नवभारत न्यूज
खंडवा। अंग्रेजों के जमाने से जिला मुख्यालय रहे खंडवा में कमिश्नरी अब नाक का सवाल बन गया है। इतने सीनियर जिले और सुविधाओं वाले क्षेत्र को संभाग बनाने के लिए सबूत की जरूर नहीं रह जाती है। जिम्मेदारों की इच्छाशक्ति और ईमानदारी से यदि खंडवा को संभाग नहीं बनाया गया, तो राजनीतिज्ञों के लिए भी इसे दुर्भाग्य की बात और कुछ नहीं हो सकती।
दरअसल,नेताओं के पचड़े में खींचतान नहीं होना चाहिए। सीधा सवाल यह उठता है कि निमाड़ के चार जिलों खंडवा, खरगोन, बड़वानी और बुरहानपुर का इतिहास देखा जाना चाहिए। सबसे सीनियर और पुराने जिले के कलेक्टर से प्रतिवेदन मांगा जाना चाहिए। कलेक्टर ही निष्पक्ष और बिना विवाद के टिप्पणी दे सकते हैं।
शंकराचार्य की बड़ी प्रतिमा भी यहीं
वास्तविकता तो यह भी है कि आदी शंकराचार्य की बड़ी मूर्ति भी प्रधानमंत्री की अनुमति और स्थान चयन के बाद ओंकारेश्वर की पहाड़ी पर लगाई गई है। इसे भी क्या नजर अंदाज कर दिया जाएगा? खंडवा की नहरें जिस तरह खरगोन की तरफ मोड़ दी गईं थी। डीआईजी का दफ्तर भी खरगोन चला गया था। ऐसी स्थिति में खंडवा को अब हर कदम फूंक फूंक कर रखना चाहिए।
नेताओं के पीछे
स्वार्थ छिपा?
राजनीतिज्ञ तो अपने हिसाब से अपनी उपलब्धि बताने के लिए अपने जिले को संभाग बनना चाहेंगे।
ऐसी स्थिति में सबसे पुराना जिला खंडवा ही है। अंग्रेजों के समय से यहां हवाई पट्टी,रेल स्टेशन,बड़े स्कूल-कॉलेज और चौड़ी सडक़ रही हैं।
अंग्रेजों की समझदारी भी परखें
खंडवा को अंग्रेज़ों जैसे समझदार अफसरों ने भौगोलिक दृष्टि से भी मुख्यालय बनाया गया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय महू से सीधे जुड़ाव के लिए खंडवा में छावनी भी बनाई गई थी। इन स्थितियों को यदि नजरअंदाज किया गया, तो क्या यह खंडवा के साथ सौतेलापन नहीं होगा? खंडवा में ज्योतिर्लिंग है। मुख्यमंत्री मोहन यादव भी महांकाल के भक्त हैं। ऐसे में क्या वे इस क्षेत्र के साथ भेदभाव करेंगे?