लगभग 4 दशकों के बाद गंगा मुक्ति के लिए व्यापक आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जा रही है. बिहार के मुजफ्फरपुर के चंद्रशेखर भवन में गंगा मुक्ति आंदोलन की योजना तैयार की गई है. गंगा बेसिन की समस्याओं और इनके समाधान पर देश भर के चिंतकों, विशेषज्ञों और जमीनी कार्यकर्ताओं ने गंभीर मंथन कर इस नतीजे पर पहुंचे कि गंगा को बचाने के लिए सामाजिक संगठनों और आम लोगों को आगे आना होगा. दरअसल, ऐसा आंदोलन देश की सभी नदियों के लिए होना चाहिए.गंगा सहित देश भर की सभी छोटी बड़ी नदियां व्यवसायीकरण का शिकार हो कर बरबाद हो गई हैं.उनका पानी जहरीला हो गया है और मानव सहित पशु पक्षी और वनस्पतियों के लिए किसी भी तरह उपयोगी नहीं रह गया है. दरअसल,नदियां हमारी संस्कृति की संस्थापिका हैं.नदियों के किनारे हमारे नायकों और संतों के इतिहास के स्मारक भी हैं जो पर्यटन और मनोरंजन के नाम पर विकसित किए जा रहे स्थलों के कारण छिन्न भिन्न हो रहे हैं.ऐसे में गंगा सहित सभी नदियों की रक्षा तमाम पर्यावरण प्रेमियों के लिए बेहद जरूरी है.भारत जैसे प्रकृति उपासक देश में गंगा, तुलसी और गाय पवित्रता और शुचिता के मापदंड माने जाते हैं. गंगा जहां नदियों के महत्व का प्रतीक है तो तुलसी हमारे वृक्षों और गाय पर्यावरण में पशुओं का महत्व बताती है.ऐसे में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की यह टिप्पणी कि प्रयाग राज में गंगा का पानी इतना प्रदूषित हो गया है कि वो आचमन करने लायक भी नहीं रह गया है, चिंता को बढ़ाने वाला है. करीब सवा दो माह बाद यानी जनवरी 2025 की पौष पूर्णिमा से प्रयाग राज में महाकुंभ की शुरुआत होने वाली है. यदि गंगाजल की गुणवत्ता को लेकर ऐसे ही सवाल उठते रहे तो देश-दुनिया में अच्छा संदेश नहीं जाएगा. सवाल इस बात को लेकर भी उठेंगे कि विभिन्न सरकारों द्वारा शुरू की गई अनेक महत्वाकांक्षी व भारी-भरकम योजनाओं के बावजूद गंगा को साफ करने में हम सफल क्यों नहीं हो पाए हैं.आखिर कौन है गंगा की इस हालत का गुनहगार? विडंबना देखिये कि तमाम सख्ती के बावजूद सैकड़ों खुले नाले गंगा में गंदा पानी गिरा रहे हैं.तमाम उद्योगों का अपशिष्ट पानी अनेक जगह गंगा में गिराया जा रहा है. वर्ष 2014 से गंगा की सफाई का महत्वाकांक्षी अभियान ‘नमामि गंगे’ शुरू किया गया था.अब तक करीब चालीस हजार करोड़ की लागत से गंगा की सफाई की करीब साढ़े चार सौ से अधिक परियोजनाएं आरंभ भी की गई हैं.इस परियोजना के अंतर्गत गंगा के किनारे स्थित शहरों में सीवर व्यवस्था को दुरुस्त करने, उद्योगों द्वारा बहाये जा रहे अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण के लिये शोधन संयंत्र लगाने, गंगा तटों पर वृक्षारोपण, जैव विविधता को बचाने, गंगा घाटों की सफाई के लिये काफी काम तो हुआ लेकिन अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आए हैं. दरअसल, जब तक समाज में जागरूकता नहीं आएगी और नागरिक अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं करेंगे, गंगा और हमारी अन्य नदियां मैली ही रहेंगी. जाहिर है सिर्फ सरकारों के भरोसे नदियों को सुरक्षित नहीं किया जा सकता. नदियों को साफ करने के लिए जरूरी है कि स्वच्छता अभियान एक निरंतर प्रक्रिया हो. इसके लिए बाकायदा सिस्टम डेवलप किया जाए. अन्यथा स्थाई रूप से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता. नदियों के जल को स्वच्छ रखने के लिए पर्याप्त जल संशोधन संयंत्र युद्ध स्तर पर लगाए जाने चाहिए. जाहिर है नदियों की सफाई के लिए अत्याधुनिक संयंत्रों और तकनीक का भी उपयोग किया जाना चाहिए. नदियों में अघुलनशील कचरा व अन्य अपशिष्ट डालने से रोकने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है. इसके अलावा नदियों को प्रदूषित करने वालों पर कठोर दंड की कार्रवाई भी होना चाहिए . खास तौर पर जहरीला कचरा बहाने वाले उद्योगों पर भी आर्थिक दंड लगाना चाहिए. कुल मिलाकर पर्यावरण, सांस्कृतिक विरासत और प्रकृति संरक्षण के लिए नदियों को बचाना बहुत जरूरी है. जाहिर है यह महति कार्य हम सबको मिलकर करना पड़ेगा.
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