*जनजातीय गौरव दिवस पर कुलपति डा सिंघवी ने कहा*
इंदौर । देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ राकेश सिंघवी ने कहा है कि जनजातीय समाज को ज्ञान देने की जरूरत नहीं है बल्कि उनसे ज्ञान लेने की जरूरत है । हमें यह समझना होगा कि यह समाज अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति अपने घर के अंदर ही किस तरह से करता है।
डा सिंघवी यहां जनजाति अध्ययन केंद्र के द्वारा बिरसा मुंडा जयंती और जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला के सभागार में आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जब हम इस समुदाय को जनजातीय शब्द से संबोधित करते हैं तो हम उन्हें अपने से अलग कर देते हैं। अपने जीवन के पुराने अनुभव को याद करते हुए उन्होंने कहा कि मैने बस्तर और अमरकंटक के पास के गांव में जाकर वहां पर काम किया। आदिवासी समाज के बीच में जाकर उनकी प्रवृत्ति और उनके कामकाज को समझा। आज के दौर में हम अपने माता-पिता, देश, भूमि, जंगल और व्यक्ति को सम्मान देना भूल गए हैं। इस समाज के बीच में जाकर जब हम समय बिताएंगे तो हमारा इस समाज के नागरिकों के प्रति विचार बदल जाएगा।
उन्होंने कहा कि जंगल के बीच में एक झोपड़ी बनाकर यह लोग रहते हैं। उनके घर में मक्का को टांग कर रखते हैं। बाहर के समाज पर यह लोग केवल नमक के लिए निर्भर होते हैं। उन्होंने कहा कि आज शहरी समाज को यह सोचना चाहिए कि हमने जीवन में अपनी कितनी ज्यादा आवश्यकताएं पैदा कर ली है। आज बार-बार इस बात की बात होती है कि इस समाज को विकास से जोड़ा जाना चाहिए तो मैं यह पूछना चाहता हूं कि विकास क्या है ? जो प्रसन्नता दें, वही विकास है। आवश्यकता इस बात की है कि हम इस समाज से सीखने की ललक पैदा करें। इन लोगों की शैली में खुशी, प्रसन्नता और आत्म सम्मान है । इनके लिए पैसे से ज्यादा जरूरी अपना घर है । आज जनजाति अध्ययन केंद्र में अध्ययन करने वाले विद्यार्थी किताबी अध्ययन पर ध्यान मत दो बल्कि इस समाज के बीच में जाकर रहकर इन लोगों को समझो। इन लोगों को ज्ञान देने की जरूरत नहीं है बल्कि इनसे ज्ञान लेने की जरूरत है। बिरसा मुंडा साक्षात भगवान है जिन्होंने मात्र 19 वर्ष की आयु में पूरी अंग्रेज हुकूमत को हिला दिया था।
इस मौके पर टंट्या भील राज्य स्तरीय पुरस्कार के विजेता राजारामजी ने कहा कि देश की आजादी के बाद से लेकर अब तक हमने इतिहास से आदिवासी समाज के देश की आजादी में दिए गए योगदान को भुला दिया है। हम बच्चों को हमारे देश पर हमला करने वालों की कहानी सुना रहे हैं लेकिन आदिवासी समाज ने क्या किया है यह नहीं बता रहे हैं। इतिहास में कहा जाता है कि देश की आजादी के लिए पहली क्रांति 1857 में हुई थी लेकिन हकीकत यह है कि उसके पहले 1780 में बिहार के भागलपुर में आदिवासी समाज के बाबा तिलका मांझी ने क्रांति की शुरुआत की थी। आदिवासी समाज ने 1856 में पूरे वन आंचल से आजादी की लड़ाई शुरू कर दी थी। भगवान राम जब वनवास काल के दौरान माता सीता के हरण के बाद लंका जाने का रास्ता ढूंढ रहे थे तब आदिवासी समाज की ही माता शबरी ने राम जी को रास्ता बताया था। उस समय पर रावण का खौफ इतना ज्यादा था कि कोई उसके खिलाफ जाने के लिए तैयार नहीं था। भगवान राम ने जब लंका पर हमला बोला तो नल, नील और हनुमान की कहानी तो सब सुनाते हैं लेकिन उस हमले में आदिवासी समाज के द्वारा दिए गए योगदान की कहानी कोई नहीं सुनता है।
विश्वविद्यालय के कुल सचिव अजय वर्मा ने कहा कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी नायकों के योगदान पर चर्चा करना देश की जरूरत है। इस समाज के अस्तित्व और विकास पर विचार करने के लिए हमें संपूर्ण समाज को प्रेरित करना होगा।
विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला की विभाग अध्यक्ष डॉ सोनाली नरगुंदे ने कहा कि जब राज्य, शहर और राष्ट्रीय स्तर पर हर नागरिक एक समान है तो फिर किसी भी समाज को रक्षा की जरूरत क्यों पड़ रही है ? हम जितना विभाजित रहेंगे, उतना ही हम पर संकट बढ़ेगा। बिरसा मुंडा केवल आदिवासी समाज के भगवान नहीं है बल्कि वह इस देश के हर नागरिक के भगवान है। वे समाज की रक्षा के लिए खड़े हुए थे । हमने जंगल में रहने वाले और शहर में रहने वाले लोगों के बीच में अंतर किया है। हमें इतिहास की किताब के तथ्य का आंकलन करना चाहिए । इस समाज की परंपरा, जीवन शैली और रीति रिवाज हमें नहीं पता है। सभी को अपनी जड़ों की चिंता है।
इस अध्ययन केंद्र के प्रमुख डा सखाराम मुजाल्दे ने कहा कि मध्य प्रदेश में आदिवासी समुदाय की आबादी 25% है । बिरसा मुंडा का कुल जीवन 24 वर्ष 8 माह का रहा है । फिर वह वीरगति को प्राप्त हो गए । वे आयुर्वेद के ज्ञाता भी थे । भारत सरकार के द्वारा अब उनकी जयंती को जनजाति अधिकार दिवस के रुप में मनाया जाता है । कार्यक्रम का संचालन दीपिका गौड़ ने किया। डॉ लखन रघुवंशी ने
आभार व्यक्त किया।