाब ने कहा कि सरकार को विदेशी शिक्षित मेडिकल छात्रों के लिए प्रवेश आसान बनाने की जरूरत है। भारत में कई छात्र चिकित्सा की पढ़ाई करने के लिए विदेश जाते हैं और इस प्रक्रिया में अच्छी खासी रकम खर्च करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार को भी विदेशी शिक्षित मेडिकल छात्रों को भारत में प्रैक्टिस करने का लाइसेंस देकर उनके प्रवेश को आसान बनाने की जरूरत है।

तृणमूल कांग्रेस के मोहम्मद नदीमुल हक ने कहा कि इस साल के बजट में भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.8 प्रतिशत स्वास्थ्य के लिए आवंटित किया गया है, जबकि सार्वभौमिक मानक सकल घरेलू उत्पाद का 6.0 प्रतिशत है। विश्व स्तरीय अस्पताल होने के बावजूद, हमारे पास एम्स के शिक्षण या गैर-शिक्षण कर्मचारियों के 18,256 से अधिक पद खाली हैं। यदि पर्याप्त आवंटन या स्टाफ नहीं है तो यह सरकार स्वास्थ्य प्रणाली की देखभाल कैसे करेगी। स्वास्थ्य आवंटन का केवल एक प्रतिशत मानसिक स्वास्थ्य के लिए है। उन्होंने स्वास्थ्य आवंटन में बढ़ोतरी, मेडिकल, नर्सिंग कॉलेजों में सीटें बढ़ाने, सार्वजनिक टीकाकरण को 80 प्रतिशत तक बढ़ाने और अस्पतालों की संख्या बढ़ाने के लिए ममता बनर्जी सरकार की सराहना की। उन्होंने सरकार की प्रमुख बीमा योजनाओं पर भी प्रकाश डाला और केंद्र से तृणमूल कांग्रेस सरकार के प्रयासों को राष्ट्रीय स्तर पर दोहराने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी स्वास्थ्य बीमा पर से 18 प्रतिशत जीएसटी को हटाने की मांग करती रही है।

भाजपा की रमिलाबेन बेचारभाई बारा ने कहा कि सरकार न:न सिर्फ लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवायें देने के प्रति संवेदनशील बल्कि लोगों को किफायती दामों पर बेहतर गुणवत्ता की दवायें जनऔधषि के माध्यम से उपलब्ध करा रही है।

कांग्रेस के नीरज डांगी ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र में चरणबद्ध तरीके से सुधार किये जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र का बजट देश की आबादी की जरूरतों के अनुरूप नहीं है। उन्होंने कहा कि देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के अंतर को कम करने की जरूरत है। देश की 70 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में है लेकिन वहां केवल 35 प्रतिशत अस्पताल ही हैं बाकी 65 प्रतिशत अस्पताल शहरी क्षेत्रों में हैं। उन्होंने मेडिकल कालेजों में दाखिले के लिए नीट की परीक्षा को बंद किये जाने की मांग की।

शिवसेना के मिलिंद मुरली देवरा ने बजट में 11 प्रतिशत की बढोतरी का स्वागत किया। उन्होंने देश भर के कालेजों में मेडिकल सीटों की संख्या बढाये जाने की भी सराहना की। आयुष्मान योजना का दायरा गिग वर्कर तक बढाने को भी उन्होंने अच्छा कदम बताया। उन्होंने अमेरिका में मोटापे की समस्या के विकराल रूप धारण करने का उदाहरण देते हुए इससे सबक लेकर देश में एहतियाती कदम उठाये जाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि कुपोषण के क्षेत्र में भी अच्छा काम हो रहा है। उन्होंने शक्कर युक्त पेयों पर भारी कर लगाये जाने की मांग की।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एससीपी की डा फौजिया खान ने नारी सशक्तिकरण के लिए महिलाओं के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिये जाने की मांग की। उन्होंने पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में कुपोषण की बढती समस्या का मुद्दा उठाया। उन्होंने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट का आवंटन जीडीपी का 2.5 प्रतिशत किये जाने की मांग की।

मनोनीत सुधा मूर्ति ने मानसिक रोग से ग्रसित लोगों की मदद के लिए व्यापक स्तर पर सुविधाएं किये जाने की मांग की। उन्होंने देश में निम्हेन्स की तर्ज पर कई संस्थान खोले जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में अनुसंधान के लिए धनराशि भी बढायी जानी चाहिए। उन्होंने मानसिक रोगों से निपटने के लिए जागरूकता बढाने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि लोगों को बताया जाना चाहिए कि मानसिक रोगों का भी उपचार किया जा सकता है।

भाजपा के दीपक प्रकाश ने कहा कि मोदी सरकार ने कोरोना काल में स्वास्थ्य सुविधाओं का अप्रत्याशित ढंग से प्रबंधन किया। उन्होंने कहा कि देश भर में 23 एम्स खोले गये हैं जिनमें लोगों का उत्तम उपचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज देश में बड़ी संख्या में विदेशों से लोग उपचार कराने आ रहे हैं।

चर्चा अधूरी रही।

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