महाकौशल की डायरी
अविनाश दीक्षित
संगठनात्मक चुनाव को लेकर भाजपाई गलियारों में इन दिनों दो कहावतों की खासी चर्चाएं चल रहीं हैं। इनमें से पहली, हाथी के दांत दिखाने के और, खाने के और, तथा दूसरी सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे, की कहावतें हैं। इनकी चर्चाएं इसलिए हो रहीं हैं, क्योंकि कहावतों का निहितार्थ भाजपा के बूथ से लेकर मंडल अध्यक्षों की चुनाव प्रक्रिया के दौरान चरितार्थ होते नजर आया, वह भी केवल जबलपुर में नहीं वरन् महाकौशल के अन्य जिलों में दिखा।दरअसल संगठनात्मक चुनाव प्रक्रिया के पूर्व भाजपा के आला नेता यह दावा करते रहे कि चुनाव रायशुमारी- सर्वसम्मति से कराये जाएंगे।
जिलों के संगठन और मजबूत हों, इसके लिए विधायकों – सांसदों के हस्तक्षेप को रोकने की रणनीति भी बनाई गई। चर्चाएं रहीं कि इस बार उन कार्यकर्त्ताओं को अहमियत दी जाएगी जो पार्टी के जमीनीं कार्यों से लम्बे अर्से से सक्रिय सहभागिता करते रहे हैं, माना गया कि ऐसे कार्यकर्त्ताओं को संगठन में पद मिलने से पार्टी के भीतर नई ऊर्जा का संचार तो होगा ही बल्कि जमीनी स्तर पर पार्टी की पकड़ और भी मजबूत होगी। इसके अलावा और भी तर्क -दावे किये, लेकिन जब मंडल अध्यक्षों की सूचियां सार्वजनिक हुईं तो उनमें क्षेत्रीय विधायकों- सांसदों के सर्मथक ज्यादा नजर आये। जबलपुर -कटनी सहित कुछ जिलों में जहां कुछ मंडलों के अध्यक्ष घोषित नहीं हो पाये, वहां भी विधायकों – सांसदों अथवा क्षेत्र के अन्य बड़े नेताओं की रजामंदी का पेंच फंसा है।
जबलपुर के पश्चिम विधानसभा के पांच मंडलों में सभी मंडल अध्यक्ष क्षेत्रीय विधायक और प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह के सर्मथक बताये जा रहे हैं, लेकिन यहां ना विरोध के स्वर उठे और ना ही किसी प्रदेश स्तर के नेताओं द्वारा अपनी पसंद- नापसंद जाहिर की गई। इसी तरह जबलपुर केंट में विधायक अशोक रोहाणी की पंसद ही चली। यहां के चार मंडलों में दो रिपीट हुये और जिन दो नये चेहरों को मौका मिला है, यह सभी 4 मंडल अध्यक्ष रोहाणी परिवार के करीबी हैं। कुछ ऐसी ही तस्वीर जबलपुर उत्तर -मध्य में नजर आई, जहां घमासान अधिक था, बावजूद इसके क्षेत्रीय विधायक अभिलाष पांडे 5 मंडलों में से 4 पर अपने करीबियों को बैठाने में सफल रहे, इनमें से कुछ मंडल अध्यक्षों को लेकर आक्रोश का माहौल भी रहा, जबकि विवेकानंद मंडल अध्यक्ष को लेकर उत्तर – मध्य क्षेत्र निवासी मौजूदा सांसद तथा विधायक श्री पांडे के बीच शीतयुद्ध चल रहा है। फिलहाल जबलपुर कें भाजपाई हल्कों में, ले लो राय हमारी, दे दो राय तुम्हारी, चलेगी सिर्फ हमारी, करते रहो रायशुमारी, का स्लोगन आम कार्यकर्ताओं कें बीच खूब चल रहा है।
कटनी में भी विधायकों की चली
कटनी के कुल 20 मंडलों में 3 मंडल अध्यक्ष रिपीट हुये, जबकि 17 मंडलों में नये चेहरों को मौका मिला है। तकरीबन 95 फीसदी चेहरे बदलकर पार्टी ने कटनी में बदलाव के संकेत तो दिये हैं, लेकिन जिन नये चेहरों को मौका मिला है, उनमें प्राय:सभी विधायकों की पसंद बताये जा रहे हैं। चर्चा है कि जिले के 6 मंडलों में पेंच फंसा था, किन्तु प्रदेश स्तर से आये एक संदेश के बाद थोड़े समय में ही मामला रफा-दफा हो गया। चर्चा है कि मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति में विधायकों की इसलिए चलने दी गई ताकि वह अपने नये सर्मथकों को एडजस्ट करा पायें और नये भाजपा जिलाध्यक्ष की नियुक्ति में किसी तरह का पेंच ना फंसाएं। आशय निकाला जा रहा कि संगठन फिर हाशिये पर रखा जाएगा और विधायक – सांसद अपनी मर्जी से सांगठनिक कामकाज कराएंगे।
बगावत करने वाले की नियुक्ति…?
शहडोल के धनपुरी में अलग ही नजारा दिखा। यहां एक ऐसा कार्यकर्त्ता मंडल अध्यक्ष बन गया, जिसे नगर पालिका चुनाव के दौरान 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था और जिसके कारण पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी को पराजय का सामना करना पड़ा था। चर्चा है कि कथित रायशुमारी के बाद जो सूची बनाई गई थी, उसमें नवनियुक्त मंडल अध्यक्ष का नाम ही नहीं था। बहरहाल अनुशासन को सर्वोच्च प्राथमिकता देने वाली पार्टी के स्थानीय कार्यकर्त्ताओं में तरह-तरह की चर्चाएं हैं, किन्तु नगर पालिका चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों की हार का जश्न मनाने वाले पार्टी से मिले इस सम्मान से गदगद हैं, वहीं निष्ठावान कार्यकर्ता हतोत्साहित