धारा 370 लाने का प्रस्ताव पारित होना चिंताजनक

पिछले 8-10 दिनों से जम्मू कश्मीर विधानसभा के पहले सत्र में जो कुछ चल रहा है वो बेहद चिंताजनक है. इस मामले में सभी राजनीतिक दलों को विचार करना चाहिए क्योंकि कश्मीर एक संवेदनशील राज्य है, वहां बड़ी मुश्किल से जन जीवन सामान्य हुआ है. ऐसी स्थिति में जम्मू कश्मीर की विधानसभा में निर्वाचित जनप्रतिनिधि अपने निहित स्वार्थ के लिए जिस तरह का अराजक व्यवहार कर रहे हैं, वो राज्य की कानून और व्यवस्था तथा शांति के लिए खतरा बन सकता है. जम्मू कश्मीर के सभी राजनीतिक दल जानते हैं कि धारा 370 को विधानसभा के जरिए नहीं लागू किया जा सकता. इसके बावजूद नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी की आपसी प्रतिस्पर्धा की वजह से धारा 370 को वापस लाने के लिए प्रस्ताव पारित किया गया. सबसे पहले पीडीपी के विधायक ने यह प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसे नेशनल कांफ्रेंस ने समझदारी से नामंजूर करवाया, लेकिन इसके बाद मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर जिस तरह से राजनीतिक हमले हुए उसके बाद उमर अब्दुल्ला को भी मजबूरन अपने उपमुख्यमंत्री सुरेंद्र चौधरी के जरिए प्रस्ताव पेश पेश करवाना पड़ा. इस प्रस्ताव में कहा गया

कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल किया जाए.यह दर्जा अनुच्छेद 370 में ही संरक्षण पाता रहा है. प्रस्ताव को लेकर विधानसभा में विधायकों ने हाथापाई की. यहां तक कि मारपीट भी की गई. विपक्षी सदस्यों को मार्शलों के द्वारा जबरन सदन के बाहर धकियाया गया. ऐसा लगने लगा था कि यह विधाई सदन है अथवा अराजकता का अखाड़ा ?

सत्तारूढ़ पक्ष अच्छी तरह जानता है कि अब अनुच्छेद 370 और 35-ए को बहाल नहीं किया जा सकता. कश्मीरी जन प्रतिनिधि भी यह बखूबी जानते हैं, लेकिन राजनीतिक स्वार्थों के चलते जानबूझकर जम्मू कश्मीर में हंगामा किया जा रहा है. देश में आम मान्यता है कि अनुच्छेद 370 एक ऐतिहासिक गलती थी, लिहाजा उसे दुरुस्त करना जरूरी और उचित था. संविधान में यह अस्थायी प्रावधान था. अनुच्छेद 370 को 17 अक्तूबर, 1949 को संविधान का हिस्सा बनाया गया, जिसे 26 जनवरी,1950 को गणतंत्र बनने के बाद भी धारण किया गया. 5 अगस्त, 2019 को संसद ने कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने का फैसला लिया.पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने भी संसद के निर्णय को ‘संवैधानिक’ माना था. जाहिर है जम्मू कश्मीर की विधानसभा में हाल ही में पारित प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच की भी अवमानना है.दरअसल, धारा 370 की समाप्ति एक संवैधानिक सत्य है. इस हकीकत को नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने समझना चाहिए. इस प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में दिए गए तर्क और बहस घाटी में अलगाववाद को बढ़ावा देगी. विधानसभा चुनाव के बाद से पाकिस्तान से प्रेरित तत्व लगातार घाटी में अशांति फैलाने का काम कर रहे हैं. निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की इस तरह की बयान बाजी पाक परस्त तत्वों को प्रोत्साहित कर सकती है. जम्मू कश्मीर की विधानसभा में जो कुछ हो रहा है उसे पाकिस्तान को दुनिया के समक्ष अपना पक्ष रखने में मदद मिल सकती है ? इसके अलावा इस घटनाक्रम का पूरे देश पर जो प्रभाव पड़ रहा है वो भी सांप्रदायिक तनाव बढऩे वाला है. कुल मिलाकर धारा 370 को वापस लाने की जिद ना तो संवैधानिक है और ना ही देश हित में. उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बनने के बाद से काफी समझदारी भरे बयान दे रहे हैं. ऐसे में उनसे उम्मीद की जानी चाहिए कि वो राज्य में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपनी पार्टी और अन्य सभी जनप्रतिनिधियों को काबू में रखेंगे. भाजपा को भी संयम से काम लेना होगा. भाजपा के नेता भी भडक़ाऊ बयान देने में पीछे नहीं रहते. कुल मिलाकर यह मामला किसी एक राज्य का नहीं बल्कि पूरी देश की एकता और अखंडता से जुड़ा है.इसलिए सभी पक्षों को इस मामले में आत्म मंथन करना चाहिए.

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