ट्रंप के सत्तासीन होने से भारत की उम्मीदें बढ़ीं

डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति का कार्यभार संभाल लिया है. कार्यभार संभालने से पूर्व ही उन्होंने अपनी नीतियों और कार्यक्रमों की घोषणा कर दी थी इसी के साथ उनकी टीम भी तैयार है. डोनाल्ड ट्रंप से भारत को बहुत उम्मीदें हैं. स्वाभाविक रूप से आतंकवाद के मुद्दे पर डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जोड़ी दुनिया में बहुत कुछ कर सकती है. इस मामले में दोनों के विचार एक हैं. इसमें भी कोई शक नहीं कि पाकिस्तान, कनाडा और बांग्लादेश में बैठे भारत विरोधी तमाम कट्टरपंथी ट्रंप की वापसी से निराश होंगे. अमेरिका का कुख्यात डीप स्टेट भी डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के कारण कमजोर होगा क्योंकि खुद डोनाल्ड ट्रंप और उनके मुख्य रणनीतिकार एलन मस्क डीप स्टेट के खिलाफ रहते हैं. डीप स्टेट के बारे में कहा जाता है कि यह राष्ट्रवादी सरकारों के खिलाफ रहता है. यानी डीप स्टेट की मंशा रहती है कि दुनिया के तमाम देशों में कमजोर सरकारें चलें. दरअसल,डीप स्टेट को कथित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोधी माना जाता है.

इस दृष्टि से भी भारत को डोनाल्ड ट्रंप के आने से लाभ मिलेगा. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप की आर्थिक नीतियां भारत के हितों के प्रतिकूल भी हो सकती हैं. दरअसल,पिछले महीने डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को आयात शुल्क का सबसे ज्यादा दुरुपयोग करने वाला बताया था. 2020 में तो उन्होंने भारत को ‘टैरिफ किंग’ तक कह डाला था. हालांकि भारत के उच्चतम शुल्कों को देखकर उसे टैरिफ किंग बताने का ट्रंप का दावा सही नहीं है, क्योंकि कई दूसरे देशों के शुल्क भारत से ज्यादा हैं. जापान का उच्चतम शुल्क 457 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया का 887 प्रतिशत और अमेरिका का उच्चतम शुल्क 350 फीसदी है जबकि भारत का उच्चतम शुल्क 150 प्रतिशत ही है.उच्चतम शुल्क आम तौर पर संवेदनशील क्षेत्रों को महफूज रखने के लिए लगाया जाता है. मसलन जापान अपने किसानों के हितों की रक्षा के मकसद से चावल पर ऊंचा शुल्क लगाता है. दरअसल, किसी देश के आयात शुल्क की सही तस्वीर उसके औसत टैरिफ से ही मिलती है.बहरहाल,वैश्विक व्यापार के नियम विश्व व्यापार संगठन तय करता है और भारत उसके शुल्क संबंधी नियमों का उल्लंघन नहीं करता, लेकिन अमेरिका ऐसा करता है.नियम तोड़े जाएं तो सदस्य देश डब्ल्यूटीओ से हस्तक्षेप करने के लिए कह सकते हैं. हालांकि अमेरिका अक्सर भारत का नाम लेकर चिंता जताता है मगर उसने भारत के ऊंचे शुल्कों को डब्ल्यूटीओ में चुनौती नहीं दी है क्योंकि वह जानता है कि भारत का शुल्क डब्ल्यूटीओ की सहमति वाली सीमा के भीतर है.जब 1995 में डब्ल्यूटीओ की शुरुआत हुई तब विभिन्न देशों ने उत्पादों पर अधिकतम शुल्क तय कर दिए जिन्हें ‘बाउंड टैरिफ’ (बाध्यकारी शुल्क) कहा गया और शुल्क उससे अधिक नहीं बढ़ाने पर भी वे रजामंद हो गए.अमेरिका और जापान जैसे विकसित देशों ने कम बाउंड टैरिफ (लगभग 3-4 प्रतिशत) रखा था और भारत जैसे विकासशील देशों को अधिक टैरिफ (40-150 प्रतिशत) की इजाजत दे दी गई.मगर विकसित देशों ने विकासशील देशों के लिए ऐसा लचीला रुख अपनाते समय यह शर्त रख दी कि उन देशों को डब्ल्यूटीओ की वार्ता में बौद्धिक संपदा अधिकार और सेवाओं को भी शामिल करना होगा. कुल मिलाकर विश्व व्यापार संगठन की शर्तें भी विकसित देशों के पक्ष में हैं. जाहिर है अमेरिका इन शर्तों का लाभ उठता रहा है. जहां तक अमेरिका और भारत के बीच व्यापार का सवाल है तो ट्रंप प्रशासन की नीतियों पर हमें नजर रखनी होगी, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के कारण जिस तरह से अमेरिकी कंपनियां चीन में पूंजी निवेश करने से बचेंगी उसका लाभ भारत को मिलना तय है. इसके अलावा राहत की बात यह है कि राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी के बीच जबरदस्त केमिस्ट्री है जिसका लाभ जरूर भारत को मिलेगा.

 

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