दो और चार नंबर की बढ़त कांग्रेस के लिए लोकसभा में सबसे बड़ी चुनौती

सियासत

इंदौर. कांग्रेस के लिए विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 2 और विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 4 सबसे अधिक चुनौती पूर्ण हैं। लोकसभा चुनाव में इन दोनों विधानसभा क्षेत्र से जो लीड मिलती है वह भाजपा के लिए अजेय साबित होती है। क्षेत्र क्रमांक 4 को भाजपा की अयोध्या कहा जाता है। इस विधानसभा सीट पर कांग्रेस अंतिम बार 1985 में विजय हुई थी, तब पार्टी के नंदलाल माटा ने भाजपा उम्मीदवार को हराया था। अन्यथा 1990 के बाद से यहां भाजपा को ही सफलता मिलती रही है। 1990 में यहां से कैलाश विजवर्गीय जीते थे। 1993, 98 और 2003 में यहां से स्वर्गीय लक्ष्मण सिंह गौड़ ने विजय पताका फहराई। 2005 लखन दादा के नाम से लोकप्रिय लक्ष्मण सिंह गौड़ का एक सडक़ हादसे में दुखद निधन हो गया। उसके बाद हुए चुनाव में उनकी पत्नी मालिनी गौड़ लड़ी और जीती।

मालिनी गौड़ लगातार चार चुनाव से क्षेत्र क्रमांक चार में जीत रही हैं। क्षेत्र क्रमांक 4 ऐसा क्षेत्र है जहां माना जाता है कि कांग्रेस का प्रत्याशी हारने के लिए लड़ रहा है। कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला के कारण ऐसी ही स्थिति अब क्षेत्र क्रमांक 2 की हो गई है। एक समय क्षेत्र क्रमांक 2 में भाजपा तीसरे नंबर पर आती थी। क्षेत्र क्रमांक 2 को भाजपा के गढ़ में बदलने की शुरुआत विष्णु प्रसाद शुक्ला बड़े भैया की उम्मीदवारी से प्रारंभ हुई। बड़े भैया यहां से 1985 और 1990 में लड़े। हालांकि दोनों चुनाव में उन्हें पराजय मिली लेकिन उनके प्रयत्नों के फल स्वरुप यह क्षेत्र धीरे-धीरे भाजपा के गढ़ में परिवर्तित होता गया।

1993 के बाद कैलाश विजयवर्गीय ने यहां का राजनीतिक चरित्र पूरी तरह से बदल दिया। कैलाश विजयवर्गीय 1993 के बाद 1998 और 2003 का चुनाव भी यहीं से लड़े। 2008 में उन्होंने यह सीट अपने मित्र रमेश मेंदोला के लिए छोड़ी और खुद महू से चुनाव लडऩे के लिए चले गए। 2008,2013, 2018 और 2023 में यहां से रमेश मेंदोला जीते। 2013 के चुनाव में रमेश मेंदोला की जीत का अंतर एक लाख से ऊपर का था, 2023 में भी उन्होंने एक लाख से अधिक मतों से जीत दर्ज की। उन्होंने सबसे अधिक वोटों से जीतने का प्रदेश स्तरीय सर्वकालिक रिकॉर्ड बनाया। पिछले चुनाव में भी रमेश मेंदोला 61000 मतों से जीते थे। विधानसभा क्षेत्र में 4 की तरह विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 2 में भी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौतियां रहती हैं। दो नंबर और चार नंबर में भाजपा को इतनी बढ़त मिल जाती है कि उसको पटना कांग्रेस के लिए मुश्किल हो जाता है। वैसे तो कांग्रेस के लिए इस बार सभी आठ विधानसभा क्षेत्र चुनौती पूर्ण हैं लेकिन उनमें भी दो और चार नंबर की चुनौती सबसे कठिन है।

इंदौर की प्रमुख समस्याएं

शहर के व्यापारियों को जीएसटी को लेकर समस्या रहती है। जीएसटी के खिलाफ व्यापारी हमेशा आंदोलन करते हैं और कई बार भाजपा नेताओं को भी ज्ञापन दे चुके हैं। यहां के व्यापारियों और उद्योगपतियों को रंगदारी वसूलने को लेकर भी परेशानी रहती है। व्यापारियों की समस्या के अलावा इंदौर में आजकल अवैध नशे का व्यापार भी खूब बढ़ गया है। इस कारण से अपराध भी बढ़ गए हैं। इन समस्याओं के अलावा इंदौर की सबसे बड़ी समस्या जल निकासी और यातायात की है। इंदौर अत्यंत घनी आबादी वाला क्षेत्र है। प्रति व्यक्ति वार्षिक आय अन्य जिलों की तुलना में अधिक होने के कारण यहां वाहनों का विस्फोट है। इस कारण से शहर के 40 फ़ीसदी हिस्से में यातायात की समस्या बेहद जटिल रहती है। जल निकासी को लेकर भी इंदौर में पिछले 50 वर्षों में कोई ठोस काम नहीं हुआ है। इस वजह से थोड़ी सी बारिश में पानी भर जाता है। ग्रामीण क्षेत्र में किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य ना मिलना। खराब सडक़ें इत्यादि की समस्याएं हैं। ग्रामीण क्षेत्र के मुकाबले शहर में समस्याओं का अंबार लगा हुआ है हालांकि स्वच्छता में अव्वल आने के कारण शहर को लेकर यहां के नागरिकों में गर्व का भी भाव है।

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