खाली पड़े चुनावी मैदान मे गोल मारने मे डटे भाजपा प्रत्याशी, फिर मतदाता खामोश, सपा एवं कांग्रेसी नहीं निकल रहे घरों से  

पन्‍ना ब्‍यूरो

ःखास बातेंः

1. पहले निर्विरोध जीतने की कोशिश हो चुकी असफल।

2. जातीय गोटियां फिट करने में जुटे प्रत्याशी।

3. चुनाव के प्रति बिल्कुल दिलचस्पी नहीं है जिलेवासियों की।

4. अंतिम समय मे इंडिया गठबंधन के समर्थन के बावजूद नहीं मिल रहा सपा-कांग्रेस का सहयोग।

 

इस बार चूंकि लगभग 40 वर्षो बाद ऐसा मौंका सामने हैं कि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस चुनाव मैदान से बाहर है जिस कारण चुनाव फीका नजर आ रहा है। इंडिया गठबंधन के एक मात्र प्रत्याशी रहीं श्रीमती मीरा यादव का नामांकन निरस्त होने के कारण चुनावी मैदान लगभग खाली नजर आ रहा है क्योंकि भले ही मतदान के कुछ ही दिन पूर्व इंडिया गठबंधन में पूर्व आईएस अधिकारी आर बी प्रजापति को अपना समर्थन दे दिया है। जिले में यह हालात है कि समर्थन के बावजूद उनके साथ इंडिया गठबंधन के प्रमुख दल कांग्रेस, सपा कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। कुल मिलाकर यदि यह कह दे कि खाली पड़े चुनावी मैदान में भाजपा प्रत्याशी वीडी शर्मा अकेले ही गोल मारने में डटे हैं तो गोल मारने में सफलता मिलना स्वाभाविक है। हालांकि मप्र में इंडिया गठबंधन के समझौते की एकमात्र सीट खजुराहो में बिना मजबूत प्रतिद्वंदी या कैंडिडेट के भी भाजपा की टेंशन बढ़ गई है। पार्टी प्रत्याशी वीडी शर्मा रोजाना 30 से 40 गांवो के चक्कर लगा रहे हैं। सड़कों पर इतनी ही बैठकें करने के बाद 10 से 12 संभाएं ले रहे हैं। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह इस सीट पर पहुंच चुके हैं। गुरूवार को मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी रोड शो किया है। यह सब इसलिए ताकि खामोश हो गए मतदाता को न केवल घर से ब ाहर निकलवाया जाए, बल्कि वोट भी डलवाकर बडी जीत हासिल की जा सके। इसीलिए भाजपा हर बूथ को एक्टिव करने के साथ स्थानीय पंचायत व निकाय के जनप्रतिनिधियों को भी साधे हुए है। वर्ष 2019 में चुनाव में खजुराहो लेाकसभा सीट पर साढ़े 18 लाख में से 12.57 लाख वोट डले थे। वीडी शर्मा करीब 65 प्रतिशत वोट लेकर 4.92 लाख वोट से जीत गए थे। तब कांग्रेस से कविता सिंह ने चुनाव लडा था। इस बार इंडिया गठबंधन के समझौते में कांग्रेस ने यह सीट सपा को दे दी। लेकिन सपा प्रत्याशी का ऐन वक्त पर पर्चा निरस्त हो गया। अब ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक से खड़े आरबी प्रजापति को इंडिया गठबंधन का समर्थन है। इनका चुनाव चिन्ह शेर है। लेकिन यह सभी वोटरों तक पहुंच जाएगा।यह मुश्किल प्रजापति के सामने है। बसपा से कमलेश कुमार पटेल और गांगपा से पंकज मौर्य हैं। कुल मिलाकर 14 उम्मीदवार हैं, मगर वीडी शर्मा के अलावा मैदान में किसी की ठोस मौजूदगी नहीं है। न कहीं झंडे और न ही बैनर। साफ है कि भाजपा प्रत्याशी वीडी शर्मा बडी जीत की तरफ बढ़ रहे हैं। चुनौती सिर्फ वोट निकालने की है।

निर्विरोध जीतने की कोशिश मे मीडिया ने फेर दिया पानीः- स्थानीय लोगों का कहना है कि सपा का पर्चा निरस्त होने के बाद यह संभावना बन गई थी कि भाजपा उम्मीदवार वीडी शर्मा के पक्ष में निर्विरोध निर्वाचन हो जाए जिस पर पर आरबी प्रजापति ने बयान दे दिया कि उन्हें डराया जा रहा है। इस मामले को प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा दिया। जिसके चलते यहां से यह मसला बिगड गया। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी भी कह रहे हैं कि कलेक्टर भाजपा के नौकर की तरह काम कर रहे हैं। सपा प्रत्याशी का पर्चा निरस्त होने से पहले तक जातिगत समीकरणों का असर खजुराहो में दिखाई दे रहा था पिछले लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस को 3.18 लाख वोट मिले थे। इस सीट पर 2 से ढाई लाख यादव मतदाता हैं। एक लाख के करीब मुस्लिम मतदाता हैं और कुर्मी भी डेढ़ लाख हैं। सपा उम्मीदवार रहीं मीरा यादव का नामांकन निरस्त नहीं होता तो शर्मा को कुछ मेहनत करनी पड सकती थी, लेकिन अब सियासी व जातिगत समीकरण बदल गए हैं।

जीत के आसार के बावजूद मतदाताओं की खामोशी के चलते छूट रहा पसीनाः- कोई मजबूत प्रत्याशी सामने न होेने के कारण भाजपा प्रत्याशी अपने आपको विजयी मानकर चल रहे हैं लेकिन प्रचार के दौरान मतदाताओं की खमोशी के चलते फिर भी टेंशन बना हुआ है। चुनाव करीब आने के साथ ही प्रत्याशियों से लेकर राजनीतिक दलों ने जातिगत समीकरणों को साधना -शुरू कर दिया है। वैवाहिक एवं त्यौहारों का सीजन चल रहा है। अलग-अलग समाजों के धार्मिक, सामाजिक आयोजन सभी को संपर्क के लिए बेहतर अवसर प्रदान कर रहे हैं। ऐसे में प्रत्याशियों, राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों को भी एक पंथ दो काज का भरपूर अवसर मिल रहा है। वे आयोजनों में शामिल होने के बहाने पहुंच रहे हैं। इस दौरान सबसे मिलना-जुलना तो हो ही जा रहा है, मौका मिलते ही धीरे से अपने मन की बात कह दे रहे हैं। वे सामूहिक पूजन- अनुष्ठान से लेकर, रैलियों में शामिल होने भी पहुंच रहे हैं। इस दौरान आयोजन में सहभागिता के नाम पर चुपके से सहयोग भी कर रहे हैं।

वोटरों के मौन से फूल रहा दमः- चुनाव कोई भी हो मतदाताओं की थाह पाना राजनीतिकों के लिए कठिन रहता है। वोटर मुखर हो तो किसी के प्रचार में आगे होने का अनुमान लग जाता है और एक स्पष्ट सी राय भी समझ में आती है। किस पर किसका असर है, हालांकि तब भी यह पकड़ पाना मुश्किल रहता है कि वोट किधर गिरेगा। लेकिन जब वोटर मौन हो जाए और कुरेदने पर भी चुनाव और राजनीति की बात करने को तैयार न हो तो राजनीतिज्ञों की सांसे फूलना स्वाभाविक है। इस बार ऐसा ही है, वोटर राजनीति और वोट को छोड़कर हर बात करता है। ऐसा नहीं है कि सभाओं में भीड़ नहीं आ रही है, पर वैसा उत्साह देखने को नहीं मिल रहा है। मतदाताओं के इस रुख ने प्रचारकों की परेशानी पर बल ला दिया है। जनसंपर्क में निकले नेताओं को इस बार अजब- गजब अनुभव मिल रहे हैं। बातचीत शुरू होते ही वोटरों के मन की बात बताने पर जोर देने पर वह कन्नी काटने लगता है। हालात तो यहां तक है कि जनसम्पर्क अभियान के दौरान नेताओं और कार्यकर्ताओं की भीड़ देखकर वोटर किनारे होकर टुकुर- टुकुर देखने लगता है, उसमे कतई दिलचस्पी नहीं दिखती प्रचारकों के पास जाकर कोई बात करे या सुने। आमतौर पर चाय के ठेले व बाजारो पर खरीदी के दौरान चुनाव की चर्चा छिड़ते ही रुझान का पता चल जाता है। लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं है, दुकानदार भी ग्राहक के मूड की चिंता किए बिना कह देता है कि कोई माहौल नहीं है, वोट कहां जाएगा इसकी चर्चा उससे कोई नहीं करता है। वोटिंग नजदीक आते देख प्रत्याशी से लेकर पार्टी कार्यकर्ता तक चिंता में डूबने-उतराने लगे है।

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