वाइडबैंड स्पेक्ट्रम सेंसर के सेमीकंडक्टर चिप विकसित करने का समझौता

नयी दिल्ली 13 जनवरी (वार्ता) अत्याधुनिक अगली पीढ़ी की दूरसंचार स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए दूरसंचार विभाग (डीओटी) की प्रमुख इकाई सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमेटिक्स (सी-डॉट) ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जम्मू (आईआईटी जम्मू) के सहयोग से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी (आईआईटी मंडी) के साथ स्पेक्ट्रम उपयोग को बढ़ावा देने के लिए वाइडबैंड स्पेक्ट्रम-सेंसर एएसआईसी-चिप विकसित करने के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
दूरसंचार विभाग की दूरसंचार प्रौद्योगिकी विकास निधि (टीटीडीएफ) योजना के तहत इस पर हस्ताक्षर किए गए हैं। भारतीय स्टार्टअप, शिक्षाजगत और अनुसंधान एवं विकास संस्थानों को वित्तीय सहायता के लिए बनाई गई यह योजना दूरसंचार उपकरणों और इसके समाधानों के डिजाइन, उन्हें विकसित करने और व्यावसायीकरण के लिए अहम है। इसका उद्देश्य ब्रॉडबैंड और मोबाइल सेवाओं को किफायती बनाना है जिससे पूरे भारत में डिजिटल विभाजन को पाटा जा सके।परियोजना का उद्देश्य ग्रामीण भारत में ब्रॉडबैंड सेवाएं प्रदान करने के लिए स्पेक्ट्रम होल्स की सहायता से स्पेक्ट्रम दक्षता बढ़ाने के लिए विश्वसनीय और कार्यान्वयन-अनुकूल वाइडबैंड स्पेक्ट्रम सेंसिंग (डब्ल्यूएसएस) एल्गोरिदम विकसित करना है। स्पेक्ट्रम होल में द्वितीयक उपयोगकर्ता प्राथमिक उपयोगकर्ता को प्रभावित किये बिना डेटा संचारित कर सकता है।यह परियोजना संचार एल्गोरिदम के डिजाइन पर ध्यान केंद्रित करेगी जो कम उपयोग में आ रहे बैंड (ह्वाइट स्पेसेज) का पता लगाने और उनके उपयोग के लिए वाइडबैंड स्पेक्ट्रम (2 गीगाहर्ट्ज बैंडविड्थ से परे) के संवेदन के लिए हार्डवेयर अनुकूल है और संचार प्रणाली के स्पेक्ट्रम उपयोग को बढ़ाता है। इसके अलावा इस परियोजना में स्पेक्ट्रम सेंसर के कुशल हार्डवेयर संरचना विकसित किए जाएंगे जो कम सेंसिंग समय, उच्च डेटा-थ्रूपुट और उन्नत हार्डवेयर सक्षमता युक्त हों। यह पहल न्यूनतम सेंसिंग समय के साथ 2 गीगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम से अधिक स्कैन करने में सक्षमता प्रदान करेगी, जिससे कॉगनेटिव रेडियो नेटवर्क के थ्रूपुट को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा यह स्पेक्ट्रम सेंसिंग और संचार के लिए 6 गीगाहर्ट्ज सैटेलाइट बैंड का वाइडबैंड कॉगनेटिव रेडियो मॉड्यूल प्रदर्शित करेगा। इन डिजाइनों को शुरू में फील्ड-प्रोग्रामेबल गेट-एरे (एफपीजीए) वातावरण में अनुकरण किया जाएगा और बाद में एप्लिकेशन-विशिष्ट एकीकृत-सर्किट (एएसआईसी) सेमीकंडक्टर-चिप से युक्त किया जाएगा जिससे बेहतर स्पेक्ट्रम क्षमता मिलेगी। गेट ऐरे एक अर्धचालक प्रौद्योगिकी है जिसमें अनुप्रयोग-विशिष्ट एकीकृत सर्किट के डिजाइन और निर्माण के लिए पूर्वनिर्मित चिप का उपयोग किया जाता है । इस परियोजना से वाइडबैंड स्पेक्ट्रम सेंसिंग प्रौद्योगिकी के लिए बौद्धिक संपदा (आईपी) भी सृजित होगी, जो गतिशील स्पेक्ट्रम का प्रमुख घटक है।
हस्ताक्षर के मौके पर सी-डॉट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. राज कुमार उपाध्याय, आईआईटी मंडी के प्रधान अन्वेषक डॉ. राहुल श्रेष्ठ, आईआईटी जम्मू के सह-अन्वेषक डॉ. रोहित बी. चौरसिया और सी-डॉट के निदेशक डॉ. पंकज कुमार दलेला और सुश्री शिखा श्रीवास्तव उपस्थित थे। सी-डॉट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. राज कुमार उपाध्याय ने विविधता पूर्ण देश की विशिष्ट आवश्यकताएं पूरी करने में स्वदेशी तौर पर डिजाइन और विकसित स्पेक्ट्रम सेंसिंग प्रौद्योगिकियों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए आत्मनिर्भर भारत की प्रतिबद्धता दोहराई।

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