गांधीनगर/नयी दिल्ली, 05 नवंबर (वार्ता) गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने मंगलवार को कहा कि धरती को उपजाऊ बनाने का एकमात्र उपाय प्राकृतिक खेती ही है।
श्री देवव्रत नयी दिल्ली में आयोजित द्वित्तीय अंतरराष्ट्रीय कृषि सम्मेलन में ऑनलाइन शामिल हुए और कहा हम जीते हैं, तब तक धरती माता हमको प्राकृतिक सम्पदा प्रदान करती है। हम अनाज का एक दाना धरती माता को देते हैं तो वह हमको अनेक गुणा दाने उगाकर वापस करती है। रासायनिक खाद और जहरीली दवाओं के अत्यधिक उपयोग से हमने रत्नगर्भा धरती माता को जहरीली बनाकर उसकी उत्पादकता छीन ली है। धरती को उपजाऊ बनाने का एकमात्र उपाय प्राकृतिक खेती ही है।
द्वित्तीय अंतरराष्ट्रीय कृषि सम्मेलन का शुभारम्भ आज राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत ने कराया। ‘प्राकृतिक खेती में नये संशोधन : धरती और बीज की गुणवत्ता में वृद्धि के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस- एआई और ड्रोन का उपयोग’ विषय पर आधारित अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में उन्होंने अपने विचार व्यक्त किए।
हिंदुस्तान एग्रीकल्चर रिसर्च वेल्फेयर सोसायटी द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, गुजरात प्राकृतिक कृषि विज्ञान युनिवर्सिटी तथा अन्य सहयोगी संस्थाओं द्वारा आयोजित द्वित्तीय अंतरराष्ट्रीय कृषि सम्मेलन में 17 देशों के 2000 से ज्यादा प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
राज्यपाल ने इस अंतरराष्ट्रीय कृषि सम्मेलन में ऑनलाइन शामिल होंकर कहा कि आधुनिक टेक्नोलॉजी का उपयोग प्राणी जगत और मानवता के कल्याण के लिए होना चाहिए। रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं के अंधाधुंध उपयोग के कारण आज समग्र भारत की भूमि का ऑर्गेनिक कार्बन 0.2, 0.3 या 0.4 हो गया है। कृषि वैज्ञानिकों के मतानुसार, ऑर्गेनिक कार्बन 0.5 से कम हो तो वह धरती बंजर कहलाती है।
उन्होंने कहा कि अगर भारत की धरती को हमें पुन: उपजाऊ बनाना है और ऑर्गेनिक कार्बन को बढ़ाना है तो प्राकृतिक कृषि अपनानी ही होगी। रासायनिक खाद के उपयोग से धरती की उर्वरता और ऑर्गेनिक कार्बन बढ़ता नहीं है। अर्थात उत्पादन बढ़ता नहीं है। किसानों का कृषि खर्च भी बढ़ता चला जाता है। अनाज में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। आहार में हवा और पानी में जहरीले रासायनिक तत्व बढ़ते चले जाते हैं। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ता है। इतना ही नहीं, मानव स्वास्थ्य के सामने गम्भीर चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। देसी गाय के गोबर और गौ-मूत्र आधारित प्राकृतिक खेती इन तमाम समस्याओं का एकमात्र समाधान है।
रासायनिक खेती हिंसक खेती है। कीटनाशक दवाओं के अत्यधिक उपयोग से धरती के मित्र जीव नष्ट हो जाते हैं। इसका उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि रासायनिक खाद में मौजूद नाइट्रोजन हवा के ऑक्सीजन में सम्पर्क में आते हैं, इससे नाइट्रस ऑक्साइड नामक जहरीली गैस उत्पन्न होती है, जो कार्बन-डाई ऑक्साइड से 312 गुना ज्यादा खतरनाक है। रासायनिक खाद में 45 प्रतिशत नमक होता है, जो धरती को पत्थर की तरह सख्त बनाता है। परिणाम स्वरूप वर्षाजल का संचय नहीं होता है।
गोबर, गौ-मूत्र आधारित प्राकृतिक खेती से केंचुओं और मित्रकीटों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी होती है जो धरती को उपजाऊ बनाते हैं। इतना ही नहीं, केंचुए धरती में जो छिद्र बनाते हैं, उससे प्राकृतिक तौर पर जल संचय होता है। अतिवृष्टि में भी फसल नष्ट नहीं होती और अनावृष्टि में भी फसल बच जाती है। उन्होंने प्राकृतिक खेती (नेचरल फार्मिंग) और जैविक खेती (ऑर्गेनिक फार्मिंग) के बीच अंतर को विस्तृत जानकारी देकर समझाया। ऑर्गेनिक खेती- जैविक कृषि सफल खेती पद्धति नहीं है। इससे किसानों की आय में वृद्धि नहीं होती है और ना ही खेती खर्च कम होता है।
राज्यपाल ने कहा कि अगर धरती को पुन: उपजाऊ बनाना है तो प्राकृतिक खेती ही एकमात्र समाधान है। प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई मोदी ने प्राकृतिक खेती मिशन को जन आंदोलन बना दिया है। भारत सरकार ने प्राकृतिक खेती को विशेष प्राथमिकता देते हुए नये बजट में वित्तीय व्यवस्था भी की है। प्रधानमंत्री अपने सम्बोधनों में प्राकृतिक खेती का उल्लेख करते हुए राष्ट्र को प्रोत्साहित भी कर रहे हैं। गुजरात सरकार के प्रयासों से राज्य में दस लाख जितने किसान प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि गुजरात की प्राकृतिक कृषि विज्ञान युनिवर्सिटी के साथ राज्य के नये कॉलेज भी जुड़ रहे हैं। प्राकृतिक खेती का अभ्यासक्रम तैयार हो रहा है। इसे गुजरात से बाहर के कॉलेज भी स्वीकार कर रहे हैं। प्राकृतिक खेती एक ईश्वरीय कार्य है और यही खेती आने वाली पीढ़ियों के लिए उपकारक खेती पद्धति साबित होगी।
ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन आश्रम के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस- एआई के इस युग में ऋषि इंटेलिजेंस- आरआई और नेचरल इंटेलिजेंस- एनआई के समन्वय की खास आवश्यकता है। राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत को उन्होंने ‘पितातुल्य’ बताते हुए प्राकृतिक खेती का दायरा बढ़ाने के लिए उनके प्रयासों की सराहना की।
स्वामी श्री चिदानंद सरस्वती ने कहा कि पहला सुख-निरोगी काया होता है। प्राकृतिक जीवनशैली मनुष्य को जड़ों से जोड़ती है। प्रकृति के तत्व अग्नि-वायु-सूर्य-जल ही सच्चा धन है। उनके प्रति सच्ची समझ से जीवन धन्य बनता है। यूज एंड थ्रो नहीं बल्कि यूज एंड ग्रो का युग आया है। प्रगति में प्रकृति का संरक्षण करेंगे तो संतति का संरक्षण होगा। जल क्रांति को जन क्रांति बनाने की, जल चेतना को जन चेतना बनाने की और जल अभियान को जन अभियान बनाने की आवश्यकता है। राज्यपाल श्री देवव्रतजी प्राकृतिक कृषि के लिए किसानों को ‘टीच’ कर रहे हैं। उनके हृदय को ‘टच’ कर रहे हैं और किसानों को रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती की ओर ‘ट्रांसफर’ कर रहे हैं।
रामकृष्ण मिशन-राजकोट के अध्यक्ष निखिलेश्वरानंद महाराज ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती का यह द्वित्तीय अंतरराष्ट्रीय कृषि सम्मेलन, मात्र कृषि क्रांति नहीं बल्कि वैश्विक क्रांति की ओर अग्रसर होने का महत्वपूर्ण कदम है। स्वामी विवेकानंदजी के विचारों को इंगित करते हुए उन्होंने कहा कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाने की आवश्यकता है। मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता है। मनुष्य प्रकृति का संरक्षक है-शोषक नहीं। भारत को आत्मनिर्भर, सशक्त और विकसित भारत बनाना है तो प्राकृतिक कृषि के माध्यम से प्रकृति की रक्षा के लिए आगे आना होगा। उन्होंने युवाओं से उठो-जागो और लक्ष्य प्राप्त होने तक रुको मत- की सीख देते हुए विश्व कल्याण के लिए भारत का विश्व गुरु बनना आवश्यक बताया।
समारोह के आरम्भ में गुजरात प्राकृतिक कृषि विज्ञान युनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. सीके. टिबड़िया ने स्वागत सम्बोधन किया। अंत में एमिटी विश्वविद्यालय नोइडा के सलाहकार डॉ. लाखनसिंह ने आभार जताया। समारोह में हंसराज कॉलेज नयी दिल्ली की आचार्य डॉ. रमाजी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। हंसराज कॉलेज नयी दिल्ली, डीवाई कॉलेज कोल्हापुर (महाराष्ट्र), आगरा कॉलेज के कृषि क्षेत्र के विद्यार्थी, प्रगतिशील किसान और कृषि वैज्ञानिक भारी संख्या में उपस्थित रहे।