एक बार फिर दिल्ली, पंजाब और हरियाणा की सीमा पर किसान आंदोलन कर रहे हैं. एक किसान नेता तो आमरण अनशन पर हैं. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसान नेताओं से मुलाकात की है. सरकार उनकी सभी जायज मांगे मानने को तैयार हैं, मामला एमएसपी की लीगल गारंटी को लेकर अटका हुआ है. दरअसल,
भारत की अर्थव्यवस्था कृषि उत्पादन पर निर्भर करती है.इसलिए कृषि की भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुआयामी भूमिका है. प्राथमिक क्षेत्र, जिसमें कृषि आती है, द्वितीय एवं तृतीय क्षेत्र के लिए नींव है. कृषि ही सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ाती है. भारत कृषि प्रधान देश है.यहां किसानों को अन्नदाता और धरती पुत्र कहा जाता है.
किसान मौसम की परवाह किए बिना तपती धूप, बारिश और कड$कड़ाती ठंड में भी दिन-रात खेतों में काम करके इस देश की अर्थव्यवस्था के विकास और प्रगति में अपना अद्वितीय योगदान देते हैं. उनको अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी भी कहते हैं. हमारे देश में 60-70 प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं. सकल घरेलू उत्पादन में कृषि का 20.2 प्रतिशत योगदान है. देश के कार्यबल में 47 प्रतिशत कृषि और किसानों का योगदान है.
भारतीय रिजर्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार किसान भारत में फलों और सब्जियों में एक-तिहाई विक्रय मूल्य प्राप्त करते हैं. थोक और परचून विक्रेता दो-तिहाई हिस्सा ले जाते हैं.किसानों का हिस्सा टमाटर, प्याज और आलू पर 33, 36 और 37 प्रतिशत क्रमश: रह जाता है.बहुत बार तो किसान लागत के बराबर मूल्य न मिलने पर अपनी फसलों को सड$कों पर फैंक देते हैं. यह सब कुशल आपूर्ति शृंखला एवं विपणन प्रणाली के न होने, फसलों की नाशवान प्रवृत्ति, भंडारण सुविधाओं की कमी तथा बहुत संख्या में बिचौलियों के होने के कारण है. इसलिए भारत में किसान बार-बार धरना-प्रदर्शन तथा आत्महत्याएं कर रहे हैं.
आत्महत्या के मुख्य कारण हैं- सूखा, असामयिक बारिशों से खड़ी फसलों का बर्बाद होना, चारों ओर बढ़ती कीमतें एवं सरकारी नीतियां, उच्च ऋण बोझ, सार्वजनिक मानसिक स्वास्थ्य, व्यक्तिगत और मानसिक मुद्दे आदि. इसलिए यह भी आवश्यक है कि किसानों के स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए किसानों के आत्महत्या करने के कारणों का पता लगा कर, उन पर कार्य करना चाहिए. भारत को समृद्ध बनाना है तो किसानों और कृषि मजदूरों को समृद्ध करना होगा.इसके लिए जो योजनाएं वर्तमान में किसानों के लिए चल रही हैं, उनमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ये किसानों तक पहुंचनी भी चाहिए.अगर इनमें रिसाव है तो उसे रोकना चाहिए.
इसके अतिरिक्त बहुत से फैसले लेने तथा उनका दायरा बढ़ाने की आवश्यकता है जिनमें सभी फसलों, सब्जियों, फलों पर गारंटीकृत न्यूनतम सर्मथन मूल्य, ऋण माफी, भूमि सुधार, कम दरों पर उत्तम किस्म के बीज, खाद, कीटनाशक देना, सभी फसलों, सब्जियों व फलों को बीमा योजना के अंतर्गत लाया जाए, ताकि प्राकृतिक आपदा, अन्य कारणों से हुए नुकसान की किसानों को भरपाई हो सके. ग्रामीण इलाकों में सहकारी समितियों के गठन पर जोर दिया जाए तथा इनकी कार्यप्रणाली पारदर्शी की जाए. कृषि में विविधता-गुणवत्ता बढ़ाने में कृषि विभाग व विज्ञान केन्द्रों का बहुत योगदान रहा है.उनको और मजबूत किया जाए.किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने तथा फसलों में गुणवत्ता लाने के लिए प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाए. कुल मिलाकर किसानों की समस्याओं पर सर्वोच्च प्राथमिकता दिए जाने की जरूरत है.