चुनाव आते ही सभी राजनीतिक दलों ने अपने घोषणा और संकल्प पत्रों का ऐलान शुरू कर दिया है. यह एक तरह का चुनावी कर्मकांड है जिसे सभी राजनीतिक दल निभाते हैं. सभी घोषणा पत्रों को देखने से पता चलता है कि मध्यम वर्ग का ध्यान सबसे कम रखा गया है. किसानों, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और गरीबों के लिए तमाम वादें हैं, लेकिन मध्यम वर्ग को कभी कुछ नहीं मिलता. यही हालात राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के बजट में रहती है. सरकारों के बजट में भी सबसे कम ध्यान मध्यम वर्ग पर ही दिया जाता है. यह स्थिति तब है जब देश का मध्यम वर्ग ही आर्थिक विकास का सबसे मजबूत ईंजन है. तमाम अर्थशास्त्री मानते हैं कि देश में एक मजबूत मध्यम वर्ग जरूरी है क्योंकि यही दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता वर्ग है.तमाम विदेशी निवेश और बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में निवेश इसीलिए करती हैं क्योंकि यहां मजबूत मध्यम वर्ग है. देश के मध्यम वर्ग में ही दरअसल,अर्थव्यवस्था को स्थिरता देने के साथ ही उपभोग और बचत में आगे बढ़ाने की शक्ति है. देश के मध्यम वर्ग के पास ही सबसे अधिक बौद्धिक संपदा है. यानी मध्यम वर्ग के पास किसी भी मुश्किल हालात से उबरने की क्षमता है. इसमें उच्च स्तर की उत्पादकता और प्रगति की क्षमता दिखती है क्योंकि ये लोग जिसे पेशे में भी हों, उनके पास निवेश के लिए पर्याप्त अतिरिक्त आमदनी होती है. ये लोग बचत और निवेश के तरीकों की बेहतर समझ भी रखते हैं.इसके अलावा इनमें अपने जीवन और रहन-सहन को बेहतर बनाने का दृढ़ संकल्प और क्षमता होती है.अगर शेयर विश्लेषकों के पसंदीदा शब्दों में कहें तो यह समाज( मध्यम वर्ग) के ‘प्रीमियमकरण’ को बढ़ावा देता है ताकि समाज प्रगति की राह पर आगे बढ़े.इसलिए एक वास्तविक मध्यम वर्ग बनाने में एक मुख्य तत्त्व, काम की प्रवृत्ति और कमाई करने का तरीका है.हालांकि यह उनकी शिक्षा, कौशल और इस तरह की क्षमता की मांग के स्तर पर निर्भर करता है. हम अनौपचारिकता के बड़े मुद्दे से जूझ रहे हैं जो मध्यम वर्ग के उन आंकड़ों को प्रतिच्छेदित करता है, जिन पर हम खुश होते हैं. संगठित या बेहतर गुणवत्ता वाली असंगठित नौकरियों के मौके भी कर्मचारियों को अपने कौशल बढ़ाने के लिए बेहतर साधन मुहैया कराते हैं जिससे उन्हें दूसरे कौशल वाले नेटवर्क के दायरे तक पहुंचने में मदद मिलती है. इससे उनकी काम की उत्पादकता ज्यादा बढ़ती है और कमाई करने में मदद मिलती है.बुनियादी ढांचा में बुनियादी सुविधाओं के साथ लोगों के जीवन के रहन-सहन का स्तर शामिल है और उनके आवागमन के साधन भी इसमें अपना योगदान देते हैं. हमें आंतरिक इस्तेमाल के लिए अपने ‘गुणवत्तापूर्ण ’मध्यम वर्ग के आकार को मापने के लिए नए पैमाने की जरूरत है. ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूट ने 2018 में मध्यम वर्ग के बारे में सोचने के तीन संभावित तरीकों पर चर्चा की मसलन नकदी, साख और संस्कृति. इसमें यह भी कहा गया कि दृष्टिकोण का चुनाव, उस खास उद्देश्य पर निर्भर करेगा जिसका इरादा किया गया है.भारत में हमें अपने मध्यम वर्ग के बारे में सोचते समय नकदी से अधिक साख पर ध्यान देना चाहिए. संस्कृति भारत की विशिष्टता है. सभी वर्ग स्थायी रूप से आकांक्षा के साथ जीते हैं और शायद ही कोई संतुष्ट होकर या हार की निराशा के साथ बैठ जाता है.मध्यम वर्ग और निरंतर आर्थिक प्रदर्शन के बीच ‘सकारात्मक चक्र’ सुनिश्चित करने के लिए हमें खुद ही इस वर्ग के बदलते स्वरूप को पहचानने और उसका जवाब देने की आवश्यकता है. जाहिर है देश के आर्थिक विकास के लिए मध्यम वर्ग का मजबूत होना जरूरी है. यही वर्ग ज्ञान संपदा रखता है और शिक्षा का प्रसार भी इसी वर्ग में ज्यादा है. मध्यमवर्गीय परिवारों के लाखों युवा आज दुनिया भर में नौकरियां कर रहे हैं और अरबों रुपए की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भारत भेज रहे हैं. जाहिर है मध्यम वर्ग देश के आर्थिक विकास का इंजन बना हुआ है.
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